मुकुल व्यास
हमारा ब्रह्मांड विचित्रताओं और रहस्यों से भरपूर है। इसके बारे में बहुत-सी चीजें अभी तक अज्ञात हैं। खगोल वैज्ञानिक निरंतर इन रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश करते रहते हैं। इस क्रम में उन्होंने कुछ ऐसी अनोखी संरचनाओं का पता लगाया है, जिनके बारे में पहले नहीं सुना गया था। इन संरचनाओं में हजारों प्रकाश वर्ष दूर तक फैली पट्टी, पटाखों की लड़ियों जैसी आकृतियां और प्रचंड ऊर्जा छोड़ने वाले पिंड शामिल हैं। खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में पृथ्वी से 55000 प्रकाश-वर्ष दूर एक हाइड्रोजन की लंबी पट्टी खोजी है। उनका कहना है कि यह हमारी मिल्की-वे यानी आकाशगंगा की सबसे बड़ी संरचना है। मैगी नामक हाइड्रोजन की यह विशाल पट्टी 3900 प्रकाश वर्ष लंबी और 130 प्रकाश वर्ष चौड़ी है। यह करीब 13 अरब वर्ष पहले बनी थी। जर्मनी के मैक्स प्लांक एस्ट्रोनॉमी इंस्टिट्यूट के खगोल वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के गाइया उपग्रह की मदद से इस संरचना की नाप-जोख की है।
इस अध्ययन के एक सह-लेखक जुआन सोलेर को एक वर्ष पहले इस संरचना के अस्तित्व के कुछ संकेत मिल गए थे। उन्होंने अपने देश कोलंबिया की सबसे लंबी नदी के नाम पर इस संरचना का नाम मैगी रखा। आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण में मैगी को पहचानना संभव हो गया था लेकिन वर्तमान अध्ययन से ही यह साबित हुआ कि यह एक लंबी पट्टी है। बिग बैंग अथवा ब्रह्मांडीय महाविस्फोट के करीब 380000 वर्ष बाद हाइड्रोजन का निर्माण हुआ था। मिल्की-वे का गठन उससे एक अरब साल पहले हुआ था। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला पदार्थ है। लेकिन इस गैस को डिटेक्ट करना बहुत ही दुष्कर कार्य है। इस संदर्भ में हाइड्रोजन की लंबी पट्टी की खोज बहुत ही रोमांचक है।
इस अध्ययन के प्रथम लेखक जोनास सैयद ने कहा कि पट्टी की लोकेशन से इस खोज में मदद मिली। हम अभी यह नहीं जानते कि ये पट्टी वहां कैसे बनी लेकिन यह मिल्की-वे के समतल करीब 1600 प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है। इसकी वजह से हाइड्रोजन से होने वाले विकिरण को पृष्ठभूमि में आसानी से देखा जा सकता है। इससे पट्टी को देखना संभव हो जाता है। मैगी का गहराई से विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि पट्टी में कुछ बिंदुओं पर गैस आकर मिलती है। ये संभवतः वे क्षेत्र हैं जहां गैस जमा होकर बड़े बादलों में तब्दील होती है। शोधकर्ताओं का ख्याल है कि ऐसे क्षेत्रों में आणविक गैस मॉलिक्यूल के रूप में परिवर्तित होती है। नया अध्ययन एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
मिल्की-वे में हाइड्रोजन की पट्टी को खोजने में गाइया उपग्रह का बहुत बड़ा योगदान है। यह उपग्रह इस समय मिल्की-वे आकाशगंगा का त्रिआयामी नक्शा तैयार कर रहा है। अपने मिशन के दौरान उसने इसकी संरचना, गठन और विकास के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। इस उपग्रह को दिसंबर, 2013 में भेजा गया था। तब से यह पृथ्वी की कक्षा से करीब 16 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूरज की परिक्रमा कर रहा है। अपनी यात्रा के दौरान वह मिल्की-वे की तस्वीरें खींच रहा है और छोटी आकाशगंगाओं के तारों की पहचान कर रहा है जिन्हें काफी समय पहले हमारी आकाशगंगा द्वारा निगल लिया गया था। गाइया के मिशन के दौरान हजारों पिंडों का पता चलने की उम्मीद है जो अभी तक खोजे नहीं गए हैं। इनमें निकटवर्ती तारों के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रह, पृथ्वी के लिए खतरा बनने वाले क्षुद्रग्रह और सुपरनोवा विस्फोट शामिल हैं। इस मिशन से भौतिक-खगोलविदों को अंतरिक्ष में डार्क मैटर (अदृश्य पदार्थ) के वितरण के बारे में नई जानकारियां मिलने की उम्मीद है। समझा जाता है कि यह पदार्थ ब्रह्मांड को जोड़े हुए है।
ब्रह्मांड से आने वाली रेडियो तरंगों की निगरानी करने वाले खगोल वैज्ञानिकों के एक दूसरे दल को एक ऐसे रहस्यमय पिंड का पता चला है जो प्रचंड ऊर्जा उत्सर्जित कर रहा है। ऐसी कोई चीज पहले कभी नहीं देखी गई थी। इस फिरकते हुए पिंड का पता मार्च, 2018 में चला था लेकिन इसकी पुष्टि आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण के बाद हाल ही में हुई है। पृथ्वी से करीब 4000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित इस पिंड से हर 18 मिनट में तीव्र विकिरण निकल रहा था। उन क्षणों में यह ‘ब्रह्मांडीय प्रकाश स्तंभ’ की तरह रेडियो तरंगों का सबसे चमकदार स्रोत बन गया था, जिसे पृथ्वी से भी देखा जा सकता था। खगोल वैज्ञानिकों का ख्याल है कि यह या तो किसी ढह चुके तारे का अवशेष है या कुछ और है।
दरअसल, तारे के अवशेष भी दो तरह के हो सकते हैं। या तो यह अवशेष किसी न्यूट्रॉन तारे का है या एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र वाले एक छोटे तारे (वाइट ड्वार्फ स्टार) का है। इस खोज का विवरण नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन की प्रमुख लेखक और ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन विश्वविद्यालय की खगोल भौतिकविद नताशा हर्ले-वॉकर ने कहा कि हमारे पर्यवेक्षण के दौरान यह पिंड कुछ-कुछ घंटों में प्रकट होता रहा और गायब होता रहा। यह हमारे लिए अप्रत्याशित घटना थी। कर्टिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता टायरोन डोहर्टी ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया स्थित मर्चिसन वाइडफील्ड टेलीस्कोप की मदद से इस अनोखे पिंड की खोज की।
इस बीच, मिल्की-वे के मध्य भाग की टेलीस्कोप से ली गई तस्वीर में करीब 1000 रहस्यमय लड़ियों का पता चला है जो अंतरिक्ष में लटकती हुई प्रतीत होती हैं। 150 प्रकाश वर्ष तक फैली हुई ये लड़ियां, जोड़ों या झुंड में हैं और हार्प वाद्य यंत्र के तारों की तरह समान दूरी पर स्थित हैं। अमेरिका की नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्स यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिक फरहद यूसफ-जादेह ने सबसे पहले अस्सी के दशक में मिल्की-वे में चुंबकीय लड़ियों का पता लगाया था। तब से इनकी उत्पत्ति को लेकर एक बड़ा रहस्य बना हुआ था अब टेलीस्कोप से ली गई नई तस्वीर में दस गुणा ज्यादा लड़ियां दिखाई दे रही हैं। नई जानकारी से इन लड़ियों के रहस्य को सुलझाने में मदद मिलेगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।