मान सरकार की मंत्रिपरिषद का विस्तार यूं तो आम आदमी सरकार के शासन के लक्ष्यों को विस्तार देने की कवायद ही है लेकिन साथ ही मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय व वर्गीय संतुलन कायम किया गया है। पंजाब में अप्रत्याशित जीत हासिल करके सत्ता में आई आप के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तीन दिन बाद उन्नीस मार्च को मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने पर दस मंत्रियों ने शपथ ली थी जिसमें सुशासन के संकल्पों व पार्टी के एजेंडे को क्रियान्वित करने की आकांक्षाओं को विस्तार दिया गया। मंत्रिमंडल में वरिष्ठता और राजनीतिक समीकरणों के चलते मंत्रियों का चयन किया गया था। उस समय सरकार में सात मंत्रियों के पद भरने बाकी थे। सरकार बनने के तीन माह बाद होने वाले इस मंत्रिमंडल विस्तार के बावजूद अभी तीन मंत्रियों के पद रिक्त हैं। भले ही मंत्रिमंडल का पहला विस्तार तीन माह बाद हुआ है लेकिन इस दौरान परिस्थितियों में तेजी से बदलाव हुआ है। सरकार कई मोर्चों पर लड़ रही है। लेकिन नये सिरे से पार्टी की लोकप्रियता का आकलन होने लगा है। इस बीच पार्टी ने प्रतिष्ठित संगरूर लोकसभा सीट खोई। इस हार से पार्टी को बड़ा झटका लगा है क्योंकि यह मुख्यमंत्री भगवंत मान की सीट रही है। इस सीट से वे दो बार सांसद भी चुने गये थे। एक मायने में विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद संगरूर चुनाव पार्टी की एक परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। उम्मीद थी कि सरकार अपने कार्यकाल की उपलब्धियों की तार्किक व्याख्या करके सरकार के आभामंडल को विस्तार दे पायेगी, ताकि संगरूर क्षेत्र के मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में लाने में कामयाबी मिल सके। यदि आप सरकार इस सीट के चुनाव को गंभीरता से लेती तो पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता नजर न आता। बहरहाल, सरकार का तीन माह का यह कार्यकाल मिलीजुली उपलब्धियों का ही रहा है। संगरूर की हार ने पार्टी के नीति-नियंताओं को आत्ममंथन करने को जरूर बाध्य किया है।
निस्संदेह, मान सरकार आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय एजेंडे को आगे बढ़ाने की कवायद में जुटी है लेकिन शासन की विसंगतियां भी सामने आ रही हैं। कानून-व्यवस्था के प्रश्न भी सामने आये हैं। सरकार की साख पर लोकप्रिय गायक मूसेवाला की हत्या ने सवाल खड़े किये हैं। हालांकि, भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की मुहिम को लोगों का सकारात्मक प्रतिसाद भी मिला है। मान सरकार यह दिखाने की चेष्टा कर रही है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को चलाकर वह जनता से किये वायदे को पूरा कर रही है। वह इस बात को प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत कर रही है कि उसने कदाचार के आरोप में अपने ही मंत्री को बर्खास्त करने में संकोच नहीं किया। कुछ नौकरशाहों के विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई की है। लेकिन प्रशासन में अनावश्यक हस्तक्षेप के आक्षेप भी लगे हैं। हालांकि, समग्रता में सरकार की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना जल्दबाजी होगी। यह अच्छी बात है कि भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने की कवायद को गति मिली है। वहीं पार्टी के घोषणापत्र में अहम मुद्दा रहे मुफ्त बिजली के वायदे को क्रियान्वित करने को सरकार ने निर्णायक कदम बढ़ा दिये हैं। दिल्ली में आप सरकार की बहुचर्चित मोहल्ला क्लीनिक योजना को अंतिम रूप देने की कोशिश जारी है। यह महज संयोग ही हो सकता है कि पंजाब में आम आदमी सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार ऐसे समय में हुआ है, जब महाराष्ट्र में आश्चर्यजनक घटनाक्रम के बाद बागी विधायकों ने अपनी मूल पार्टी छोड़कर नई सरकार बनवायी है। जिसमें राजनीति के बाजीगरों पर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे हैं। निस्संदेह, सत्ता में भागीदारी न मिलने से अलग धड़ा बनाकर सरकार गिराने व बनाने का खेल सभी राजनीतिक दलों के लिये एक चेतावनी जैसा है कि विधायकों की महत्वाकांक्षाओं का भी ध्यान रखना जरूरी है। वहीं दूसरी ओर यह पंजाब की अब तक की सबसे युवा कैबिनेट सामने आई है, जिसमें आठ मंत्री मालवा से हैं और दोआबा से केवल एक ही। निस्संदेह, अधिकांश मंत्री नये हैं और उनके पास इन दायित्वों का पुराना अनुभव नहीं है। लेकिन सरकार का आगे का कार्य चुनौतीपूर्ण होने वाला है।