इस बात का पता पहले से ही था कि जैसे ही विधानसभा चुनाव का खुमार उतरेगा, पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ेंगे। वैसे ही हुआ, चुनाव खत्म होते ही उपभोक्ताओं को महंगाई का झटका जोर से लगा है। पहले पेट्रोल-डीजल के थोक मूल्यों में वृद्धि हुई, फिर फुटकर दामों में वृद्धि हुई और मंगलवार को रसोई गैस में भी पचास रुपये की वृद्धि कर दी गई है, जो तत्काल प्रभाव से लागू भी हो गई है। सरकार कह रही है कि पेट्रोल व डीजल की कीमतों में महज अस्सी पैसे की वृद्धि हुई है। लेकिन सवाल उठता है कि थोक मूल्य में जो पच्चीस रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई है क्या उससे सार्वजनिक परिवहन व माल ढुलाई महंगी नहीं होगी? देर-सवेर उसका भार आम आदमी पर तो पड़ेगा ही। सरकार की दलील है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 2008 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है। इसकी कीमतों में करीब चालीस फीसदी का इजाफा हुआ है। दरअसल, विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं में महंगाई मुद्दा न बने इसके चलते तेल कंपनियों ने सरकार के दबाव में दाम नहीं बढ़ाए थे। सवाल उठना स्वाभाविक है कि चुनाव व सरकार बनने के बीच कीमतें बढ़ाने का यह खेल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनपक्षीय कहा जा सकता है? वैसे महंगाई केवल पेट्रोलियम पदार्थों की ही बढ़ी हो, ऐसा भी नहीं है। पिछले दिनों दूध, सीएनजी व मैगी की कीमतों में वृद्धि हुई है। विधानसभा चुनाव खत्म होते ही सीएनजी की कीमतें बढ़ा दी गई थीं। इसी तरह ज्यादा उपयोग किये जाने वाले मशहूर कॉफी ब्रांडों व चायपत्ती के दामों में बढ़ोतरी हुई है। उसी तरह अमूल, मदर डेयरी, पराग व वेरका आदि सहकारी दूध संघों ने भी दूध के दामों में वृद्धि की है। बल्कि कई राज्यों में तो वृद्धि का प्रतिशत ज्यादा भी है। चिंता की बात यह भी है कि कोरोना संकट से उपजे हालात में आय के संकुचन के चलते महंगाई की मार दोहरी नजर आ रही है।
कह सकते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी नजर आने लगा है। दरअसल, यह महंगाई केवल भारत में ही हो, ऐसा भी नहीं है। दुनिया के तमाम देश महंगाई की बड़ी डोज से जूझ रहे हैं। कोरोना संकट के चलते सरकारों ने महामारी से लड़ने के लिये जो अधिक मुद्रा बाजार में उतारी, वह भी महंगाई बढ़ने की एक बड़ी वजह रही है। दुनिया के दूसरे बड़े तेल उत्पादक देश रूस व गैस आपूर्तिकर्ता यूक्रेन के युद्ध में उलझने से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल व गैस की आपूर्ति बाधित हुई है। आपूर्ति कम होने से दाम बढ़ने स्वाभाविक थे। यही वजह है कि देश में एलपीजी के दाम गत वर्ष अक्तूबर के बाद इस माह बढ़े हैं। वैसे ही डीजल व पेट्रोल के दाम भी करीब साढ़े चार माह बाद बढ़े हैं। विधानसभा चुनाव के चलते लोगों ने राहत की सांस ली थी, लेकिन अब फिर से दाम बढ़ने से लोग व्यथित हैं। देश के कई भागों में लोगों ने आक्रोश व्यक्त किया है। वैसे आशंका जतायी जा रही है कि आने वाले दिनों में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में और वृद्धि हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद सरकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कोरोना संकट से उपजे हालात में महंगाई के चलते तमाम जरूरी चीजें आम उपभोक्ता की पहुंच से दूर निकल रही हैं। सरकार से संवेदनशील व्यवहार की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि कोरोना संकट के चलते लाखों लोगों की नौकरियां गई हैं और करोड़ों लोगों की आय का संकुचन हुआ है। ऐसे में सरकार की ओर से लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की उम्मीद थी। बाजार में खाद्य तेल व अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुएं महंगाई के चलते आम लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। यह सवाल भी आम आदमी को मथ रहा है कि जब विश्व बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने का तुरंत लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिलता तो उसके महंगे होने पर तुरंत महंगा क्यों किया जाता है?