सतीश मेहरा
चौधरी देवीलाल जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठे हुए एक सुलझे राजनीतिज्ञ और राष्ट्रवादी शख्स थे। उनका जन्म 25 सितंबर, 1914 को तत्कालीन हिसार जिला के तेजा खेड़ा गांव में हुआ, जो अब सिरसा जिले में हरियाणा के आखिरी छोर का गांव है। बचपन से ही राजनीति में रुचि होने के कारण चौधरी देवीलाल ने जीवन पर्यंत देश की आजादी की लड़ाई से लेकर हरियाणा गठन और गरीब तथा कामकाजी समाज को संगठित करने के लिए संघर्ष किया। कालांतर में राजनीति के शीर्ष पुरुष बने। हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के उपप्रधानमंत्री पद यानी सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने सदैव सादगी का जीवन जीया। चौधरी देवीलाल राजनीति और समाज सेवा की ऐसी संस्था थे, जिनके द्वारा रोपे गए पौधे अब वट वृक्ष बन चुके हैं और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में उनकी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे प्रखर नेता राजनीति में विरले ही मिलते हैं। चौधरी देवीलाल का दिल सदैव गरीब और कमेरे वर्ग के लिए धड़कता था। इसीलिए जनता ने चौधरी देवीलाल को जननायक का दर्जा दिया और पूरे देश में ‘ताऊ देवीलाल’ के नाम से मशहूर हुए।
जननायक होने का जीता-जागता उदाहरण वर्ष 1989 में देखने को मिला और बखूबी महसूस भी किया। चौधरी देवीलाल ने 31 मार्च, 1989 को गांव खेड़ी मसानिया में जिन परिस्थितियों में अनुसूचित जाति की चौपाल का उद्घाटन किया, उससे चौधरी देवीलाल को 36 बिरादरी का नेता होने की प्रामाणिकता और पुख्ता हुई थी।
यह मामला था कि उस समय मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने गांव-गांव में अनुसूचित जाति की चौपालों के निर्माण की घोषणा की थी और तमाम गांवों में चौपालों का निर्माण करवाया गया था। चौपाल के निर्माण के लिए मैचिंग ग्रांट के रूप में आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया था। अनुसूचित जाति की चौपाल के लिए मैचिंग ग्रांट देने की जिम्मेदारी तत्कालीन सरकार में उद्योग मंत्री डॉ. कृपाराम पूनिया को सौंपी गई थी। डॉक्टर पूनिया चौधरी देवीलाल के अत्यंत विश्वासपात्र थे और चौधरी देवीलाल उनकी हर बात पर विश्वास करते थे।
एक बार गांववासियों की सहमति से गांव में गुरु रविदास मंदिर का शिलान्यास और चौपाल के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए तत्कालीन उद्योग मंत्री डॉ. कृपाराम पूनिया का कार्यक्रम लेने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी। चंडीगढ़ में डॉक्टर कृपाराम पुनिया से मुलाकात के बाद 12 मार्च का कार्यक्रम तय हो गया। इसी के चलते 12 मार्च, 1989 को डॉक्टर कृपाराम पूनिया दोनों भवनों के उद्घाटन व शिलान्यास के लिए खेड़ी मसानियां गांव में आ रहे थे, तो कुछ लोगों ने षड्यंत्रकारी राजनीति के तहत उनका रास्ता रोक दिया और खेड़ी मसानिया गांव में न जाने के लिए कहा। स्थिति को भांपते हुए डॉक्टर कृपाराम पूनिया वापस चंडीगढ़ चले गए और चौधरी देवीलाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन यह खबर सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर छपी थी। हालांकि, मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। डॉक्टर कृपाराम पूनिया ने मुझे अगले दिन चंडीगढ़ बुलाया और इलाके के पूरे माहौल की जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ में ही मुझे चौधरी देवीलाल से मिलवाया। तब चौधरी देवीलाल ने मुझसे कहा, ‘हां, भाई छोरे, क्या चाहते हो तुम?’ मैंने उन्हें यही कहा कि डॉक्टर कृपाराम पूनिया तो आएं ही, आप भी हमारी चौपाल के उद्घाटन समारोह में आएं, तो क्षेत्र के गरीब, दलित और अनुसूचित जाति के लोगों को खुशी होगी। तब चौधरी देवीलाल ने विश्वास भरे शब्दों में अपने अंदाज में कहा, ‘मैं गांव खेड़ी मसानिया में 31 मार्च को आऊंगा और आप तैयारी करो।’
तब 12 मार्च और 31 मार्च के बीच बड़ी असमंजस की स्थिति बनी रही कि मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल खेड़ी मसानिया आएंगे या नहीं। इस दौरान कार्यक्रम का स्थान बदलने और कार्यक्रम को रद्द करवाने के लिए कई प्रकार से दबाव बनाया गया, लेकिन चौधरी देवीलाल ने सभी शंकाएं दूर करते हुए 31 मार्च को गांव की चौपाल का उद्घाटन और गुरु रविदास मंदिर का शिलान्यास किया। उन्होंने भारी भीड़ को संबोधित किया। साथ ही मैचिंग ग्रांट की घोषणा करते हुए उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि गरीब उत्थान और ग्रामीण विकास के लिए किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहने दी जाएगी।
इस प्रकार से गांव की चौपाल का निर्माण कार्य पूरा हुआ और आज यह एक आलीशान भवन बना है। फलत: आज खेड़ी मसानिया गांव के साथ-साथ पूरे हरियाणा के गरीब और कमेरे वर्ग के लोग इसे एक ऐतिहासिक क्षण मानते हुए चौधरी देवीलाल को याद करते हैं।