रेनू सैनी
रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध पंक्तियां हैं, ‘यह प्रदीप जो दिख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है। थककर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है।’ इस कविता में कवि यात्री को प्रेरित करता है कि जब इतने लंबे सफर तक चले आए हो तो रुको नहीं, आगे बढ़ो। लेकिन कई बार जीवन में रुकना भी जरूरी होता है। अगर थकान या दुर्घटना होने पर लगातार आगे बढ़ते रहें तो व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से बीमार हो जाता है। जीवन में सुख एवं आनंद की अनुभूति के लिए रुकना और ठहरना जरूरी है।
ऐसा सिर्फ इनसानों के साथ ही नहीं, बल्कि प्रकृति और जीव जंतुओं के साथ भी होता है। ‘द वन स्ट्रॉ रिवॉल्यूशन’ में मसानोबू फुकुओका ने प्राकृतिक खेती संबंधी अपने प्रयोगों के बारे में लिखा है कि प्रकृति को अपना काम करने दिया जाए और उसमें कम से कम संभव हस्तक्षेप किया जाए। प्रकृति में कई चीजें प्राकृतिक रूप से बढ़ती हैं। यदि हम अधिक फसल एवं उत्पादन के लालच में लगातार नई खोजें करने लगते हैं तो कई बार विपरीत परिणाम सामने आते हैं। वहीं प्रकृति भी छेड़छाड़ से रुष्ट हो जाती है और प्राकृतिक आपदाएं व्यक्ति को लील जाती हैं।
जब कई लोग अपने खेतों में रसायनों और मशीनों का प्रयोग कर रहे थे, उस समय फुकुओका चेतन रूप से कुछ नहीं कर रहे थे। फिर भी ऊंची पैदावार तथा मिट्टी की बढ़ती समृद्धि के पुरस्कार उन्हें ही मिल रहे थे। आखिर ऐसा क्यों था कि अच्छे रसायन एवं मशीनें भी वे उत्पादन करने में असमर्थ सिद्ध हो रही थीं जो फुकुओका प्राकृतिक तरीके से करके पा रहे थे।
फुकुओका कहते हैं कि, ‘अपनी छेड़छाड़ से इनसान कुछ गलतियां कर देते हैं, फिर नुकसान को बिना सुधारे छोड़ देते हैं। विपरीत परिणाम मिलने पर वे पूरी ताकत से इन्हें सुधारने के लिए काम करते हैं। जब सुधारात्मक कार्य सफल नज़र आते हैं, तो वे इन कदमों को शानदार उपलब्धियां मानने लगते हैं। यह तो ऐसा ही है कि कोई मूर्ख अपनी छत के खपरैलों पर कूदे और उन्हें तोड़ दे। जब बारिश होने पर छत टपकने लगे तो वह उसे ठीक करने के लिए खपरैल पर चढ़े और अत्यंत मेहनत, ऊर्जा एवं रुपयों की बर्बादी करने पर उसे ठीक करके नाचे कि उसने तो कमाल कर दिया।’
हम लोग भी अक्सर ऐसा ही करते हैं। दुर्घटना अथवा थकने पर भी कई बार बिना सोचे समझे, बिना रुके चलते जाते हैं। जब अर्थ का अनर्थ हो जाता है तो फिर उसके सुधार पर असीमित ऊर्जा एवं वित्त का व्यय करते हैं। दरअसल रुकना हमारे स्वभाव में नहीं है क्योंकि रुकने को हम नकारात्मक तरीके से लेते हैं। रुकने में हिम्मत की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम रुक जाते हैं तो अन्य लोग आगे बढ़ रहे होते हैं। हम लोगों को लगता है कि सबसे पीछे रहने वाले की न ही मिसालें दी जाती हैं और न ही वह प्रथम आता है लेकिन ऐसा नहीं है।
कैरॉली टेकास हंगरी की सेना में सार्जेंट थे। 1938 में 28 साल की आयु में वे देश के सर्वश्रेष्ठ पिस्टल शूटर थे। सभी का मानना था कि 1940 के टोक्यो ओलम्पिक गेम्स में वे स्वर्ण पदक जीतने के प्रबल दावेदार हैं। लेकिन दुर्घटनावश 1938 में एक सैन्य प्रशिक्षण सत्र में कैरॉली के हाथ में एक बम फट गया। उससे उनका दायां हाथ पूरा उड़ गया। इतनी बड़ी दुर्घटना होने पर उन्होंने आनन-फानन में आपा नहीं खोया। लगभग एक महीना वे अस्पताल में रहे। थोड़ा ठहरकर, विश्राम कर उन्होंने स्वयं से कहा, कि अभी मेरे पास बायां हाथ है। मैं अपने बाएं हाथ से अभ्यास करूंगा और एक दिन अपने देश के लिए पिस्टल शूटिंग में स्वर्ण पदक जीतूंगा।
इसके बाद वे दुनिया की नजरों से दूर, अपने बाएं हाथ से शूटिंग का अभ्यास करने लगे। उस दर्द के बावजूद अब उन्हें अपने वे सारे काम बाएं हाथ से करने पड़ रहे थे जो अभी तक दाएं हाथ से करते थे। लेकिन उनकी मानसिकता एक विजेता की बन चुकी थी। वर्ष 1939 में वे नेशनल चैम्पियनशिप में आए। वहां पर बहुत सारे बेस्ट पिस्टल शूटर थे। उन्हें लगा कि कैराॅली उनका हौसला बढ़ाने आए हैं। वे उनके पास जाकर बोले, ‘सर, आपकी हिम्मत की दाद देनी होगी जो इतनी बड़ी दुर्घटना होने पर भी आप यहां पर हमारा हौसला बढ़ाने आए हैं।’
यह सुनकर कैरॉली मुस्कराते हुए बोले, ‘मैं यहां तुम्हारे साथ अपना भी हौसला बढ़ाने आया हूं। मैं यहां तुम्हारे साथ मुकाबला करने आया हूं।’ इसके बाद उन्होंने ओलम्पिक के लिए तैयारी की लेकिन विश्व युद्ध के कारण दो बार के ओलम्पिक टल गए। आखिर 1948 में, लंदन में होने वाले ओलम्पिक में पिस्टल शूटिंग चैम्पियनशिप में हंगरी का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें चुना गया। हेल्सिंकी ओलम्पिक में पिस्टल शूटिंग मुकाबले में आखिर कैराॅली टेकास ने अपने सपने को पूरा कर लिया। वे स्वर्ण पदक जीत चुके थे। अगर दुर्घटना होने के बावजूद कैराली रुककर स्वयं को नहीं निखारते तो आज उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज नहीं होता। इसलिए जीवन में प्राकृतिक आपदाएं आएं अथवा विपरीत परिस्थितियां, उनसे घबराकर आगे न भागें। कुछ समय के लिए थोड़ा रुक जाएं। आप पाएंगे कि कुछ समय बाद तूफान गुजर चुका होगा एवं मार्ग आपको मंजिल तक पहुंचाने के लिए साफ हो गया होगा।