सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा और संवेदनशील फैसला सुनाते हुए कोविड संक्रमण से मरे लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की राह खोल दी है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा देना जरूरी है क्योंकि यह सरकार का संवैधानिक दायित्व है। दरअसल, जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए एक्ट की धारा-12 का उल्लेख किया, जिसमें आपदा में मृत्यु पर अनुग्रह राशि देने का प्रावधान है। जिसे लागू करने के लिये सरकार बाध्य है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एनडीएमए को इस मामले में गाइड लाइन तैयार करने तथा कोविड संक्रमण से हुई मौतों के बाबत न्यूनतम अनुग्रह राशि देने की सिफारिश करने का निर्देश भी दिया। उल्लेखनीय है कि कुछ पीड़ितों के आश्रितों ने मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख की मुआवजा राशि देने का आग्रह किया था, जिसको देने की असमर्थता जताते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि इससे सरकार का खजाना खाली हो जायेगा। शीर्ष अदालत ने इस बाबत केंद्र सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आपदा प्रबंधन एक्ट की धारा-12 का प्रावधान बाध्यकारी नहीं है। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि आपदा प्रबंधन की धारा-12 में अंग्रेजी के शैल शब्द का प्रयोग किया गया है, जो इसकी अनिवार्यता को दर्शाता है। कोर्ट ने एनडीएमए को उचित अनुग्रह राशि के निर्धारण के लिये भी कहा। विगत में ऐसी खबरें आ रही थी कि कोविड से मरने वाले कई लोगों के मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण कोविड संक्रमण नहीं लिखा गया है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोविड से हुई मौत के मामले में मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करते वक्त उसमें तिथि और मृत्यु की वजह कोविड लिखा जाना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि परिजन संतुष्ट नहीं हैं तो मौत का कारण सही करने के लिये उन्हें आसान सुविधा उपलब्ध करायी जाये।
इस बाबत केंद्र सरकार द्वारा दी गई दलीलों से असहमति जताते हुए शीर्ष अदालत ने प्रश्न किया कि क्या पीएम की अगुवाई वाली एनडीएमए ने यह फैसला लिया है कि कोरोना संक्रमण से हुई मौत के मामले में परिजनों को चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि नहीं दी जा सकती? साथ ही प्रश्न किया कि क्या मृतकों के परिजनों के दुख को कम करने के लिये किसी समान अनुग्रह राशि देने की योजना पर मंथन नहीं किया जा सकता? वास्तव में केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे में दलील दी गई थी कि कोविड से मरने वालों के परिवारों को अनुग्रह राशि देना उसके बूते से बाहर की बात है। इस दौरान केंद्र व राज्य सरकारें गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही हैं। वहीं सॉलिसिटर जनरल की दलील थी कि मसला यह नहीं कि वित्तीय संसाधनों की कमी है, सवाल यह है कि संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। यह भी कि राष्ट्रीय संसाधनों का तर्कसंगत, विवेकपूर्ण और सर्वोत्तम उपयोग किया जाना चाहिए। सरकार की दलील थी कि हमारा लक्ष्य स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने का है ताकि भविष्य में किसी संकट का बेहतर ढंग से मुकाबला किया जा सके। वहीं इस बाबत याचिका दायर करने वालों के अधिवक्ता का तर्क था कि वित्तीय संसाधनों के संकट की दुहाई देकर सरकार संवैधानिक दायित्व से विमुख नहीं हो सकती। वहीं कोर्ट का मानना था कि एनडीएमए अपने वैधानिक दायित्वों के निर्वहन में असफल रहा है। उल्लेखनीय है कि अभी तक करीब चार लाख लोग कोरोना महामारी में जान गंवा चुके हैं। बहरहाल, कोर्ट ने एनडीएमए को कोविड-19 से मरने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि देने के लिये छह सप्ताह के भीतर दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है। निस्संदेह, शीर्ष अदालत के इस फैसले से उन लाखों लोगों को राहत मिलेगी, जिन्होंने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य को खोया है। जरूरत इस बात की भी है कि भावनात्मक रूप से आहत लोगों को किसी हद तक राहत पहुंचाने की ईमानदार कोशिश की जाये।