अमिताभ स.
‘उम्मीद कीजिए अगर उम्मीद कुछ नहीं…’ किसी शायर ने हर हाल में उम्मीद बरकरार रखने के लिए क्या खूब फरमाया है। जिंदगी तमाम दुश्वारियों से भरी हुई है। बावजूद इसके इनसान जिंदगी और मौत में से जिंदगी को ही चुनता है, या चुनना चाहता है। दुखों के बीच भी आशा क़ायम रहती है और रहनी भी चाहिए। यही उम्मीद है कि जीने के बहाने लाखों हैं। उम्मीद की डोर थामने से ही इनसान अंदरूनी ताकत से लबालब हो उठता है। मुश्किल से मुश्किल दौर में यही अंदरूनी शक्ति इनसान को धुप्प अंधेरी सुरंग से खींच कर बाहर निकालने का दमख़म रखती है। किताबें, प्रवचन, सिनेमा, कलाकृतियां, दोस्त-गुरु आदि की मदद से अपने भीतर बखूबी उम्मीद के बीज बोए जा सकते हैं। ख्याल रहे कि केवल इनसान को ही ‘ह्यूमन बींइग’ कहते है। ‘बीइंग’ का मतलब है कि आप में वैसे होने की क्षमता है, जैसा आप होना चाहते हैं।
स्कूलों के अंग्रेज़ी पाठ्यक्रम में कथात्मक ओ हेनरी की एक लघुकथा है ‘द लास्ट लीफ़।’ उम्मीद को पकड़ कर, मौत के मुंह से बच कर निकलने की सबसे प्रेरक कहानी कह सकते हैं। कड़ाके की ठंड के दिनों में, शहर में जानलेवा निमोनिया फैला था। एक लड़की इसकी चपेट में आ गई। दवाइयां ने असर करना छोड़ दिया। लड़की बिस्तर से खिड़की के बाहर झांकती रहती। सोचती रहती कि सामने की बेल का जब आखिरी पत्ता गिर जाएगा, तो वह भी नहीं बचेगी। लेकिन अनहोनी हो गई। आखिरी पत्ता सही-सलामत रहा, न गिरा, न ही मुर्झाया। इस बीच आंधी तक आई और पानी भी खूब बरसा। देख-देख लड़की एकदम ठीक हो गई। बाद में जाहिर हुआ कि दीवार पर चढ़ी बेल का आख़िरी पत्ता एक माहिर पेंटर ने अपनी रंगों की कूची से बनाया था। यानी आखिरी पत्ता बेशक नकली था।
दूसरे शब्दों में, उम्मीद के साथ जीने से नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है। महात्मा बुद्ध यूं समझाते हैं कि पहले अपने मन को जीतो, फिर तुम असलियत में जीत जाओगे। उम्मीद की बड़ी अहमियत है क्योंकि इसके सहारे मौजूदा परिस्थितियों और वक्त को सहन करना सरल होता है। अगर हम मान लें कि कल ज़्यादा बेहतर होगा, तो आज हम ज़्यादा शक्तिपूर्वक और प्रभावी ढंग से विपदाओं को सह सकते हैं। नाउम्मीदी से मनोबल घटता है, जबकि उम्मीद को जिंदा रखने से बढ़ता है। विकट से विकट परिस्थिति कभी ख़राब नहीं होती, लेकिन हमें उनसे निपटना नहीं आता। मिसाल के तौर पर, पानी से कोई नहीं मरता, मरते तब हैं, जब हमें तैरना नहीं आता। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के शब्द भी सही हैं कि इनसान जितनी ज़्यादा सुरक्षा खोजता है, वह अपने जीवन के बदलाव को लेकर उतना ही अधिक परेशान रहता है।
उम्मीद, कोशिश और प्रार्थना में से क्या चुना जाए? सयाने बताते हैं कि पहले उम्मीद पैदा कीजिए, फिर कोशिश में जुटिए और आखिर में प्रार्थना कीजिए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता की पक्तियां हैं, ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता/ टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता…’ उम्मीद का दामन थाम कर, बचाव में किए छोटे-छोटे प्रयास भी वाक़ई बड़े साबित होते हैं। कहानी है कि एक दफा जंगल धू-धू कर जलने लगा। जानवरों में हड़कंप मच गया। जानवर जंगल से निकल कर भागने लगे। सभी गहरे सदमे और अफ़सोस में डूब गये, मूकदर्शक बन कर ताकने लगे। लेकिन एक नन्ही-सी गौरैया जुट गई। वह उड़ती नदी किनारे जाती और अपनी चोंच में कुछ बूंदें भर कर ऊपर आकाश से अपनी चोंच खोल कर जलते पेड़ों पर उढ़ेल देती। वह घंटों ऐसा करती रही। कोई जानवर या पक्षी उसके साथ नहीं लगा, उल्टा उसे नाउम्मीदी के भाव से ताने कसने लगे। एक बोला, ‘इतना विशाल जंगल और तुम नन्ही-सी? ‘दूसरा कहता, ‘अरे! बचना। कहीं तुम्हारे पंख ही न जल जाएं।’ गौरैया सोचने लगी कि उसके सभी साथी कितने निराशावादी हैं। पानी की बूंदें ले जाने के लिए उड़ान भरते-भरते गौरैया ने पीछे मुड़कर कर जवाब दिया, ‘मैं जो कर सकती हूं, कर रही हूं।’
बिल्कुल हर हाल में दिमाग का मिज़ाज ठंडा रखना है। हर सम्भव प्रयास करते जाना है। निराशा के भाव को घेरने नहीं देना। तय है कि आशा करते-करते ही निराशा छंटेगी, क्योंकि वैज्ञानिक तथ्य है कि उम्मीदी की प्रबल सोच से दो-तिहाई समस्याओं के समाधान खुद-ब-खुद निकलते जाते हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बड़ी से बड़ी समस्या से उतनी विपदा नहीं है, जितनी विपरीत सोच से है कि अब कुछ नहीं हो सकता। इसलिए सदा सुलझने की उम्मीद जगाना लाजमी है। यह भी समझना ज़रूरी है कि समय हर रोग का इलाज हरगिज नहीं है। समय तो महज मलहम का काम करता है और हमें सिखाता है कि दर्द के साथ जीना कैसे है। जिंदगी के कुछ सत्यों को हमेशा दिलोदिमाग़ में संजोए रखने से सुकून मिलता है। पहला, कि हमेशा युवा नहीं रहेंगे, बूढ़ा होना ही है। दूसरा, हमेशा स्वस्थ नहीं रह सकते, न ही सदा अस्वस्थ रहेंगे। तीसरा, कोई हमेशा साथ नहीं रहेगा। यानी जो आज तुम्हारे साथ है, ज़रूरी नहीं कि वह हमेशा ही साथ रहे। और चौथा है, कोई सदा जीवित नहीं रहता। इन बातों को मन में बांध कर रखने से आस नहीं टूटती।