हालांकि, देश में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर खात्मे की ओर है, जीवन पटरी पर लौट रहा है, लेकिन संकट से जुड़ी कसक बाकी है। स्कूलों में फिर से घंटी बजने लगी है, बच्चे उत्साह से स्कूल लौट रहे हैं। लेकिन चौथी लहर की आशंकाओं के बीच अभिभावक चिंतित थे क्योंकि बच्चों का टीकाकरण अभी तक शुरू नहीं हुआ था। अब बारह से चौदह साल के बच्चों को 16 मार्च से टीका लगना शुरू होगा। उन्हें हैदराबाद की बायोलॉजिकल-ई की वैक्सीन कोर्बीवैक्स की दो डोज दी जाएंगी। इससे पहले पंद्रह से सत्रह साल के बच्चों का टीकाकरण जनवरी से शुरू हुआ। बहरहाल, इस बीच दूसरी लहर के दौरान मारे गये लोगों के नाम पर अनुग्रह राशि पाने के झूठे दावों से देश की शीर्ष अदालत हतप्रभ है। अदालत ने दुख जताया कि कभी नहीं सोचा था कि नैतिकता का स्तर इतना गिर जायेगा कि कोविड-19 के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों को मिलने वाली पचास हजार रुपये की अनुग्रह राशि के लिये झूठे दावे किये जायेंगे। इस दुरुपयोग की प्रवृत्ति से शीर्ष अदालत आहत है। बल्कि न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्न की पीठ ने चेताया कि इस प्रकरण की जांच के लिये न्यायालय महालेखाकार कार्यालय को जांच सौंप सकता है। कोर्ट ने कहा कि कभी नहीं सोचा था कि नैतिक पतन के चलते संकट में अवसर तलाशने की प्रवृत्ति नजर आयेगी। इससे पहले पीठ ने मुआवजे के लिये कोविड-19 से हुई मौत के फर्जी प्रमाणपत्र बनाने पर पिछले सप्ताह चिंता जतायी थी। साथ ही कहा कि यदि ऐसे फर्जी दावों में अधिकारियों की भूमिका होती है तो यह बेहद गंभीर बात होगी। इससे पहले कोर्ट केंद्र व राज्य सरकारों को मृतकों के परिजनों को यथाशीघ्र मुआवजा दिलाने के लिये पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने पर लगातार जोर देता रहा है।
वहीं दूसरी ओर भारत में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना संकट की दूसरी लहर में संक्रमण की तीव्रता और आॅक्सीजन समेत चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में लोगों की मौत की संख्या को लेकर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहे हैं। कहा जाता है कि गलत आंकड़ों से मृतकों के आश्रितों को मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। हाल ही में वर्ष 2020-21 में कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान जुटाये आंकड़ों के आधार पर विख्यात मेडिकल जर्नल लैंसेट ने अपने नवीनतम अध्ययन में मरने वालों की संख्या को सरकारी अनुमानों के इतर आठ गुना अधिक बताया है। इस साल की शुरुआत में भी एक विज्ञान पत्रिका ने भारत में कोविड संक्रमण से मरने वालों की संख्या को सरकारी आंकड़ों से छह-सात गुना अधिक बताया था। पर सरकार का कहना है कि इन आंकड़ों काे जुटाने का तरीका अवैज्ञानिक व भ्रामक है। इसी तरह अक्तूबर 2021 में पिछले तीन महीनों के दौरान किये स्वास्थ्य बीमा दावों के ‘प्रोजेक्ट : जीवन रक्षा’ के विश्लेषण ने भी मौतों की कम रिपोर्टिंग करने के आरोपों की पुष्टि की थी। कहा जा रहा है कि देश में चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के बीच सरकार के आंकड़े जुटाने और उनकी व्याख्या का तंत्र संदिग्ध रहा है। स्वतंत्र रिपोर्टों में भी घातक डेल्टा लहर के दौरान स्थानीय स्तर पर दर्ज आंकड़ों व श्मशान घाटों व कब्रिस्तान तक पहुंचने वाले शवों की संख्या में विसंगतियां देखी गई। दरअसल, अप्रैल-मई 2021 में मीडिया में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी के चलते होने वाली मौतों की व्यापक स्तर पर रिपोर्टिंग की गई थी। लेकिन केंद्रीय स्तर पर आॅक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की गई थी। इस बाबत केंद्र द्वारा 19 राज्यों से जो जानकारी मांगी गई थी, उसमें केवल पंजाब ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों की बात स्वीकार की थी। निस्संदेह, सटीक डेटा ही सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का आधार होता है, जो ऐसे संकटों के प्रबंधन में भी मददगार होता है। वहीं भ्रामक आंकड़े कोविड-19 से हुई मौतों से अनाथ हुए बच्चों के पुनर्वास व मुआवजा देने में भी बाधक होते हैं।