आखिरकार सधे खेल और दिमागी मजबूती की लय में आस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड को आठ विकेट से हराकर अपना पहला टी-20 विश्वकप जीत लिया। कोरोना संकट के बीच रविवार को हुए फाइनल के साथ ही क्रिकेट के सबसे छोटे व रोचक प्रारूप के महाकुंभ का समापन हो गया। लेकिन न्यूजीलैंड टीम पूरे आत्मविश्वास के साथ बढ़िया खेली, वह बात अलग है कि आस्ट्रेलिया ने उसे जीत का मौका नहीं दिया। मैच का निर्णय 19वें ओवर में होना इस बात का परिचायक है कि न्यूजीलैंड ने डटकर मुकाबला किया। लेकिन खेल देखकर कोई शंका नहीं थी कि आस्ट्रेलिया नहीं जीतेगा। टीम व व्यक्तिगत रूप में बेहतरीन खेल में आस्ट्रेलिया के मिचेल मार्श और डेविड वार्नर की आतिशी पारियां याद की जायेंगी। संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में खेला गया टूर्नामेंट निस्संदेह भारत के लिये दु:स्वप्न जैसा साबित हुआ। पहले ही मैच में चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से करारी हार पूरे देश को कसक दे गई। विश्वकप जीतने के सपने से पहले ही टीम का सेमीफाइनल में पहुंचने का सपना टूट गया। दरअसल, छोटे प्रारूप के किसी विश्व कप मुकाबले में भारत पर पहली बार जीत दर्ज करने वाले पाक से हार के बाद भारतीय टीम के मनोबल में जो गिरावट देखी गई, उससे वह न्यूजीलैंड के साथ हुए मैच में भी नहीं उबर पायी। फिर तो छोटे देशों से होने वाले मैच तो औपचारिकता रह गये थे। विडंबना यह थी कि जिस अफगानिस्तान को भारत हरा चुका था, जिस न्यूजीलैंड से भारत हार चुका था, उम्मीद की जा रही थी कि वह अफगानिस्तान न्यूजीलैंड को हरा दे ताकि भारत सेमीफाइनल में पहुंच सके। मगर अफगानिस्तान पर न्यूजीलैंड की आठ विकट की जीत ने करोड़ों भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को निराश ही किया। फिर नामीबिया से मुकाबला तो महज औपचारिकता ही रह गई थी। वहीं पाकिस्तान ने सधा हुआ प्रदर्शन करते हुए दस अंकों के साथ सेमीफाइनल में जगह बनायी। हालांकि, खराब फिल्डिंग से अंतिम ओवरों में आस्ट्रेलिया के हाथों उसे शिकस्त हासिल हुई।
फिलहाल, भारतीय टीम की नाकामी पर देश में लगातार विमर्श चल रहा है। सवाल टीम में खिलाड़ियों के चयन को लेकर भी हैं। सवाल यह भी कि जिस माहौल में पहले से ही भारतीय टीम आईपीएल खेल रही थी और ठीक उसके बाद विश्वकप में उतरी तो उसे इस अनुभव का लाभ क्यों नहीं मिला? क्या भारतीय खिलाड़ी थक चुके थे? क्या कोच रवि शास्त्री की विदाई और विराट कोहली के टी-20 की कप्तानी से विदाई का मनोवैज्ञानिक दबाव खिलाड़ियों में नकारात्मकता भर गया? क्या टीम के खिलाड़ियों में मनभेद थे जो टीम जीत की लय में नजर नहीं आई? क्या टीम बायो बबल में रहते हुए थक गई थी? आखिर मजबूत बतायी जा रही भारतीय टीम की शुरुआत पाक से हारकर क्यों हुई? क्यों भारतीय खिलाड़ी न तो शुरुआत में बड़ा व तेज स्कोर बना पाये? क्यों गेंदबाज पाक के खिलाफ एक भी विकेट न ले पाये और न्यूजीलैंड के खिलाफ महज दो विकेट लेकर संतुष्ट रह गये? बाद के मैचों की स्थिति तो क्या वर्षा जब कृषि सूखानी जैसी हो गई। पाक के खिलाफ तो भारतीय टीम का शानदार रिकॉर्ड रहा है। भारतीय टीम सात बार वन डे विश्व कप और पांच बार टी-20 विश्वकप में पाकिस्तान को हरा चुकी थी। क्या भारतीय खिलाड़ी इसी मुगालते में थे कि विश्व कप में पाक को हराने में सदा किस्मत उनका साथ देती है? पाक के खिलाफ न तो बल्लेबाज ज्यादा तेज रन बना सके और न ही गेंदबाज विकेट ले सके। फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ तो भारतीय टीम पाक से मिली हार के मनोवैज्ञानिक दबाव से नहीं उबर पायी। यही नहीं बल्लेबाजी क्रम में किये गए कई बदलाव समीक्षकों के समझ में नहीं आये, जो विश्वकप जैसी प्रतियोगिता में करने वाले नहीं थे। सही मायनों में भारतीय टीम में वह जीत का जज्बा ही नजर नहीं आया जो एक विश्वविजेता टीम के लिये जरूरी होता है। कुल मिलाकर स्फूर्ति व जोश के अभाव में टीम की शारीरिक भाषा सकारात्मक नजर नहीं आई। सवाल चयनकर्ताओं पर भी उठे। बेहतर होता यदि आईपीएल में तूफानी प्रदर्शन करने वाले कुछ खिलाड़ियों को टीम में जगह मिलती।