राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की उस टिप्पणी को हमें एक गंभीर चेतावनी के रूप में लेना होगा, जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। एनजीटी का यह खुलासा इसलिये भी चिंता बढ़ाने वाला है क्योंकि कुछ ही माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। कुंभ मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अखाड़ों की सक्रियता बढ़ गई है। महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं विदेश में भी खूब चर्चा होती है। यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में हम सफल क्यों नहीं हो पाए हैं। आखिर कौन है गंगा की यह हालत करने के गुनहगार? विडंबना देखिये कि तमाम सख्ती के बावजूद सैकड़ों खुले नाले गंगा में गंदा पानी गिरा रहे हैं। तमाम उद्योगों का अपशिष्ट पानी अनेक जगह गंगा में गिराया जा रहा है। वर्ष 2014 से गंगा की सफाई का महत्वाकांक्षी अभियान ‘नमामि गंगे’ शुरू किया गया था। बताया जाता है कि अब तक करीब चालीस हजार करोड़ की लागत से गंगा की सफाई की करीब साढ़े चार सौ से अधिक परियोजनाएं आरंभ भी की गई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाये जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिये शोधन संयंत्र लगाने, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को बचाने, गंगा घाटों की सफाई के लिये काफी काम तो हुआ लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं। जो हमें बताता है कि जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी और नागरिक अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे, गंगा मैली ही रह जाएगी। सिर्फ सरकारी प्रयास काफी नहीं हैं।
दरअसल, लगातार बढ़ती जनसंख्या का दबाव और गंगा तट पर स्थित शहरों में योजनाबद्ध ढंग से जल निकासी व सीवरेज व्यवस्था को अंजाम न दिये जाने से समस्या विकट हुई है। गंगा को साफ करने के लिये जरूरी है कि स्वच्छता अभियान एक निरंतर प्रक्रिया हो। एक बार की सफाई निष्प्रभावी हो जाएगी यदि हम प्रदूषण के कारकों को जड़ से समाप्त नहीं करते। इसके लिये गंगा के तट वाले राज्यों में पर्याप्त जलशोधन संयंत्र युद्ध स्तर पर लगाए जाने चाहिए। साथ ही गंगा सफाई अभियान की नियमित निगरानी होनी चाहिए। इसमें आधुनिक तकनीक का भी सहारा लिया जाना चाहिए। लोगों को बताया जाना चाहिए कि गंगा सिर्फ नदी नहीं है यह खाद्य शृंखला को संबल देने वाली तथा हमारी आध्यात्मिक यात्रा से भी जुड़ी है। गंगा में अघुलनशील कचरा व अन्य अपशिष्ट डालने से रोकने के लिये जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। यदि जागरूकता व प्रेरित करने से बात नहीं बनती तो इसके लिये जुर्माने का प्रावधान भी होना चाहिए। साथ ही गंगा में जहरीला कचरा बहाने वाले उद्योगों पर भी आर्थिक दंड लगाना चाहिए। एक बात तो तय है कि सरकार के साथ जब समाज की जिम्मेदारी तय नहीं की जाती, गंगा का साफ होना असंभव जैसा हो जाएगा। गंगा सिर्फ बहती नदी नहीं है हमारे पुरखों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। गंगा मुक्तिकामी भी है। जीवनदायिनी भी है। ऐसे में केंद्र सरकार की नमामि गंगा परियोजना में राज्यों की भागीदारी और जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। साथ ही स्वच्छता परियोजना की निरंतर निगरानी की जानी भी जरूरी है ताकि प्रयासों का स्थायी लाभ गंगा को स्वच्छ बनाने में मिल सके। सही मायनों में आज गंगा के उद्धार के लिये हर भारतीय को भगीरथ जैसा दायित्व निभाना होगा। तभी सदियों से अविरल बह रही जीवनदायी गंगा की प्रतिष्ठा भी फिर से स्थापित हो सकेगी। फिर एनजीटी को यह न कहना पड़ेगा कि फलां जगह का गंगाजल आचमन करने लायक नहीं रह गया है।