चेतनादित्य आलोक
महज कुछ महीने पहले ही फैशन में आये बुलडोजर की अहमियत और मांग इतनी तेजी से बढ़ी है कि अब डर सताने लगा है कहीं यह भी न महंगाई की भांति एटिट्यूड दिखाने लगे। जरा सोचिए कि उत्तर प्रदेश में लॉन्च होने के बाद महज कुछ महीनों के भीतर ही यह मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली से होकर राजस्थान तक कैसे गड़गड़ाता हुआ पहुंच गया। भारतीय समाज में बुलडोजर की बढ़ती स्वीकार्यता और इसकी तीव्र चाल को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सन् 2024 के आम चुनाव से पूर्व ही पूरे देश में इसका जलवा होगा। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि कलम घिस-घिसकर व्यंग्यशास्त्री बनने के हसीन सपनों की सवारी कर अंततः हाथ मलने से बेहतर यही है कि बुलडोजर बनाने वाली एक कंपनी ही खोल ली जाये।
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा बुलडोजर पर सवार हो फोटू खिंचवाने के बाद तो बुलडोजर बनाने वाली कंपनी खोलने का मेरा इरादा और पक्का हो गया। अब तो मुझे इस बिजनेस में तरक्की-ही-तरक्की दिखाई देने लगी है। मैंने तो बिजनेस बढ़ाने की पूरी प्लानिंग भी कर रखी है। मैंने निश्चय किया है कि प्रत्येक बुलडोजर खरीदने वाले को उसके सही उपयोग से संबंधित एक्सपर्टीज़ मुफ्त में उपलब्ध करवाऊंगा, ताकि बुलडोजर के प्रत्येक ग्राहक को इसके उपयोग के सर्वाधिक लाभकारी ठिकानों, समय और हालातों के संबंध में समय रहते सटीक जानकारियां प्राप्त हो सकें। ऐसा करने से बुलडोजर के न्यूनतम उपयोग पर अधिकतम लाभ प्राप्त करना संभव हो सकेगा। वैसे इस बुलडोजर-अभियान के बड़े लाभ होने वाले हैं। एक्सपर्टीज़ आधारित उपयोग के कारण फैशन की दुनिया में बुलडोजर का मार्केट वेल्यू लगातार बढ़ता ही जायेगा।
वैसे बोरिस जॉनसन ने बुलडोजर पर बैठने के साथ ही साबरमती आश्रम में चरखा चलाकर यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि बुलडोजर फैशन में तो आ गया है, परन्तु इसके कारण चरखे की अहमियत अभी तक घटी नहीं है। तात्पर्य यह कि बाजार में जब तक हिंसा के प्रतीक बुलडोजर की बढ़ती अहमियत के समक्ष अहिंसा के प्रतीक चरखे की ताकत बनी रहेगी, तब तक समाज में संतुलन बना रहेगा। बहरहाल, आप लोग अपने काम निपटाइये, मैं बुलडोजर की कंपनी खोलने जाता हूं।