राजग सरकार की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के क्रियान्वयन में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताओं व कमियों का उजागर होना गंभीर मसला है। इससे जहां देश के करोड़ों लोगों के इलाज के लिये लायी गयी योजना की सार्थकता पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावे पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। ऐसे में इस स्वास्थ्य योजना में धांधली करने वालों के खिलाफ समय रहते सख्त कार्रवाई वक्त की जरूरत है। वर्ष 2018 में जोर-शोर से लाई गई इस महत्वाकांक्षी जन स्वास्थ्य योजना को व्यापक पैमाने पर जनहित में बताया गया था। जिसका मकसद था कि देश के गरीब व कमजोर वर्गों को महंगे इलाज के खर्च से बचाने के लिये उनका चिकित्सा व्यय कम किया जाएगा। पिछले सप्ताह संसद में पेश की गई नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि ऐसे करीब साढ़े तीन हजार कथित मरीजों के इलाज पर लगभग सात करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जिन्हें योजना के डेटा बेस में पहले मृत दिखाया गया था। यह तथ्य भी कम चौंकाने वाला नहीं है कि योजना के तहत साढ़े सात लाख लाभार्थियों को एक ही मोबाइल नंबर से जोड़ा गया था। वहीं एक हजार दो सौ से अधिक लाभार्थियों को एक ही फर्जी आधार नंबर से जोड़ा गया। जाहिर है कई स्तर पर सुनियोजित तरीके से धांधली को अंजाम दिया गया। निश्चित तौर पर इस योजना के त्रुटिरहित क्रियान्वयन व निगरानी की जिम्मेदारी जिन संस्थाओं को दी गई थी, उन्होंने सजग व सतर्क होकर अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया। अन्यथा धांधली का स्तर इतना व्यापक नहीं हो सकता था। संसद में कैग की रिपोर्ट का खुलासा होने के बाद सरकार ने लोकसभा को सूचित किया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण यानी एनएचए द्वारा जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन न करने तथा संदिग्ध गतिविधियों में शामिल होने के कारण देश के 210 अस्पतालों को योजना के पैनल से हटा दिया गया। साथ ही 188 अन्य अस्पतालों के लाइसेंस निलंबित कर दिये गये।
निस्संदेह, जनविश्वास की प्रतीक इस जन स्वास्थ्य योजना में बड़ी धांधली की व्यापक पैमाने पर जांच की जानी चाहिए। जाहिरा तौर पर कई स्तरों पर लापरवाही और दायित्वों के निर्वहन में चूक के चलते शातिर लोग इस योजना में धांधली करने में सफल हुए। जिसकी निगरानी में राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरणों की भी बड़ी भूमिका होती। वैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण यानी एनएचए को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत धोखाधड़ी और दुरुपयोग का पता लगाने व रोकथाम का दायित्व सौंपा गया था। लेकिन भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की जांच रिपोर्ट के खुलासे के बाद स्पष्ट हो गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण अपने दायित्वों के फुलप्रूफ निर्वहन में विफल रहा है। निस्संदेह, दूसरी ओर कैग की ऑडिट रिपोर्ट भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार को भी असहज करने वाली है, जिसने बार-बार भ्रष्टाचार को खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी थी। दुर्भाग्यपूर्ण है समाज में जीवन मूल्यों का किस हद तक पतन हो चला है कि देश के कमजोर व गरीब वर्ग के लिये लाई गई प्रमुख कल्याण योजना को पलीता लगाने से गुरेज नहीं किया जा रहा। ये अपराधी तत्व अपने इन कृत्यों से गरीब कल्याण के लिये लाई गई ऐसी योजना को कमजोर ही बना रहे हैं, जो देश के 55 करोड़ लोगों को सेहत का सुरक्षा कवच प्रदान करती है। निस्संदेह, इस घोटाले को अंजाम देने के लिये व्यापक पैमाने पर सांठगांठ की गई होगी। ऐसे में अस्पताल के कर्मचारियों, बिचौलियों और सरकारी अधिकारियों के बीच सांठगांठ का पता लगाने के लिये गहन स्तर की जांच कराया जाना वक्त की सख्त जरूरत है। साथ ही इस योजना से जुड़ी तमाम खामियों को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए। अन्यथा भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्र सरकार की लड़ाई की सार्थकता पर सवाल उठेंगे। खासकर लोकसभा चुनाव से पूर्व के राजनीतिक परिवेश में इससे सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।