वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
जाड़ों की आहट होते ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय समेत अन्य अदालतों में वायु प्रदूषण से जुड़े मामलों की सुनवाई का भार भी बढ़ने लगता है। गत वर्ष जब दिवाली से पूर्व 1 जनवरी, 2023 तक पटाखों आदि पर प्रतिबंध लगा दिये तो उसके खिलाफ दिल्ली के एक सांसद ने जनहित याचिका दायर कर दी थी। किन्तु सुनवाइयों के बाद न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया था। इस साल भी दिल्ली सरकार ने पटाखों के बनाने, बेचने, संग्रहण व फोड़ने आदि पर प्रतिबंध लगा दिये हैं।
बता दें कि यूएन मानवाधिकार समिति द्वारा अक्तूबर, 2021 में प्रस्ताव स्वीकृत किया गया था कि स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार मानवाधिकार है। यह प्रस्ताव भारत समेत अन्य देशों को भी मानना है। ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली की जहरीली ध्ाुंध और धुएं से जुड़ी याचिकाओं को मानवाधिकार हनन न माने व प्राथमिकता में न रखे।
देश में पहली बार एक छात्र आदित्य दुबे द्वारा दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिये उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की गयी। उसकी प्रारंभिक सुनवाइयों के दौर में ही 13 नवम्बर, 2021 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश समेत 3 जजों की पीठ ने दिल्ली और एनसीआर में 500 के करीब पहुंचते वायु गुणवत्ता सूचकांक को इंगित करते हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) को कहा कि ऐसी स्थिति में लोग कैसे जिंदा रहेंगे। क्या घरों में भी मास्क लगाना पड़ेगा। जरूरत पड़े तो लॉकडाउन लगायें। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिये कुछ ही घ्ांटाें में योजना पेश करने के निर्देश दिये थे। पीठ ने कहा था कि इस मुकदमे की प्रासंगिक निगरानी आगे भी जारी रहेगी। वहीं याचिका पर भारत सरकार को भी जवाबदेह बताया।
दरअसल, वायु प्रदूषण से जुड़े मामलों की सुनवाई के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के लिये 2021 का साल मुश्किलों वाला था। उच्चतम न्यायालय की पीठ बार-बार यह रेखांकित कर रही थी कि वे दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिये संघर्ष कर रहे हैं व वायु गुणवत्ता सूचकांक को 500 से नीचे लाना चाहते हैं।
वर्ष 2021-22 का दिल्ली स्मॉग काल पिछले तीन सालों में सबसे लम्बा था। फिर भी कुछ पहले तक कोविड-19 से प्रभावित लोग नये प्रतिबंध नहीं चाहते थे। मसलन, गत वर्ष स्मॉग स्थितियों में बच्चों के स्कूल जाने की मजबूरी देख सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि अन्य लोग घर से काम कर रहे हैं तो फिर स्कूल क्यों खोल दिये। इस पर दिल्ली में 3 दिसंबर से अगले आदेश तक स्कूल बंद रखने के आदेश दिये थे।
इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि न्यायालयों या न्यायिक संस्थाओं से जब कभी लॉकडाउन लगाने या उन्हें आनन-फानन में ही प्रदूषण नियंत्रण की तात्कालिक योजना प्रस्तुत करने के निर्देश मिलने लगते हैं तो तत्काल आदेशों का पालन करने के क्रम में राज्यों की अपनी बनाई योजनाओं पर अमल नहीं हो पाता है। इससे प्रदूषण रोकने की योजनाओं में स्थायित्व नहीं आ पाता। दिल्ली में स्माॅग टॉवरों का आदेश भी सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था।
उच्चतम न्यायालय के कड़े आदेशों की नियति क्या रहती है इसका आभास सुप्रीम कोर्ट में 29 नवंबर, 2021 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने दे दिया था। पीठ ने तब एनसीआर के राज्यों व पंजाब से कहा था कि अब तक जितने निर्देश हमने या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बेहतरी के लिए दिये हैं उन पर अमल शून्य के बराबर हुआ है। केवल एक आदेश जो हमने नहीं दिया है वह है आप पर आपराधिक कार्रवाई का। इसी प्रकार 2 दिसम्बर को नाराज पीठ ने कहा कि हमें दिल्ली सरकार को चलाने के लिए किसी को नियुक्त करना पड़ेगा।
किसानों का पराली जलाना भी शुरू हो गया है। वर्ष 2015 में वायु प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से पराली जलाना अपराध बना दिया गया था, किन्तु 2021 में इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया। इस बार पराली जलाने के मामले यदि अदालत में जायेंगे तो कोर्ट की सुनवाई क्या मोड़ लेगी इस पर सबकी नजर रहेगी। वर्ष 2021 में तो इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट पीठ की भी संवेदनशील छवि सामने आई थी। एक मामले में जब एसजी तुषार मेहता ने वायु प्रदूषण का पहला कारण पराली जलाना बताया तो पीठ का कहना था कि क्या किसानों की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वे सब्सिडी के बाद भी पराली निपटान के लिये सुझाई गई मशीन खरीद सकें?
आज न तो सरकारें, न ही सामाजिक संगठन प्रदूषण पैदा होने वाली जगह जाकर प्रदूषण फैलाने वालों से सीधे टकराव लेना चाहते हैं। जनता महज जनहित याचिकाओं को दायर करने तक सीमित हो गई है। एक राज्य दूसरे राज्य को प्रदूषण रोकने के लिए सीधे न कहकर उसे सुप्रीम कोर्ट से निर्देश दिलाना चाहता है। जनहित याचिकाओं व कुछ मामलों में न्यायाधीशों द्वारा प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं पर स्वतः संज्ञान लेने के कारण दिल्ली व एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण समस्या से निपटना अब लगातार सरकारें बनाम सुप्रीम कोर्ट होने लगा है। सुप्रीम कोर्ट प्रदूषण के मामलों पर जमीनी नतीजे चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जब दिल्ली की गंभीर प्रदूषित वायु स्थितियों को देखते हुए नवंबर, 2021 को दिल्ली प्रशासन के निर्णय को पलट दिया था जो फिर से निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति देता था तो दिल्ली के बिल्डर संगठनों ने उससे निर्माण कार्यों पर लगी रोक पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। इस पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि यदि सरकारें स्वयं सब काम करने लगें तो जनहित याचिकाओं की आवश्यकता ही क्यों हो।