चेतनादित्य आलोक
दुनिया के तमाम विकसित देश विशेषकर अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन आदि इस बात का शोर मचाते नहीं थकते कि वे सभ्य देश हैं और दुनियाभर में यदि लोकतंत्र एवं मानवाधिकार सुरक्षित हैं तो केवल उनके ही कारण और वे ही हैं जो लोकतंत्र की गरिमा, शुचिता और इसका व्यावहारिक पक्ष सुरक्षित रखे हुए हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इन देशों में ही निर्दोष एवं मासूम विदेशी नागरिकों के साथ जिस प्रकार के व्यवहार किए जाते हैं, वे इन्हें असभ्य, नस्लवादी, रूढ़ एवं असहिष्णु समाजों की सूची में शामिल किए जाने के लिए पर्याप्त प्रतीत होते हैं।
इस संदर्भ में सबसे पहले चर्चा विदेश पढ़ाई करने जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों की, क्योंकि इस वर्ष जनवरी से मार्च तक ही केवल अमेरिका में लगभग एक दर्जन भारतीय विद्यार्थियों की हत्या कर दी गई अथवा संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। भारतीय विद्यार्थियों की हत्या के ये आंकड़े चौंकाते तो हैं ही, भयभीत भी करते हैं, क्योंकि ये आंकड़े अमेरिका में नस्लवाद के नए संस्करण के फैलाव के सबूत हैं और बाइडेन प्रशासन के भारत के प्रति उपेक्षात्मक एवं नकारात्मक रवैये का संकेत भी।
यह स्थिति तब है, जबकि भारतीय विद्यार्थियों के संबंध में दुनियाभर में प्रचलित है कि ये बेहद शालीन, विनम्र और अपनी पढ़ाई-लिखाई से वास्ता रखने वाले होते हैं। ये कभी भी बेवजह सरकार विरोधी अथवा स्थानीय संस्कृति और सभ्यता के विरोध में किसी प्रकार के आंदोलन आदि में भाग नहीं लेते। वे मित्र देश का किसी भी प्रकार से विरोध, अपमान या अहित नहीं करते हैं।
हालांकि, कारोबारी जगत की महत्वपूर्ण भूमिकाओं में भारतीय प्रोफेशनलों के प्रमुखता से उभरने के कारण दुनियाभर में भारतीय प्रोफेशनलों की मांग दिनोदिन बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत से विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने और वहीं बस जाने का क्रेज भी बढ़ा है। वैसे देखा जाए तो पश्चिमी देशों का नस्लभेदी रवैया बहुत पुराना है और यह केवल भारतीय विद्यार्थियों तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि इन विकसित देशों ने तो अपने असभ्य, नस्लवादी, रूढ़िवादी एवं असहिष्णु आचरण का शिकार अनेक भारतीय कलाकारों, खिलाड़ियों एवं अन्य प्रोफेशनलों समेत कई बड़े और विख्यात लोगों को भी बनाया है। याद कीजिए, 1893 में दक्षिण अफ्रीका में रेल यात्रा करते समय एक रेलवे स्टेशन पर महात्मा गांधी के विरुद्ध अंग्रेज सहयात्री द्वारा किए गए क्रूर नस्लभेदी व्यवहार को जिससे प्रेरणा लेकर गांधी जी ने नस्लभेद तथा रंगभेद के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था।
हाल के वर्षों में भी योजनाबद्ध तरीके से सिलसिलेवार अंजाम दी गई अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों में हिंदुओं के धर्मस्थलों पर पत्थरबाजी, मारपीट, लूटपाट एवं आगजनी की घटनाओं को भला कौन भुला सकता है, जिसकी दहशत आज भी वहां के भारतवंशियों के मन में विद्यमान है।
इसी प्रकार लंदन में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान कुछ कार सवार युवकों द्वारा भारतीय अभिनेता जॉन अब्राहम और अभिनेत्री बिपाशा बसु के रंग और भारत के बारे में घटिया टिप्पणियां करना, 2008 में ब्रिटेन के एक रियलिटी शो ‘बिग ब्रदर’ में कंटेस्टेंट जेड गुडी द्वारा बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी पर रंगभेदी टिप्पणी करना, अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को अमेरिका में पढ़ाई के दौरान सांवले रंग की वजह से ‘ब्राउनी’ कहकर चिढ़ाया जाना, नस्लभेद की वजह से प्रियंका को हॉलीवुड की एक फिल्म में कार्य करने से वंचित कर देना और रूस-यूक्रेन युद्ध के आरंभ में पूर्वी यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों का नस्लभेदी व्यवहारों का शिकार होना आदि पश्चिमी देशों के क्रूर नस्लभेदी व्यवहारों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
वहीं, ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुए एक टेस्ट के दौरान दो खिलाड़ियों जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज को दर्शकों द्वारा ‘ब्राउन डॉग’ कहकर संबोधित किया जाना तथा पूर्व खिलाड़ी और कमेंटेटर आकाश चोपड़ा पर इंग्लैंड में लीग क्रिकेट के दौरान रंग के आधार पर अपमानजनक टिप्पणियां करना भी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।