वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन जिस तरह निर्माण कार्यों के जरिये भारत के लिये नित नयी चुनौती पैदा कर रहा है, लगता है उसके मुकाबले के लिये केंद्र सरकार ने कमर कस ली है। इसकी बानगी हाल ही में वर्ष 2022-23 के बजट भाषण में घोषित वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम में मिलती है, जिसमें भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ लगते इलाकों में अवसंरचना को विस्तार देने को प्रतिबद्ध है। इस योजना में सरकार विरल आबादी व सीमित संपर्क वाले अविकसित गांवों में संरचनात्मक विकास को गति देगी। दरअसल, चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे निर्जन इलाकों में निर्माण कार्य करके क्षेत्र में अपना दखल लगातार बढ़ा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से पूर्वी लद्दाख में चल रहे गतिरोध के बीच चीन नई बस्तियां बनाने में जुटा है, जिसका लक्ष्य भारत के लिये सामरिक चुनौती पैदा करके भारतीय संप्रभुता को चुनौती देना भी है। चीन इन इलाकों में सड़कों का जाल बिछा रहा है और अन्य सुविधाओं को विस्तार देता रहा है। पिछले दिनों अमेरिकी रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि चीन ने पिछले साल अपने तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र और भारत के अरुणाचल प्रदेश के बीच विवादित क्षेत्र के भीतर एक सौ घरों वाले एक गांव का निर्माण कर दिया है, जिसको लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर हुआ था। इतना ही नहीं, बीजिंग पैंगोंग त्सो झील पर एक पुल का निर्माण भी तेजी से कर रहा है, जिसका मकसद झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच सैनिकों की तेज आवाजाही को सुगम बनाना है। वहीं चीन सीमा पर जारी गतिरोध को खत्म करने के मूड में नजर नहीं आता। बीते साल अक्तूबर और इस साल जनवरी में कमांडर स्तरीय तेरहवें और चौदहवें दौर की वार्ता के बावजूद गतिरोध का न टूटना चीन के खतरनाक मंसूबों को दर्शाता है। अरुणाचल प्रदेश के भौगोलिक स्थलों व शहरों के चीनी नामकरण उसके खतरनाक मंसूबों को ही बताता है।
बहरहाल, बातचीत के सार्थक निष्कर्ष सामने न आने और चीन के अड़ियल रवैये के चलते भारत ने भी चीन को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि देश अब चीन द्वारा दरपेश चुनौतियों के मुकाबले के लिये दीर्घकालिक नीतियों पर चलेगा। चीन की इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये बजट प्रावधानों में सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ का पूंजी बजट ढाई हजार करोड़ से बढ़ाकर 3500 करोड़ कर दिया गया। निस्संदेह बजट में धनराशि में वृद्धि से सीमा सड़क संगठन को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजनाओं के काम में तेजी लाने में मदद मिलेगी। भारतीय सैनिकों की तेजी से वास्तविक नियंत्रण रेखा तक पहुंच बनाने के लिये सड़कों का विस्तार किया जा रहा है। इसी कड़ी में चीन की सीमा से लगे अरुणाचल के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तवांग में सेला सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। निस्संदेह, दूरदराज के इलाके में बुनियादी ढांचे के विकास से स्थानीय निवासियों का विश्वास हासिल करने में मदद मिलेगी। उनमें भी संदेश जायेगा कि देश उनकी सुरक्षा के प्रति चिंतित है। जब उनका विश्वास हासिल होगा तो वे सेना व खुफिया एजेंसियों के लिये आंख व कान का काम कर सकते हैं। हाल ही में अरुणाचल के एक किशोर के चीनी सैनिकों द्वारा अपहरण और उसका उत्पीड़न किये जाने से स्थानीय लोगों की चिंताएं बढ़ी हैं, जिसे दूर करने की पहल जरूरी है। वहीं दूसरी ओर, हालिया आम बजट में केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया की मुहिम के तहत रक्षा क्षेत्र को खासी तरजीह दी है। सरकार ने घोषणा की है कि सेना की जरूरत के रक्षा उपकरणों की 68 फीसदी खरीद घरेलू उद्योग से की जायेगी। इस कदम से रक्षा उपकरणों के आयात पर भारत की भारी निर्भरता कम होगी। हम दुर्लभ विदेशी मुद्रा की बचत कर सकेंगे। लेकिन वहीं दूसरी ओर, रक्षा उपकरणों के गुणवत्ता नियंत्रण की भी बड़ी चुनौती होगी। चीन द्वारा लगातार भारतीय क्षेत्रों के अतिक्रमण और आक्रामक रवैये को देखते हुए भारतीय सेना को आधुनिक व गुणवत्ता के हथियारों से सुसज्जित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। जब देश की सुरक्षा दांव पर हो तो तैयारी में देरी की कोई गुंजाइश नहीं बचती।