मोनिका शर्मा
मां बनने जैसी सुखद नियामत के साथ भी कई शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं जुड़ी हुई हैं| पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी प्रसव उपरांत होने वाला अवसाद भी ऐसी ही एक परेशानी है| दरअसल, मातृत्व के महिमामंडन और दायित्वबोध के भाव को लेकर बातें होती रहती हैं पर नई माताओं की मानसिक और मनोवैज्ञानिक तकलीफों का जिक्र कम ही होता है| शारीरिक बदलावों को समझने पर भी ध्यान दिया जाता है| इनसे उबरने में लगने वाले समय के प्रति भी परिवारजन जागरूक होते हैं| लेकिन मन के मोर्चे पर पैदा हुई इस नयी भूमिका से जुड़ी बातें कम ही समझी जाती हैं| ऐसे में कई महिलाओं को अकेलापन और अवसाद घेर लेता है|
हाल के बरसों में उच्च शिक्षित और महत्वाकांक्षी युवतियों में मां बनने के बाद आए ठहराव के चलते पोस्टपार्टम डिप्रेशन के आंकड़े बढ़े हैं| उनके मन में नई जिम्मेदारी की जद्दोजहद को लेकर कई तरह की चिंताएं होती हैं| जिन्दगी में सामंजस्य बनाने, कार्यक्षेत्र में पीछे छूट जाने की असहजता और मां की भूमिका में खरा न उतर पाने का फ़िक्र भी प्रसव उपरान्त अवसाद के आंकड़ों में इजाफा कर रहे हैं| अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग से जुड़े ऑफिस ऑन वूमेंस हेल्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि हर 9 में से 1 नई मां ‘न’ का शिकार होती है| कुछ समय पहले अमेरिका की स्टार टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स ने कहा था कि वे अपनी बेटी के लिए अच्छी मां साबित न हो पाने के डर में जी रही हैं| अपने खेल को लेकर रहे व्यस्त शेड्यूल से निकलने के बाद सेरेना ने कहा था कि मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं अच्छी मां नहीं हूं। मैं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त चीजें नहीं कर पा रही हूं| ऐसे में समझना मुश्किल नहीं कि एक आम कामकाजी स्त्री के हिस्से कितनी दुविधाएं हो सकती हैं| ख़ासकर तब जबकि पारिवारिक स्तर पर कोई मजबूत सपोर्ट सिस्टम न हो|
जागरूकता जरूरी
यह वाकई चिंतनीय है कि अब बड़ी संख्या में शिक्षित और सजग युवतियां भी मां बनने के बाद ऐसी मनःस्थिति से घिर रही हैं| यह भी कि आज भी हमारे परिवारों में इस समस्या को लेकर जागरूकता की कमी है| नतीजतन न तो इस परेशानी को ठीक से समझा जाता है और न ही गंभीरता से लिया जाता है| अधिकतर लोगों को इस बात का इल्म ही नहीं है कि प्रसव के बाद अवसाद जैसी समस्या भी हो सकती है। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम 80 प्रतिशत महिलाओं में प्रसव के बाद अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे में मातृत्व के शुरुआती पड़ाव पर अकेली पड़ जाने वाली नई माताओं को कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं घेर लेती हैं| मां बनते ही अपनी जिम्मेदारियों पर खरा उतरने का दबाव तो कई गुना बढ़ता ही है, कोई कमी रह जाने पर मन में अपराधबोध भी आ जाता है| ऐसी भावनात्मक उलझनों के साथ निराशा के भंवर में फंसी महिलाओं की शारीरिक सेहत की देखभाल भी सही ढंग से नहीं हो पाती|
दरअसल, समय के साथ मां की पारंपरिक छवि में परिवर्तन ज़रूर आया है पर इस रिश्ते से जुड़ी भावनाएं और संवेदनाएं आज भी वही हैं| यही वजह है कि भावनात्मक अकेलापन और अपराधबोध के भावों से जूझना नई माताओं के हिस्से आ ही जाता है| यह भावनात्मक द्वंद्व पोस्टपार्टम डिप्रेशन के रूप में मां बनने के बाद से ही शुरू हो जाता है| डब्लूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, विकासशील देशों में शिशु को जन्म देने के बाद होने वाले डिप्रेशन से 20 प्रतिशत माताएं प्रभावित होती हैं। ऐसे में उनकी यह जज्बाती जद्दोज़हद समझी जानी जरूरी है| अपनों का सहयोग और संबल ही इन स्थितियों से जूझने में मददगार बन सकता है| जरूरी है कि जीवन का सबसे सुखद अनुभव जीते हुए महिलाओं को सहयोगी परिवेश मिले|