डिजिटल होते भारत में जहां जीवनशैली में बदलाव व तरक्की की उम्मीद जगी है, वहीं लगातार हो रहे साइबर हमलों से होने वाले नुकसान ने नीति-नियंताओं की चिंता भी बढ़ा दी है। जिससे आम नागरिकों के खातों में सेंधमारी से हर वर्ष हजारों करोड़ रुपये की चपत लगाई जाती है। इसी चुनौती के मुकाबले के लिये पिछले दिनों साइबर अपराधियों के ठिकानों पर देशव्यापी कार्रवाई की गई। पिछले दिनों सीबीआई ने साइबर अपराध के जरिये धोखाधड़ी करने वाले साइबर अपराधियों के 76 ठिकानों पर छापे मारे। दरअसल, सीबाआई ने ऑपरेशन चक्र-2 के जरिये उन साइबर अपराधियों के खिलाफ अभियान चलाया, जो भारतीय नागरिकों के साथ अरबों रुपये की क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी करने वाले गैंग से जुड़े रहे हैं। दरअसल, यह कार्रवाई वित्तीय खुफिया इकाई यानी एफआईयू द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी पर आधारित थी। उल्लेखनीय है इस बाबत माइक्रोसॉफ्ट और अमेजॉन ने शिकायत दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि अपराधी कॉल सेंटरों के जरिये विदेशी नागरिकों को इन कंपनियों के तकनीकी सहयोगी बताकर शिकार बनाते थे। बताते हैं कि सीबीआई ने इंटरपोल, एफबीआई समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर साइबर अपराधियों के ठिकानों पर कार्रवाई की। इस अभियान के तहत पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल व दिल्ली आदि में साइबर अपराधियों के ठिकानों पर छापेमारी की गई। इससे पता चलता है कि देश के भीतर भी साइबर अपराधियों का जाल किस तरह फैला हुआ है। विडंबना यह है कि विदेशी नागरिकों से धोखाधड़ी से दुनिया में भारत की छवि पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। भारत में तेजी से बढ़ते साइबर अपराध इस बात का भी संकेत है कि अपराधी तकनीकी रूप से दक्षता हासिल करके आक्रामक ढंग से अपने अभियान को अंजाम दे रहे हैं। जो नागरिकों की आर्थिक सुरक्षा के लिये भी बेहद चिंता की बात है। साथ ही ये साइबर हमले डिजिटल अभियान की सफलता को भी पलीता लगाते हैं।
दरअसल, साइबर अपराधों की चुनौती का मुकाबला करने के लिये जहां सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है, वहीं नागरिकों को भी जागरूक करने की आवश्यकता है। दरअसल, साइबर अपराधों से निपटने के लिये अनिवार्य दिशा-निर्देशों का सतर्कता से पालन करने, साइबर अपराधियों की निगरानी, साइबर हमले रोकने को पर्याप्त तैयारी की जरूरत है। आये दिन साइबर धोखाधड़ी के तमाम मामले मीडिया में उजागर होते हैं। लोगों की खून-पसीने की कमाई साइबर अपराधी सेकेंडों में उड़ा ले जाते हैं। पिछले दिनों हरियाणा में मेवात के ग्रामीण इलाकों में एटीएम के जरिये धोखाधड़ी के तमाम मामले प्रकाश में आए। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं के विस्तार अभियान को झटका लगा है। अनेक स्थानों पर फर्जी तरीके से नकदी निकासी की घटनाएं पुलिस द्वारा दर्ज की गई हैं। नकदी निकासी के मामले में गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के कर्मचारियों की मिलीभगत की भी आशंका है। वहीं राजस्थान में भी असुरक्षित स्थानों पर लगे एटीएमों के दुरुपयोग के बाबत बैंकों को अलर्ट किया गया है। एक एडवाइजरी में सीसीटीवी सिस्टम को सीधे पुलिस नियंत्रण कक्ष से जोड़ने का सुझाव दिया गया है। आईआईटी कानपुर में स्थित गैर-लाभकारी फ्यूचर क्राइम रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2020 से जून 2023 तक दर्ज साइबर अपराधों में से 77.4 फीसदी मामले ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी के हैं। जिसको रोकने के लिये सुरक्षा उपायों को बढ़ाने तथा लोगों को जागरूक करने पर बल दिया गया है। दरअसल, साइबर अपराध की दृष्टि से संवेदनशील दस शहरों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि साइबर सुरक्षा के बुनियादी ढांचे के अभाव, सामाजिक-आर्थिक चुनौती तथा कम डिजिटल साक्षरता के चलते ऐसे अपराधों को बढ़ावा मिलता है। दरअसल, अपराध से लड़ने के सामान्य तौर-तरीकों से साइबर अपराधों का मुकाबला नहीं किया जा सकता क्योंकि वे भोले-भाले नागरिकों को धोखा देने के लगातार नये-नये तरीके विकसित कर रहे हैं। नागरिकों को जागरूक करके तथा सुरक्षा के पेशेवर परामर्श से इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को लोगों, व्यवसायियों व नीति-निर्माताओं के बेहतर तालमेल से इस चुनौती का मुकाबला करना चाहिए।