डॉ. वीरेन्द्र सिह लाठर
पिछले 6 वर्षों में सरकार द्वारा रिकार्डतोड़ गेहूं उत्पादन के दावों के विपरीत, गेहूं के उत्पादन और उत्पादकता में ठहराव देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। पिछले 50 वर्षों से, हरित क्रांति दौर की तकनीकों को अपनाने से मुख्य अनाज फसलों गेहूं-धान की पैदावार में लगातार विकास ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को स्थायित्व प्रदान किया है।
भारत में गेहूं की खेती परम्परागत तौर पर उत्तरी प्रदेशों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि के मैदानी क्षेत्रों में भरपूर मात्रा में होती है। लेकिन पिछले 3 दशकों में सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि होने से देश के मध्य क्षेत्र के प्रदेश राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि भी गेहूं उत्पादक राज्य बन गये हैं। वर्ष 2022-23 के दौरान, भारत में 110 मिलियन टन गेहूं उत्पादन हुआ और वैश्विक बाज़ार में 11,826.90 करोड़ रुपये की कीमत का कम गेहूं निर्यात किया गया।
दुनियाभर में, भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में 2000 के बाद से, गेहूं उत्पादन करने वाले क्षेत्र में 17 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि गेहूं उत्पादन में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है। प्रकृति में, गेहूं की फसल को अच्छी पैदावार के लिए ज्यादा अवधि के सर्दकालीन ठंडे मौसम की ज़रूरत होती है, इसलिए गेहूं फसल की खेती को दक्षिण व तटीय प्रदेशों में बढ़ाना तकनीकी तौर पर सम्भव नहीं है।
केन्द्र सरकार के सार्वजनिक सूचना ब्यूरो द्वारा 14 मार्च, 2023 को जारी जानकारी के अनुसार वर्ष 2022-23 में गेहूं लगभग 31.86 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर उगाया गया और वर्ष 2014 से 2023 के दौरान देश में गेहूं खेती के क्षेत्रफल में मामूली वृद्धि दर्ज हुई, जो मुख्यत: मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान आदि मध्य क्षेत्र के प्रदेशों में हुई है। जबकि परम्परागत गेहूं उत्पादक प्रदेशों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि में गेहूं खेती का क्षेत्रफल पहले से कम हुआ और हरियाणा में तो गेहूं की उत्पादकता में भी कमी दर्ज हुई है। देश में पिछले 6 वर्षों से 95 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र में होने के बावजूद गेहूं फसल की उत्पादकता 33-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पर अटकी हुई है। जो देश में गेहूं की उत्पादकता में ठहराव का सूचक है।
ऐसे में लगातार बढ़ती जनसंख्या की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए, वर्ष 2050 तक भारत को 140 मिलियन टन गेहूं की आवश्यकता का अनुमान सरकार द्वारा लगाया जा रहा है। लेकिन भविष्य में गेहूं खेती के क्षेत्रफल के बढ़ने की ज्यादा संभावना नहीं है। इसलिये गेहूं फसल की उत्पादकता को मौजूदा 34 से 47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखना होगा। जो कि देश में उपलब्ध उन्नत तकनीक के आधार पर असंभव तो नहीं, लेकिन मुश्किल ज़रूर रहेगा। क्योंकि उत्तर भारतीय गेहूं उत्पादक प्रदेशों पंजाब और हरियाणा आदि में गेहूं फसल की औसत पैदावार 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास ठहर गई है, और मध्य भारत के प्रदेशों में, गेहूं फसल को कम अवधि के सर्द मौसम मिलने से, गेहूं की औसत पैदावार में एक-तिहाई की कमी रहती है।
दुर्भाग्य से, भारत में उपलब्ध फसल उत्पादन के सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी गहरा संकट छाया हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से, पहले रिकार्डतोड़ फसल उत्पादन का दावा करने के बाद, सरकार स्वयं ही गेहंू जैसी मुख्य फसलों के आंकड़े घटाती रही है। वर्ष 2021-22 में, सरकार ने पहले 111 मिलियन टन से ज्यादा गेहूं उत्पादन का दावा किया था, लेकिन बाद में इन आंकड़ों को लगभग 6 प्रतिशत घटाकर 105 मिलियन टन करना पड़ा था।
इन आंकड़ों के कारण ही सरकार वर्ष 2022-23 सीजन में 44.4 मिलियन टन लक्ष्य के मुकाबले मात्र 18.8 मिलियन टन और वर्ष 2023-24 सीजन में 34 मिलियन टन लक्ष्य के मुकाबले मात्र 26 मिलियन टन गेहूं की सरकारी खरीद कर सकी है। इसके दुष्प्रभाव से सरकार को अचानक गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पड़े थे। अमेरिका के कृषि विभाग के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 से 2023 के दौरान, गेहूं का कुल उत्पादन औसतन 107 मिलियन टन और उत्पादकता 3.4 टन प्रति हेक्टेयर के आसपास थम गई है। इसी तरह धान की औसत पैदावार भी लगभग 4.1 टन प्रति हेक्टेयर पर ठहरी हुई है। इसी दौरान भारत के कुल धान उत्पादन में दर्ज हुई वृद्धि, धान क्षेत्र के बढ़ने (44 से 47 मिलियन हेक्टेयर) के कारण से हुई है। वर्ष 2023-24 में चावल उत्पादन 132 मिलियन टन रहा।
अनुमान के अनुसार भारत में घरेलू खपत के लिए 105 मिलियन टन गेहूं और 109 मिलियन टन चावल वार्षिक की आवश्यकता होती है। ज़िसके अनुसार वर्तमान में गेहूं-धान का उत्पादन देश की वार्षिक घरेलू मांग के लगभग बराबर ही हो रहा है। इसलिये मौसम में बदलाव होने पर, सरकार को घरेलू सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए गेहूं और चावल के निर्यात व स्टाक लिमिट जैसे प्रतिबंध बार-बार लगाने पड़ते हैं।
ऐसे हालात में, सरकार के नीतिकारों द्वारा गेहूं-धान के फसल चक्र की बजाय फसल विविधीकरण की अव्यावहारिक बातें करना राष्ट्रीय हित में नहीं है। हाल ही में हरियाणा और पंजाब सरकारों द्वारा बजट सेशन में पेश वार्षिक ‘इकोनोमिक सर्वे रिपोर्ट’ भी इन प्रदेशों में पिछले 5 वर्षों में गेहूं उत्पादन और उत्पादकता में ठहराव की पुष्टि करती है।