अरुण नैथानी
भारतीय संस्कारों-संस्कृति और भाषाओं की थाती इतनी समृद्ध है कि पश्चिमी संस्कृति का सम्मोहन भी उसे डिगा नहीं सकता। जड़ों से जुड़ने की ललक सात समुद्र पार जाकर भी बनी रहती है । इसका हालिया उद्वेलित करता उदाहरण है न्यूजीलैंड के नवनियुक्त मंत्री डॉ. गौरव शर्मा का, जिन्होंने संस्कृत भाषा में शपथ ग्रहण की। निस्संदेह यह पहल उन करोड़ों भारतीयों के लिये सबक है जो संस्कृत की उपेक्षा करते हैं। जब गौरव शर्मा से पूछा गया कि उन्होंने संस्कृत में ही शपथ क्यों ली तो उनका कहना था कि मेरे मन में प्रश्न था कि मैं हिंदी में शपथ लूं, फिर सोचा हमारे हिमाचल की पहाड़ी और पंजाबी भी तो है। फिर निर्णय लिया कि क्यों न तमाम भारतीय भाषाओं की जननी वैज्ञानिक भाषा संस्कृत में शपथ ली जाये। इस तरह उन्होंने न्यूजीलैंड की धरा पर पहली बार संस्कृत में शपथ लेकर इतिहास रच दिया। इस घटना ने उन्हें सुर्खियों का सरताज बना दिया। हिमाचल के लोगों ने तो गौरव के साथ अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल में इस सूचना को प्रमुखता के साथ शामिल किया।
भारतीय मूल के इस सांसद के साथ एक खास बात यह भी है कि वे न्यूजीलैंड की संसद में सबसे कम उम्र के सांसद हैं। इसका मतलब है कि न्यूजीलैंड की राजनीति में उनकी पारी लंबी होने वाली है और वे सफलता की नयी ऊंचाइयां छू सकते हैं।
दरअसल, हिमाचल के हमीरपुर के रहने वाले 31 वर्षीय गौरव शर्मा के पिता 1996 में न्यूजीलैंड चले गये थे। जहां उनका संघर्ष बहुत लंबा रहा। उन्हें छह साल तक नौकरी न मिली। सरकार से भी कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। इस संघर्ष की तपिश से निकले गौरव तपकर आज कुंदन की तरह दीप्तिमान हैं। 31 वर्षीय गौरव की प्रारंभिक पढ़ाई हमीरपुर, धर्मशाला और शिमला में हुई। गौरव का जन्म एक जुलाई, 1987 को गिरधर शर्मा और पूर्णिमा शर्मा के घर हुआ। उनके पिता राज्य बिजली विभाग में कार्यकारी अभियंता थे और मां पूर्णिमा एक गृहिणी। डॉ. गौरव शर्मा ने आकलैंड से एमबीबीएस की तथा कालांतर वाशिंगटन से एमबीए किया। हालांकि, न्यूजीलैंड में पिता गिरधर शर्मा का छह वर्ष तक लंबा संघर्ष चला, लेकिन उन्होंने बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं की। गौरव ने मां की इच्छा के अनुसार डॉक्टरी का पेशा चुना। गौरव हैमिल्टन में जनरल प्रैक्टिशनर हैं। इससे पहले वे स्पेन, अमेरिका, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया, स्विट्ज़रलैंड और भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति, चिकित्सा और परामर्श सेवायें दे चुके हैं।
दरअसल, गौरव छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। फिर उन्होंने लोकसेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया और कालांतर सेवा मुहिम को सशक्त करने के लिये राजनीति में सक्रिय हुए। वे इससे पहले 2017 में भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन सफल न हो सके। फिर लेबर पार्टी के टिकट पर इस वर्ष चुनाव लड़े और नेशनल पार्टी के टिम मैकिंडो को करीब साढ़े चार हजार वोटों से हराया। हाल ही में प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डर्न की सरकार में मंत्री बनाया गया। जसिंडा की पार्टी पिछले दिनों रिकॉर्ड मतों से जीती है। इस सरकार में उनके अलावा भारतवंशी प्रियंका राधाकृष्णन को मंत्री बनाया गया था जो भारतीय मूल की पहली मंत्री बनी थी।
सही मायनो में गौरव शर्मा दूसरे व्यक्ति हैं, जिन्होंने संस्कृत में दायित्वों की शपथ ली है। इससे पहले सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी ने भी इस साल जुलाई में संस्कृत में शपथ ग्रहण की थी। यहां उल्लेखनीय है कि गौरव ने संस्कृत में शपथ लेने से पहले न्यूजीलैंड की स्थानीय भाषा माउरी में भी शपथ ली थी जो भारत और न्यूजीलैंड की सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके गहरे समर्पण को ही प्रदर्शित करता है।
डॉ. गौरव कहते हैं कि मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे स्थानीय लोगों का सम्मान-समर्थन मिला तथा उनका प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। दरअसल, राजनीति में रुचि पैदा होने के बाद सर्वप्रथम गौरव ने 2014 में पार्टी एक स्वयंसेवक के रूप में ज्वाइन की थी। न्यूजीलैंड में भारतीय समुदाय की राजनीतिक सक्रियता का भी उन्हें लाभ मिला। वे स्वीकार करते हैं कि गाहे-बगाहे नस्लभेद भी जीवन का एक घटक है। लेकिन यह भी सत्य है कि अधिकांश लोग इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
न्यूजीलैंड के हैमिल्टन वेस्ट से लेबर पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले गौरव शर्मा कहते हैं कि मैं समाज सेवा के लिये राजनीति में आया हूं। मैं चाहता हूं कि न्यूजीलैंड आने पर जिन कष्टों का मेरे परिवार को सामना करना पड़ा, वैसा अन्य लोगों को न करना पड़े। सामाजिक सुरक्षा के रूप में भी मुझे बहुत ज्यादा मदद नहीं मिली। बहरहाल, गौरव हिमाचल के पहले सपूत हैं, जिन्हें न्यूजीलैड में मंत्री बनने का मौका मिला। जिसके बाद उनके गांव में उत्सव जैसा माहौल बना। गांव वालों ने ढोल-नगाड़े बजाकर लड्डू बांटें और अपने बेटे की कामयाबी के लिये प्रार्थना की। हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी उन्हें बधाई दी है।