कीर्तिशेखर
स्वच्छ हवा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की 99 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस लेती है, जो स्वस्थ रहने के लिए मानक कसौटी पर खरी नहीं उतरती। ज्यादातर देशों की हवा में प्रदूषण का काफी ज्यादा स्तर बढ़ चुका है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल दुनिया में 70 लाख लोगों की मौत प्रदूषित वायु के कारण होती है। अगर संक्रमण के औसत से देखें तो भारत सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में से है और हमारे यहां हर साल जहरीली हवा से 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण कार्बनमोनोऑक्साइड और जीवाश्म इंधन के जलने से निकलने वाले प्रदूषण कण हैं, जो हवा में मिलकर हृदय रोग और कैंसर का बड़ा कारण बनते हैं।
वायु के प्रदूषण कम करने के रणनीतिकार
वायु गुणवत्ता इंजीनियर वातावरण की खराब हवा को शुद्ध करने के उपाय सुझाता है ताकि हवा स्वच्छ हो और वह सांस लेने के योग्य हो सके। वास्तव में वायु गुणवत्ता इंजीनियर, पर्यावरण इंजीनियर ही होते हैं, लेकिन ये खास तौर पर वायु के प्रदूषण को कम करने पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। इनके सभी कामों का उद्देश्य हवा का स्वच्छ और सांस लेने योग्य बनाना होता है। ये सार्वजनिक उद्योगों या निजी क्षेत्र कहीं पर भी काम कर सकते हैं। इन वायु गुणवत्ता इंजीनियरों के पास करने के लिए कई किस्म के काम होते हैं जैसे- हवा में प्रदूषण के स्तर का आकलन करना। इस प्रदूषण का कंप्यूटर मॉडलिंग और सांख्यिकीय तथा रासायनिक विश्लेषण करना। हवा स्वच्छ बनाने के लिए रणनीतियां विकसित करना। वायु गुणवत्ता, सुधार व समाधान का मॉडल बनाना। प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों और अन्य गतिविधियों में निगरानी करना। प्रदूषण के जोखिम को कम करने के लिए कारगर वेंटीलेशन इंफ्रास्ट्रक्चर को डिजाइन करना। वहीं अनिवार्य उत्सर्जन मानकों के सरकारी नियम का अनुपालन कराना और पर्यावरण संबंधी परेशानियों का दस्तावेजीकरण करना भी इनके कार्यों में शामिल है।
ऐसे बनें पर्यावरण इंजीनियर
जहां तक भारत में पर्यावरण इंजीनियर बनने की प्रक्रिया का सवाल है तो 10+2 में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ पढ़ाई करके पर्यावरण इंजीनियरिंग में बीटेक या बीई करना होता है। उच्च अध्ययन के लिए एमटेक या एमई में डिग्री हासिल करें या पर्यावरण इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करके भी पर्यावरण इंजीनियर बना जा सकता है। पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए जेईई मेन या जेईई एडवांस अथवा राज्य स्तर की प्रवेश परीक्षाओं को पास करना होता है। जो लोग स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पर्यावरण क्षेत्र में पेशेवर लाइसेंस लेना चाहते हैं, उन्हें फंडामेंटल ऑफ इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करनी होती है। भारत में एक पर्यावरण इंजीनियर का औसत वेतन शुरुआत में 30 से 35 हजार रुपये होता है। इसके बाद आपके अनुभव और परफोर्मेंस के आधार पर यह वेतन निरंतर बढ़ता रहता है।
नौकरी कस स्कोप
पर्यावरण इंजीनियर के लिए नौकरी की संभावनाएं बहुत से क्षेत्रों में होती हैं। रासायनिक फैक्टरियों, पर्यावरण नीति निर्धारण करने वाले संगठनों, दूषित भूमि प्रबंधन करने वाले संस्थानों तथा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और खतरनाक अपशिष्टों के प्रबंधन के क्षेत्र में भी पर्यावरण इंजीनियरों की भारी दरकार होती है।
आवश्यक स्किल्स
भारत में पर्यावरण इंजीनियर की नौकरी करने वालों के लिए जरूरी कौशलों में तकनीकी और मैकेनिक्स में कुशल होना जरूरी है। एक पर्यावरण इंजीनियर को विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर सिस्टम डिजाइन करना आना चाहिए। इसके अलावा उसे पर्यावरण संबंधी समस्याओं को कुशलतापूर्वक कलमबद्ध करने में भी महारत हो तो यह एक अतिरिक्त योग्यता हो जाती है। साथ ही पर्यावरण इंजीनियर को हर दिन इस क्षेत्र में हो रहे नये-नये विकास और खोज की जानकारी होना भी जरूरी होती है। नौकरी खोजने की सबसे कारगर तरीके की बात है तो इनडीड, लिंक्ड इन, नौकरी डॉट इन और मॉन्स्टर जैसी नौकरी दिलाने वाली वेबसाइटों पर अपना पोर्टफोलियो अपलोड करना चाहिए। बहुत सी कंपनियां फ्रेशर्स को नौकरी देने में रूचि रखती हैं। किसी भी दूसरे क्षेत्र की तरह इंटर्नशिप से बहुत मदद मिलती है।
देश में महत्वपूर्ण अध्ययन संस्थान
भारत में पर्यावरण इंजीनियर की पढ़ाई करने के लिए देश के हर कोने में अनगिनत संस्थान हैं। कुछ महत्वपूर्ण संस्थान इस प्रकार हैं- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट, दिल्ली, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, अलमोड़ा, भारतीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संस्थान, नई दिल्ली, पर्यावरण शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, पुणे। -इ.रि.सें.