विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का जाना एक ऐसी क्षति है, जिसकी पूर्ति संभव नहीं। देश व संगीत जगत की तो क्षति है ही, हरियाणा की इस मायने में दोहरी क्षति है कि उसने इस धरा में जन्मे लाल को खोया है। फतेहाबाद के पीली मंदौरी में जन्मे पंडित जसराज ने सफलता की ऊंचाइयों को छूकर भी गांव को नहीं भुलाया। जब लंबे समय बाद 2003 में वे गांव आये तो गांव की मिट्टी को माथे से लगाया और उनकी आंखें नम थीं। फिर उनका आना-जाना लगा रहा और उनके आने से गांव के विकास को भी नई ऊंचाइयां मिलीं। बहरहाल, संगीत साधना से पंडित जसराज ने वे ऊंचाइयां हासिल कर ली थीं कि वे गांव, जिले, देश से परे पूरे दुनिया के हो गये। उनकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान की मिसाल इस बात से मिलती है कि इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने मंगल व बृहस्पति के बीच पाये एक ग्रह का नाम ‘पंडित जसराज’ रखा। भारत में पद्म विभूषण से लेकर तमाम पुरस्कार उनके नाम रहे। पंडित जसराज को शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में फैलाने का श्रेय दिया जाता है। संगीत से उनका पहला परिचय पिता पंडित मोतीराम ने कराया था, मगर पंडित जसराज की चार वर्ष की अवस्था में पिता का साया सिर से उठ गया। फिर उन्होंने भाई व गुरु पंडित मणिराम से विधिवत संगीत की शिक्षा ली। दरअसल, पंडित जसराज का संबंध मेवाती घराने से रहा है। इस घराने की शुरुआत पंडित घग्गे नजीर खान की थी। लेकिन कई मायनों में पं. जसराज का गायन अपने आप में विशिष्ट व उत्कृष्ट है। उनके शिष्यों की लंबी शृंखला उनका अनुसरण पूरी दुनिया में कर रही है। वे गुरु के रूप में असाधारण थे। आठ दशकों तक की संगीत साधना का मौका विरले संगीत के पुजारियों को मिलता है। फिर भी वे कहा करते थे कि संगीत में मेरा कोई योगदान नहीं है। वे खुद को ईश्वर का माध्यम ही बताते थे। तभी उनके मोहक गायन सुनकर लोग ईश्वर से साक्षात्कार कराने की बात कहते थे जो शास्त्रीय संगीत में उनके द्वारा किये गये प्रयोगों की ही देन थी।
निस्संदेह, पंडित जसराज का जाना शास्त्रीय संगीत जगत में सुरों का सन्नाटा होने जैसा है। फिर भी इस संगीत मार्तंड को इस मायने में याद किया जायेगा कि उन्होंने दुिनयाभर को शास्त्रीय गायन के सुरों में बांधा। वे केवल अमेरिका ही नहीं, कनाडा समेत विश्व के अनेक देशों में संगीत की शिक्षा दे रहे थे। उन्होंने संगीत में वो सम्मोहन पैदा किया कि दुनियाभर के लोग शास्त्रीय संगीत से जुड़े। उनके संगीत का आध्यात्मिक पक्ष बेहद सबल था, जिसमें श्रोता ईश्वरीय अनुभूति हासिल करते थे। यही वजह है कि उनके संगीत में रसों की धारा के सम्मोहन को महसूस करके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें ‘रसराज जसराज’ कहा करते थे। तभी उनका संगीत श्रोताओं को सम्मोहित करता था। उनके गायन में प्रेम व भक्ति का सम्मोहन श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर जाता था। यही वजह है कि भक्ितमय शास्त्रीय गायन में उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। उनका संगीत कई मायनों में विलक्षण था। वैष्णव परंपरा में उनके भक्तिमय गायन ने संगीत प्रेमियों को अलग सुकून दिया। हालांकि, पंडित जसराज का कहना था कि किशोर अवस्था में बेगम अख्तर की गायिकी ने मुझे शास्त्रीय संगीत की ओर उन्मुख किया था। कालांतर कृष्ण भक्ति साहित्य ने पंडित जसराज को गहरे तक प्रभावित किया। उनके मधुर सुरों में गाये भजन घर-घर में श्रद्धा के साथ सुने जाते रहे हैं। कृष्णलीला के अनेक प्रसंगों को अपने शास्त्रीय गायन के जरिये उन्होंने हृदयग्राही बनाया। उन्होंने कृष्ण उपासना को शास्त्रीय संगीत के जरिये नई गरिमा प्रदान की और दार्शनिक अंदाज भी दिया। कमोबेश उनकी लोकप्रियता की यही स्थिति विदेशों में भी है। टोरंटो विश्वविद्यालय में उनके नाम पर युवा प्रतिभाओं को स्कॉलरशिप दी जाती है तो न्यूयॉर्क में उनके नाम पर संगीत भवन बना है। बहरहाल, उनके भक्तिमय गायन से गुजरते हुए आज भी लगता है कि हम किसी आध्यात्मिक यात्रा को महसूस कर रहे हैं।