बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और दमन की सत्ता के अंत के पचास साल पूरा होना जहां दोनों देशों के गहरे होते रिश्तों का परिचायक है, वहीं भारतीय सेना की सुनहरी कामयाबी का गौरवशाली स्मरण भी है। यह मौका पाकिस्तान की क्रूरता का शिकार हुए लाखों स्वतंत्रता के आकांक्षियों व शहादत देने वाले भारतीय वीरों के पुण्य स्मरण का भी है। इन्हीं वीरों के साहस व बलिदान से दि्वतीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी संख्या करीब 93000 आततायी पाक सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। यही वजह है कि इस समर्पण दिवस को आधिकारिक स्वतंत्रता दिवस के चलते बांग्लादेश का मुक्ति दिवस कहा जाता है, जिसने इस साल पचास वर्ष पूरे किये। गुरुवार को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी। पचासवें विजय दिवस के मौके पर चार स्वर्णिम विजय मशालों को युद्ध स्मारक में प्रज्वलित अमर जवान ज्योति में समाहित किया गया। दरअसल, पिछली 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने इन चार स्वर्णिम विजय मशालों को प्रज्वलित किया था, जिन्हें सियाचिन से कन्याकुमारी, अंडमान निकोबार से लोंगेवाल, रण के कच्छ से अगरतला तक ले जाया गया। इसमें वर्ष 1971 के युद्ध के परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेता सैनिकों के गांव भी शामिल थे। दमनकारी ताकतों को हराने वाले भारतीय सैनिकों को इस मौके पर श्रद्धांजलि दी गई। वहीं भारत व बांग्लादेश के रिश्तों को महत्व देते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द बांग्लादेश की आजादी की स्वर्ण जयंती व बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान के जन्म शताब्दी के मौके पर बांग्लादेश की तीन दिवसीय यात्रा पर गये। वे स्वर्ण जयंती कार्यक्रम के एकमात्र ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के रूप में उपस्थित रहे। इस परेड में भारतीय सशस्त्र बलों के 122 सदस्यीय त्रि-सेवा दल ने भाग लिया। लेकिन शहीदों की याद में हुआ यह कार्यक्रम सियासी रंग से अछूता नहीं रह सका। राहुल गांधी ने कार्यक्रम को लेकर सवाल उठाये कि 1971 की जंग जीतने के कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम नहीं लिया गया, जो कि इस संग्राम की सूत्रधार थीं।
बहरहाल, कृतज्ञ राष्ट्र ने स्वर्णिम दिवस के मौके पर देश के उन वीरों को याद किया, जिन्होंने दक्षिण एशिया के नक्शे में बदलाव में निर्णायक भूमिका निभायी। जिसमें देश के राजनीतिक नेतृत्व की इच्छा शक्ति की भी बड़ी भूमिका थी, जिसने अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों के दबाव में न आकर करोड़ों बांग्लादेशियों को इतिहास के सबसे काले दौर से बाहर निकाला। यही वजह है कि दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश का सबसे करीबी साझेदार है। बांग्लादेश की मुक्ति के लिये भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी से मिलकर निर्णायक संघर्ष किया। यह भारत की कुशल रणनीति और युद्ध कौशल का ही परिणाम था कि पूर्वी पाकिस्तान पर पाक सेना को नेस्तनाबूद करने के लिए चौतरफा हमला बोला गया। पूर्वी कमान के नायक ले. जन. जेएस अरोड़ा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने बांग्लादेश को महज बारह दिन के युद्ध में स्वतंत्र करा दिया। जिसका परिणाम था कि पाक के त्रिनावे हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इसके बावजूद कि अमेरिकी नौसेना का सबसे घातक सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर चल दिया था। सदाबहार मित्र रूस ने शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। भारत के प्रयासों का ही फल है कि आज बांग्लादेश दक्षिण एशिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बन चुका है। आज बांग्लादेश उससे पांच गुना बड़े पाकिस्तान को पीछे छोड़कर हर क्षेत्र में अग्रणी बन चुका है। उसके पास पाक से कई गुना बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। विकास की वृद्धि दर के मामले में वह भारत से भी आगे रहा है। बांग्लादेश की सैकड़ों कंपनियां अरबों डालर का निर्यात कर रही हैं। कपड़ा उद्योग में यह देश अपने स्वर्णिम सफर में कई बड़े देशों को चुनौती दे रहा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में इस देश ने जहां विकास के नये आयाम स्थापित किये हैं, वहीं धार्मिक सहिष्णुता कायम करने के सार्थक प्रयास भी किये हैं। निस्संदेह, सशक्त व समृद्ध बांग्लादेश भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप ही है।