शमीम शर्मा
एक बहुत धनी व्यक्ति था। एक दिन उसका सबसे कीमती हीरा चूहा निगल गया। बस उसी दिन से उसकी रातों की नींद गायब हो गई। उसकी अमीरी चूहे के पेट में जा बसी। उसने एक शिकारी को बुलाया और चूहे के पेट से हीरा निकालने की भारी रकम देने की पेशकश की।
शिकारी ने हां भर दी। फिर उसने देखा कि सेठ के घर में तो सैकड़ों चूहे बैठे थे पर एक चूहा बिल्कुल अलग-थलग बैठा था। शिकारी ने तुरन्त उसी अकेले बैठे चूहे को मार डाला और उसके पेट से हीरा निकाल कर सेठ की हथेली पर रख दिया। सेठ ने हैरान होकर पूछा- तुझे कैसे पता चला कि इसी चूहे के पेट में हीरा है। शिकारी बोला- जब ईश्वर किसी को बेशुमार दौलत देता है तो वो आमजनों से मिलना-जुलना छोड़ देता है और अपने अहंकार में अकेला रहना पसन्द करता है।
अमीरी जब अहंकार देती है तो बदले में संवेदनशीलता, दीन-ईमान और नैतिकता भी छीन लेती है। मुझे याद आती है वह लघुकथा, जिसमें एक मजदूर भरी दोपहर में किसी बड़ी-सी कोठी की घंटी बजाता है तो मालिक बाहर आकर पूछता है कि क्या काम है। मजदूर कहता है-साहब! कंठ सूख रहा है, जरा पानी पिला दीजिये। मालिक कहता है-घर पर कोई आदमी नहीं है। गरीब मजदूर सहमी-सी आवाज़ में सवाल दागता है-आप आदमी नहीं हैं क्या?
रोटी कमाना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है परिवार के साथ मिलजुल कर रोटी खाना। पर धनी व्यक्ति परिवार से भी दूरी बनाने में यकीन करने लगता है। उसे हर पल यही डर सताता है कि कोई उसकी संपत्ति पर नज़र ना रख ले या उधार मांगने ना आ जाये। अमीरी में आदमी चापलूस चमचों से घिरा रहता है। उसे अपनी प्रशंसा सुनना लाजवाब लगता है। पर एक बात हमेशा याद रखने लायक है कि बटर लगाने वाले हाथों में हमेशा चाकू होता है।
एक सन्त ने प्रवचन देते हुए कहा कि रुपया कुछ भी नहीं है, बस एक कागज का टुकड़ा है। रुपये से भी यह बात सुनकर रहा नहीं गया और वह बोल उठा-इस कागज के टुकड़े को आज तक किसी डस्टबिन में नहीं जाना पड़ा।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी अपणी सहेली गैल बतलावै थी। सहेली बोल्ली-हैं ए तन्नैं बेरा है के अपणे गाम का सरपंच कोमा मैं चल्या ग्या। रामप्यारी बोल्ली-ए भाण! बड्डे आदमियां का के जिकरा, पैसे आले तो कितै भी जा सकै हैं।