राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को आगामी 13 नवंबर को होने वाले सात विधानसभा उपचुनावों से फिर चुनावी परीक्षा का सामना करना पड़ेगा। यह उपचुनाव भाजपा सरकार के 11 महीने के कार्यकाल का ‘लिटमस टेस्ट’ माना जा रहा है, जिसमें यह देखा जाएगा कि सरकार ने जनता को कौन सी योजनाओं का लाभ दिया और उनका कितना प्रभाव पड़ा। इन सात उपचुनावों में झुंझुनू, रामगढ़, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, सलूंबर और चौरासी सीटें शामिल हैं, जिनमें से पांच सीटें लोकसभा चुनाव 2024 के बाद खाली हुई हैं।
बता दें कि इन सात सीटों में से कांग्रेस का चार, बीएपी, आरएलपी और बीजेपी का एक-एक सीट पर कब्जा था। कुल 200 सदस्यों वाली विधानसभा में अभी भाजपा के 114 विधायक, कांग्रेस के 65, बीएपी-3, बसपा-2, आरएलपी-1, निर्दलीय 8, और रिक्त 7 हैं।
इन उपचुनावों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ये भाजपा के कार्यकाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन होगा। इन सीटों के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, जहां परिवारवाद और सहानुभूति आधारित उम्मीदवारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण के लिए, कांग्रेस ने रामगढ़ सीट पर भूतपूर्व विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबैर को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने इस सीट पर सहानुभूति को प्रमुख मुद्दा बनाते हुए अपने प्रत्याशी को उतारा है। वहीं भाजपा ने सुखवंत सिंह को टिकट दिया है, जो 2023 विधानसभा चुनाव में आजाद समाज पार्टी से हार चुके थे।
झुंझुनू से बृजेंद्र ओला (सांसद) के पुत्र अमित ओला को टिकट दिया गया है, जबकि भाजपा ने राजेंद्र भम्भू को इस सीट पर मैदान में उतारा है। यह सीट ओला परिवार के लिए महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि इस परिवार ने यहां पर कई चुनावों में सफलता हासिल की है। सलूंबर सीट पर भाजपा ने स्व. अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी मीणा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने रेशमा मीणा को मैदान में उतारा है। यहां बीएपी प्रत्याशी जीतेश कटारा त्रिकोणीय मुकाबला बना रहे हैं।
खींवसर सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने उम्मीदवारों को उतारा है। भाजपा ने रेवत राम डांगा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने रतन चौधरी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर पहले ही आरएलपी के हनुमान बेनीवाल का प्रभाव था, जिन्होंने नागौर लोकसभा सीट पर भी जीत हासिल की थी। इस सीट पर अारएलपी से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका प्रत्याशी हैं।
दौसा सीट पर भाजपा ने किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने दलित प्रत्याशी दीनदयाल बैरवा को टिकट दिया है। यह सीट मीणा और गुर्जर समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है, जहां दोनों दल अपनी-अपनी जीत के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। दौसा सीट को लेकर दोनों दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है क्योंकि यह सीट राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
देवली-उनियारा और चौरासी सीटों पर भी जातीय और क्षेत्रीय समीकरण महत्वपूर्ण होंगे। चौरासी सीट पर बीएपी के अनिल कटारा, कांग्रेस के महेश रोट और भाजपा के करिलाल नैनोमा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। चौरासी सीट पर आदिवासी मुद्दों का प्रभाव भी देखा जा सकता है, क्योंकि शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का आदिवासी विरोधी बयान भाजपा को कुछ हानि पहुंचा सकता है, लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को इस आदिवासी बेल्ट में नुकसान हुआ थ्ाा।
देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस के केसी मीणा और भाजपा के राजेंद्र गुर्जर के बीच मुकाबला दिलचस्प होगा। इस सीट पर टोंक लोकसभा से जीते हरीश मीणा की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। इस सीट पर राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ पार्टी के प्रभाव और उम्मीदवारों की छवि भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
यह उपचुनाव भाजपा के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति प्रस्तुत करता है, क्योंकि पिछले कुछ उपचुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है, जैसे कि बागीडोरा और सरदारशहर सीटों पर। भाजपा को इन हारों से कुछ सीखने का अवसर मिला है और इस बार वह चुनाव में कुछ नया करना चाहती है। भाजपा ने अपने विकास के एजेंडे को प्रमुखता से रखा है, जिसमें ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी), किसानों के लिए बेहतर एमएसपी और जनजातीय अधिकारों का मुद्दा प्रमुख हैं।
हालांकि, भाजपा के अंदरूनी विवाद और बागी विधायकों का चुनावी हस्तक्षेप पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का प्रभाव और उनके समर्थकों की चुप्पी भी भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है। इसके बावजूद, भाजपा राज्य के नेताओं, कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।
भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा उपचुनावों में जीत का दावा कर रही है। भाजपा के लिए यह उपचुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसके परिणाम मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के भविष्य और मंत्रिमंडल विस्तार पर असर डाल सकते हैं। इसके अलावा, लोकसभा चुनाव 2024 में कई सीटों पर हुई हार का असर हो सकता है। राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस दोनों की ओर से ये उपचुनाव प्रतिष्ठा और राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।