डॉ. सोमवीर आर्य
आज हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें इंटरनेट पर सहज रूप से उपलब्ध यौन सामग्री द्वारा हमारी यौन इच्छाएं अपराध का रूप लेती जा रही हैं। हमारी उदासीनता से स्थिति विकराल रूप धारण कर सकती है। इस समस्या का स्थायी समाधान योग द्वारा किया जा सकता है। हमारे योगियों ने सदैव संयम व सदाचार की ही शिक्षा दी है। आज पूरा विश्व योग से परिचित तो है, लेकिन केवल बाहरी रूप से ही। लोग केवल आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही योग समझते हैं जबकि ये मात्र योग के अंग हैं। योग का दर्शन तो अत्यंत गूढ़ और व्यापक है। यदि हम योग के व्यावहारिक पक्ष को देखें, तो पाते हैं कि योग हमें न केवल आरोग्यता प्रदान करता है, बल्कि बढ़ती यौन इच्छाओं को भी नियंत्रित करता है। योग साधना से बढ़ती कामुकता का स्थायी समाधान संभव है। योग के प्रभावी महत्वपूर्ण अंगों में आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, स्वाध्याय, उपेक्षा और आसन और प्राणायाम आदि शामिल हैं।
आहार
आज हमारा आहार दूषित है जिससे हमारा मन भी दूषित हो चुका है। फलत: मानसिक आवेग, चंचलता, कामुकता, चिन्ता, अवसाद और तनाव आदि मानसिक विकारों के रूप में हमारे सामने है। छान्दोग्य उपनिषद् में कहा गया है ‘आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि’ अर्थातzwj;् शुद्ध आहार के ग्रहण करने से मन की भी शुद्धि होती है। इसके बाद आहार की तीन गति बताते हुए कहा है कि हमारे द्वारा किए गए भोजन से तीन चीजें बनती हैं। अन्न का स्थूल भाग मल बनता है, मध्य भाग मांस बनता है और सूक्ष्म भाग से मन का निर्माण होता है। कहा भी जाता है ‘जैसा खाये अन्न, वैसा होये मन’। इसलिए आहार की शुद्धता अपरिहार्य है। गीता भी सात्विक, राजसिक और तामसिक आहार का वर्णन करती है। सात्विक आहार में शुद्ध, ताजे, स्निग्ध, मधुर और रस से युक्त खाद्य पदार्थ आते हैं। इनसे शरीर को बल व आरोग्यता और मन को सुख-प्रसन्नता मिलती है। राजसिक आहार में ज़्यादा खट्टे, ज़्यादा नमकीन, मिर्च व मसालों से युक्त फ़ास्ट फ़ूड आता है। राजसिक आहार हमारे शरीर में शोक, रोग और उत्तेजना पैदा करता है। तामसिक आहार में बासी, अधपका, जूठा, अपवित्र, रसहीन, और दुर्गन्ध अर्थात् मांसाहार वाले आहार होते हैं। ऐसे आहार शरीर में आलस्य, प्रमाद, निद्रा, तनाव और हिंसा उत्पन्न करते हैं।
हम सदा सात्विक आहार का सेवन करें। राजसिक और तामसिक आहार हमारे अन्दर उत्तेजना, जलन, रोग, शोक और मानसिक उन्माद पैदा करते हैं। बढ़ती कामुकता में सबसे बड़ा योगदान हमारे आहार का है। भोजन से ही हमारी सप्त धातुओं यानी रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य का निर्माण होता है। जिनमें अन्तिम धातु वीर्य बनती है। जैसा अन्न होगा, वैसा ही वीर्य बनेगा। सात्विक आहार से सात्विक वीर्य का निर्माण होता है। राजसिक आहार से उत्पन्न उत्तेजना से उत्तेजना बढ़ाने वाला वीर्य बनेगा। जिससे यौन इच्छायें बढ़ेंगी। इसी प्रकार तामसिक आहार से तामसिक वीर्य बनेगा। यह तामसिक वीर्य ही यौन हिंसाओं का जनक होता है। जैसे-जैसे हमारा आहार दूषित हुआ, वैसे-वैसे हमारा मन दूषित हो गया। जब मन ही दूषित है, तो विचार कैसे शुद्ध हो सकते हैं? अतः हम अपने आहार की शुद्धता को बढ़ाकर, अपने मन की शुद्धता को बढ़ा सकते हैं।
