आलोक पुराणिक
सितंबर का महीना हिंदी का महीना होता है। सब तरफ हिंदी मच जाती है। हिंदी निदेशक, हिंदी अधिकारी, हिंदी सहायक वगैरह हिंदी मचा देते हैं। हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह वगैरह। इतने इतने निदेशक बने हुए हैं, हिंदी तब चल रही है। इंग्लिश का कोई इंग्लिश निदेशक नहीं है, इंग्लिश अधिकारी नहीं है, फिर भी इंग्लिश धुआंधार चल रही है।
मेरा निजी तजुर्बा है कि हिंदी बहुत समर्थ भाषा है और यह सबको समर्थ बना देती है। बरसों पहले एक सरकारी दफ्तर में मेरा जाना होता था, वहां के बंदे पूछते थे कि आप बताइये कार का नंबर क्या है, हमें पार्किंग का इंतजाम करना है। मेरे पास तब कार नहीं थी, तब इज्जत बचाने के लिए मैं कहा करता था कि भाईजी मैं गाड़ी की पार्किंग का इंतजाम खुद कर लूंगा।
गाड़ी कह दो तो यह पता नहीं चलता कि यह कार है या स्कूटर है। हिंदी में गाड़ी कहकर झूठ बोले बिना इज्जत बच जाती है। तभी हिंदी बहुत समर्थ भाषा है। इंग्लिश में तो साफ बताना पड़ता है कि कार है या स्कूटर है।
हिंदी बहुत समर्थ भाषा है पान-मसाला खिलाना हो, तो हिंदी काम आती है। पान-मसाला खाने का संदेश अमिताभ बच्चन या रणवीर सिंह राष्ट्रीय भाषा में देते हैं। इंग्लिश में पान-मसाला बेचना मुश्किल होता है। पान-मसाला इस देश की राष्ट्रीय गतिविधि है। स्टार लोग पान-मसाला बेचते हैं, आम आदमी पान-मसाला खाता है। यह काम हिंदी में होता है।
अब तो हिंदी के साथ दूसरी भारतीय भाषाओं और बोलियों का भी जलवा कायम हो रहा है। निरहुआ चलल अमेरिका जैसी फिल्में भी सुपरहिट हो रही हैं। एक दिन होगा जब अमेरिका में राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस में भौजी टाइप फिल्म हिट होगी। हिंदी भी हिट होगी। हिंदी बहुत समर्थ भाषा है।
खैर, सितंबर में हिंदी वालों की मौज आ जाती है, खासकर वो हिंदी के विद्वान टाइप माने जाते हैं। गोष्ठी सेमिनार वगैरह के लिए बुलाये जाते हैं। मैंने एक हिंदी अधिकारी से कहा कि ये जो विद्वान तुम बुलाते हैं, वो पिचहत्तर सालों से लगभग एक जैसी ही बातें कर रहे हैं, हिंदी को इनका क्या सहारा। हिंदी तो अपनी ही ताकत के चलते पान-मसाला बेच रही है। हिंदी अधिकारी ने बताया कि सरकारी फंड का बजट होता है। जिस मद का बजट होता है, उसी में खर्च करना होता है। हिंदी का बजट निपटाना होता है, तो हिंदी के विद्वान बुला लिये जाते हैं। प्राइवेट सेक्टर वाले नहीं बुलाते हिंदी के विद्वानों को, हिंदी के विद्वानों के लिए बजट प्राइवेट कंपनियों के पास नहीं होता। प्राइवेट वाले तो उसे ही हिंदी का विद्वान मानते हैं, जो हिंदी में पान-मसाला बेचने के काबिल हो।