अरुण नैथानी
किसी ने कभी सोचा भी न होगा कि कोई भारतीय मूल का बाशिंदा सिंगापुर के समाज में पहले तो अपनी जमीन तलाशेगा और फिर वहां के लोकतंत्र की निगहबानी हक हासिल करेगा। वह आवाज बनेगा जो सत्तापक्ष की निगरानी करेगी, उसे सही-गलत का अहसास कराएगी, प्रतिरोध के स्वर बोलेगी और अपना रुतबा कायम करेगी। लेकिन हाल ही में हुए सिंगापुर के आम चुनाव में वर्कर्स पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़कर सबसे बड़े विपक्ष दल के नेता के रूप में उभरे प्रीतम सिंह ने यह कर दिखाया। उन्होंने सिंगापुर के लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार विपक्षी नेता का दर्जा हासिल किया है। दरअसल, आम चुनाव में वर्कर्स पार्टी का बड़ा एजेंडा सिंगापुर के लोकतंत्र में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति का था। जब उनकी पार्टी सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरी तो सत्तापक्ष ने इस मांग को स्वीकार किया। दरअसल, अब तक सिंगापुर में विपक्षी नेता के नाम पर नूरा-कुश्ती ही होती आई थी। सत्तापक्ष के नेता ही विपक्ष की भूमिका में हुआ करता थे जो स्वस्थ लोकतंत्र के हित में नहीं था। इस मुकाम को हासिल करने में भारतीय मूल के प्रीतम सिंह ने निर्णायक भूमिका निभायी जो सिंगापुर में भारतवंशियों के बढ़ते रुतबे का भी प्रमाण है।
गत 10 जुलाई को हुए आम चुनाव में वर्कर्स पार्टी ने 93 में दस सीटें जीतीं। इससे पार्टी सिंगापुर के संसदीय इतिहास में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी। चुनाव अभियान के दौरान प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों के अलावा उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद सृजित करने की भी मांग की थी। पूरे घटनाक्रम के बाद 31 अगस्त को उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई। मजेदार बात यह है कि संसद की कार्यवाही शुरू होने पर सत्ताधारी पीपुल्स एक्शन पार्टी यानी पीएपी की नेता इंद्राणी राजा ने ही 43 वर्षीय प्रीतम सिंह को देश के पहले विपक्षी नेता के रूप में मान्यता दी। इंद्राणी ने यह भी स्वीकारा कि विपक्ष में अधिक सांसदों का होना, सिंगापुर के लोकतंत्र की विविधता को चित्रित करता है।
दरअसल, सिंगापुर की संसद में विपक्षी नेता का पद आधिकारिक तौर पर नहीं रहा है। इसके अलावा न तो संविधान में इसका उल्लेख रहा और न ही संसद के स्थायी आदेशों में इस पद का जिक्र है। इस पद को सृजित करने का समर्थन प्रधानमंत्री हिसयन लूंग ने भी किया था।
सिंगापुर की 14वीं संसद में प्रीतम सिंह को संसद में आफिस व स्टाफ के साथ अन्य सभी सुविधाएं मिलेंगी। उनकी सीट प्रधानमंत्री के सामने लगेगी। पैकेज के रूप में उन्हें भारत के हिसाब से दो करोड़ रुपये भी मिलेंगे। वे संसद में विधेयकों, प्रस्तावों और संसद में होने वाली बहसों पर वैकल्पिक विचार पेश करने में विपक्ष का प्रतिनिधित्व करेंगे। इसके साथ ही सिंगापुर की संसद ने प्रस्ताव पारित करके प्रीतम सिंह के बोलने के समय को बीस मिनट से बढ़ाकर चालीस मिनट कर दिया है।
नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किये जाने पर प्रीतम सिंह ने संसद में सिंगापुर के प्रवासी कामगारों का जीवनस्तर सुधारने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रवासी कामगार सिंगापुर की आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी मौजूदगी सिंगापुर को वह जीवंतता देती है जो हमें आर्थिक रूप से प्रासंगिक बनाती है। ये प्रवासी कामगार सिंगापुर के निवासियों को भी आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करते हैं। पेशे से मूलत: वकील प्रीतम सिंह ने सिंगापुर की परंपरा के हिसाब से नेशनल सर्विसमैन के रूप में मेजर रैंक हासिल किया है। नेशनल सर्विसमैन सम्मानजनक संबोधन उन लोगों को दिया जाता है जो जरूरत पड़ने पर देश के लिए अपनी सेवाएं देते हैं।
प्रतिभावान प्रीतम सिंह एक विद्यार्थी के रूप में खासी ख्याति पा चुके हैं। वर्ष 1999 में इतिहास व राजनीति शास्त्र में सर्वोच्च अंक हासिल करने पर उन्हें विशेष ट्रॉफी मिली थी। तदुपरांत उन्होंने वर्ष 2000 में नेशनल सिंगापुर यूनिवर्सिटी से इतिहास में स्नातक किया। इसके उपरांत किंग्स कॉलेज लंदन में कानून तथा युद्ध की रणनीति की पढ़ाई की। कालांतर ब्रिटेन में ही स्नातकोत्तर पढ़ाई पूरी की। बाद में मलेशिया स्थित इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी से इस्लामिक स्टडीज में डिप्लोमा हासिल किया। एक मुखर अधिवक्ता के साथ-साथ उन्होंने ओपिनियन एशिया नाम से एक सिंडिकेट शुरू किया जो एशियाई से जुड़े मामलों पर राय निर्मित किया करता है। बाद में वर्ष 2011 में उन्होंने सिंगापुर की राजनीति में विधिवत प्रवेश किया और तब से लेकर अब तक सांसद हैं।
पंजाबी मूल के प्रीतम सिंह ने थिएटर कलाकार लवलीन कौर से शादी की है। वे दो बेटियों वाले परिवार के दायित्व निभाने के साथ ही हजारों श्रमिक परिवारों के हितों के लिये संघर्ष करते रहे हैं। कामगारों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे हैं। अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी और मिली है। साथ ही उन्हें इस पद के दायित्वों और मानकों पर खरा उतरना है। निस्संदेह, प्रीतम सिंह की कामयाबी व्यक्तिगत भी है और निष्कर्ष यह भी है कि सिंगापुर में भारतवंशियों का दबदबा बढ़ रहा है।