प्रमोद भार्गव
हाल ही में उन अंतरिक्ष यात्रियों के नाम उजागर कर दिए गए, जिनमें से तीन को अंतरिक्ष में उड़ान भरने का अवसर मिलेगा। ये हैं- प्रशांत नायर, अजीत कृष्णन, अंगद प्रताप और शुभांशु शुक्ला। ये सभी फाइटर पायलट हैं जो भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान अभियान के साक्षी बनने गगनयान से सैर करने वाले हैं।
नि:संदेह, 40 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जा रहा है। परंतु इस बार वक्त भी हमारा है, काउंटडाउन भी हमारा है और रॉकेट भी हमारा है। इन यात्रियों को 2025 में पृथ्वी से 400 किमी दूर स्थित कक्षा में भेजा जाएगा। ये केवल तीन दिन वहां रहेंगे। फिर भारतीय समुद्र में इन्हें उतारा जाएगा। ये चारों यात्री रूस के यूरी गागरिन अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण ले चुके हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अभियान गगनयान की चरणबद्ध तैयारी में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 को उड़ान भरने के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित कर लिया है। गगनयान भारत का पहला ऐसा अंतरिक्ष अभियान होगा, जो तीन भारतीयों को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इस दृष्टि से इंजन में सुधार में मानव सुरक्षा रेटिंग प्रक्रिया को सफल मान लिया गया है। इस इंजन को मानव मिशन के योग्य बनाने की दृष्टि से चार अलग-अलग स्थितियों में 39 हाॅट फायरिंग टेस्ट से गुजरना पड़ा है। यह प्रक्रिया 8 हजार 810 सेकेंड तक चली। इस दौरान इन इंजनों को 6 हजार 350 सेकेंड तक जांच से गुजरना पड़ा। यह इंजन मानव रेटेड एलवीएम-3 प्रक्षेपण वाहन के ऊपरी चरण को शक्ति प्रदान करेगा। ये सब तैयारियां भेजे गए इंसान को सुरक्षित रूप में वापस लाने के लिए की जा रही हैं। यही इंजन अंतरिक्ष की उड़ानों से लेकर उपग्रहों के प्रक्षेपण एवं मिसाइल छोड़ने में काम आता है।
नि:संदेह, हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद इस क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की हैं। अन्यथा एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। अब वही रूस इस अभियान में हमारी सबसे ज्यादा मदद कर रहा है। असल में किसी भी प्रक्षेपण यान का यही इंजन वह अश्व-शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों व अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में पहुंचाने का काम करती है। दरअसल, भारत ने शुरुआत में रूस से इंजन खरीदने का अनुबंध किया था। लेकिन 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें बाधा उत्पन्न कर दी थी। इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी लेकिन छह क्रायोजेनिक इंजन जरूर भारत को शुल्क लेकर भेज दिए। कालांतर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की मदद से भारत को एमटीसीआर क्लब की सदस्यता भी मिल गई, लेकिन इसके पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते स्वदेश्ाी तकनीक के बूते चरणबद्ध रूपों में इंजन को विकसित कर लिया गया।
मानव मिशन की इस उड़ान के पहले चरण का सफल प्रक्षेपण इसरो पहले ही कर चुका है। देश के महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान से जुड़े पैलोड के साथ उड़ान भरने वाले परीक्षण यान के असफल होने की स्थिति में क्रू माॅड्यूल अर्थात् जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे, को बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद वापस सुरक्षित लाने के लिए ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ यानी चालक दल बचाव प्रणाली (सीईएस) का सफल परीक्षण कर इसरो विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। इस बचाव प्रणाली की जरूरत इसलिए थी, क्योंकि यान के असफल होने पर कई वैज्ञानिक प्राण गंवा चुके हैं। इस परीक्षण के अंतर्गत क्रू माॅड्यूल राॅकेट से अलग हो गया और बंगाल की खाड़ी में गिर गया।
इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ का कहना है कि इस मानव मिशन के लिए ‘पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली’ (ईसीएलएसएस) अन्य देशों से नहीं मिलने के कारण इसरो इसे स्वयं विकसित करेगा। गगनयान की उड़ान 2025 में भरी जाने की संभावना है। गगनयान परियोजना के तहत इसरो मानव चालक दल को 400 किमी ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा। बाद में सुरक्षित पृथ्वी पर वापस समुद्र में उनकी लैंडिंग कराई जाएगी।
उल्लेखनीय है कि मिशन के लिए 10 हजार करोड़ रुपये मंजूर किए जा चुके हैं। हालांकि अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष गए थे। इनके अलावा भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष जा चुकी हैं। अब अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानव-विहीन यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानव-युक्त यान अपनी मंजि़ल का सफर तय करेगा।