निद्रा
देर से सोना, देर से उठना, हमारे सामान्य जीवन का अंग बन चुका है। मोबाइल से रातभर इंटरनेट पर समय बिताना मुख्य कारण है। यह बदलाव हमें धीरे-धीरे अनिद्रा और अनिश्चय की ओर ले जाता है। इससे हमारा स्वास्थ्य का स्तर गिर रहा है। साथ ही रात को तमोगुण के प्रभावी होने से कामुकता का बढ़ना भी स्वाभाविक है। इसके समाधान के लिए हमें केवल जल्दी उठने की आदत को बनाना है। इससे जल्दी सोने की आदत स्वतः ही बन जाएगी। समय पर सोने-उठने से भी बढ़ती कामुकता को रोका जा सकता है।
ब्रह्मचर्य
ईश्वर का चिन्तन और वीर्य रक्षा करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है। विडम्बना है कि आज हम ब्रह्मचर्य पर बात करने में शर्म महसूस करते हैं। ब्रह्मचर्य पर चर्चा न करना भी यौन अपराधों की बड़ी वजह है। हमें ब्रह्मचर्य की उपयोगिता का प्रचार बड़े स्तर पर करना होगा। ब्रह्मचर्य ही हमारे जीवन को संयमित करता है।
अहिंसा
जब तक हमारे भीतर हिंसा का विचार रहेगा, तब तक हमारे अन्दर यौन हिंसा का बीज मौजूद रहता है। जिस व्यक्ति के जीवन में हिंसा नहीं है, उसमें कामुकता भी दूसरों की अपेक्षा कम होगी। साथ ही वह कभी भी यौन हिंसा अथवा यौन अपराध नहीं कर सकता। मूल रूप से अहिंसक व्यक्ति कभी भी यौन उत्पीड़न नहीं करता है।
स्वाध्याय
स्वाध्याय भी योग का अभिन्न अंग है। स्वाध्याय से हम स्वयं का अवलोकन भी करते हैं। कामुकता को बढ़ाने में नग्न चित्र, चलचित्र और कामुक साहित्य की बड़ी भूमिका है। इसलिए जब व्यक्ति अच्छे साहित्य का अध्ययन करेगा, तो कामुक-निकृष्ट साहित्य से अपने आप पीछा छूट जाएगा। इसके लिए सभी को रात में सोने से पहले स्वाध्याय करने की आदत बनानी पड़ेगी। देर रात तक मोबाइल का प्रयोग करने से अनिद्रा, थकान, तनाव, यौन इच्छाओं का अनियंत्रित होना, संतुष्टि का अभाव, यौन सामर्थ्य का कम होना, अप्राकृतिक इच्छाओं का जागृत होना और यौन हिंसा जैसी समस्याएं जन्म ले रही हैं। रात को मोबाइल का प्रयोग कामुकता और यौन अपराधों को बढ़ावा देता है, जबकि रात को स्वाध्याय करने से आप अपने आराध्य देवों के नज़दीक पहुंचते हैं।
उपेक्षा
उपेक्षा का अर्थ उदासीनता होता है। इसका प्रयोग पापी के प्रति करने की बात कही गई है। हमें यौन इच्छाओं को बढ़ाने वाली सभी प्रकार की सामग्री के प्रति उदासीन भाव रखना चाहिए। इससे हम अपने आप को इस पाप कर्म से आसानी से बचा पायेंगे।
आसन और प्राणायाम का अभ्यास
आसन और प्राणायाम का अभ्यास हमें शारीरिक-मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। रजोगुण वृद्धि से ही हमारे अन्दर कामुकता बढ़ती है। आसन-प्राणायाम का अभ्यास हमारे अन्दर सात्विक गुण को बढ़ाता है। स्थिरता सात्विक गुण से ही आती है। सत्व हमारे अन्दर संयम को बढ़ाता है, जबकि रज कामुकता को। इस प्रकार आसन और प्राणायाम का अभ्यास हमारी कामुकता और यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने का काम करते हैं।
निदेशक, स्वामी विवेकानन्द सांस्कृतिक केन्द्र, सूरीनाम, दक्षिणी अमेरिका
(बातचीत पर आधारित )