विवेक शुक्ला
जब हमारी कश्मीर घाटी में लोकसभा चुनाव का प्रचार जारी है, तब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के बहुत बड़े हिस्से में अवाम सड़कों पर है। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 130 किलोमीटर दूर पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद और मीरपुर जैसे प्रमुख शहरों में जनता सरकार से दो-दो हाथ करना चाहती है। जनता पीओके सरकार और देश की संघीय सरकारों से अपना हक मांग रही है।
पीओके में जब आंदोलन चल रहा है, तब भारत में चल रहे लोकसभा चुनाव की कैंपेनिंग के दौरान पीओके का जिक्र आ रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीते रविवार को कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का है, उसे हम लेकर रहेंगे। उल्लेखनीय है कि पीओके को भारत से मिलाने पर भारतीय संसद का एक अहम प्रस्ताव भी है।
बहरहाल, पीओके की बिगड़ती स्थिति की वजह से पाकिस्तान के रहनुमाओं की रातों की नींदें उड़ गई हैं। पाकिस्तान तो भारत के जम्मू-कश्मीर पर बार-बार अपना दावा करता है, पर दुनिया देख रही है कि उसके कब्जे वाला कश्मीर जल रहा है। पीओके की अवाम बिजली की भारी-भरकम बिलों और आटे के आसमान छूते दामों के कारण आक्रोशित है। वहां पर संकट गहराता जा रहा है।
दरअसल, सोशल मीडिया के दौर में पीओके की जनता देख रही है कि भारत के कश्मीर में जनता कम से कम बिजली के बिलों या आटे की आसमान छूती कीमतों के कारण तो नाराज नहीं है। वहां अन्य मसले हो सकते हैं, पर कुल मिलाकर जीवन सुकून भरा है। पीओके में ताजा हिंसक आंदोलन की तात्कालिक वजह यह है कि पाकिस्तान सरकार ने आटे की कीमतों को कम करने की मांग को मानने से इंकार कर दिया है। बिजली के बिल कम करने पर तो सरकार आंदोलनकारियों से कोई बात करने तो वैसे भी तैयार नहीं है।
दरअसल, पीओके में बवाल तब शुरू हुआ जब अवामी एक्शन कमेटी ने 8 मई, 2024 को अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किए थे। इससे पहले, बीते साल अगस्त में बिजली बिलों पर नए करों को लगाने से स्थिति बिगड़ने लगी थी। इन करों के विरोध में मुजफ्फराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू किए थे, जिन्हें स्थानीय व्यापारियों का समर्थन मिला। ये प्रदर्शन जल्दी ही रावलकोट और मीरपुर जिलों तक फैल गए। पिछले साल 17 सितंबर को मुजफ्फराबाद में एक बैठक के बाद, अवामी एक्शन कमेटी ने अपने आंदोलन को राज्यव्यापी करने का फैसला किया। इसके बाद पीओके में बिजली बिल जलाये जाने लगे। इसके जवाब में, सरकार ने कई आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया, लेकिन जनता के दबाव के कारण उन्हें रिहा कर दिया। इसके बाद आंदोलनकारियों की तरफ से सरकार को 10 सूत्रीय मांगों की सूची सौंपी गई। इस सूची में आटे पर सब्सिडी और बिजली के बिलों में कमी करने की मांगें शामिल थीं। पर, सरकार बिजली बिलों में कमी और आटे के दाम कम करने के लिए तैयार नहीं हुई।
यही वजह है कि सरकार की हठधर्मिता से नाराज अवामी एक्शन कमेटी ने मुजफ्फराबाद स्थित पीओके विधानसभा तक मार्च करने का आह्वान किया। 9 मई को डोडियाल में एक डिप्टी कमिश्नर पर उस समय हमला किया गया जब उन्होंने एक भीड़ को तितर-बितर करने के आदेश दिए। 10 मई को पीओके के प्रदर्शनकारी मुजफ्फराबाद की ओर मार्च करने के लिए निकले, जिसके कारण गंभीर झड़पें हुईं। एक आला पुलिस अफसर की मौत हो गई। इसके बाद पीओके के मुख्यमंत्री अनवर उल हक सरकार को जनता के गुस्से से दो-चार होना पड़ रहा है। हक की छवि एक बेहद कड़क नेता की है। वे बात-बात पर आपा खो देते हैं।
पीओके के मीरपुर जिले में 9 मई को एक डिप्टी कमिश्नर को प्रदर्शनकारियों ने बुरी तरह पीटा और उसकी कार को फूंक भी दिया था। फिलहाल लगता तो यही है कि अवामी एक्शन कमेटी का अपनी मांगों के समर्थन में चल रहा आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगों को मान नहीं लिया जाता। हां, सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच रावलकोट में बातचीत फिर से शुरू हो गई। पर यह देखने वाली बात है कि क्या पाकिस्तान सरकार, जो पीओके सरकार के साथ खड़ी है, प्रदर्शनकारियों की मांगों को स्वीकार करेगी? फिलहाल लगता तो नहीं है। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ तो प्रदर्शनकारियों पर एक्शन लेने के संकेत दे रहे हैं। पीओके में चल रहे प्रदर्शन पर हमारे उन कश्मीरियों को नजर रखनी चाहिए जिन्हें भारत से सिर्फ शिकायतें रहती हैं।
इस बीच, लगता है कि कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और फारूक अब्दुल्ला को पीओके पर भारतीय संसद में पारित प्रस्ताव की जानकारी ही नहीं है। इसलिए ही ये कह रहे हैं कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है। इन्हें पता होना चाहिए कि 22 फरवरी, 1994 बेहद खासमखास दिन है- भारत की कश्मीर नीति की रोशनी में। उस दिन संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर अपना हक जताते हुए कहा था कि पीओके भारत का अटूट अंग है। पाकिस्तान को उसे छोड़ना होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है।
महत्वपूर्ण है कि जिसे हम पीओके कहते है, वह जम्मू का हिस्सा था न कि कश्मीर का। इसलिए उसे कश्मीर कहना ही गलत है। वहां की जुबान कश्मीरी न होकर डोगरी और मीरपुरी का मिश्रण है। बहरहाल, ये आने वाला समय बताएगा कि पीओके में चल रहा आंदोलन शांत होता है या नहीं।