मोनिका शर्मा
सोशल मीडिया पर हद से ज्यादा एक्टिव रहने के ख़मियाजे अब सामने आने लगे हैं। शारीरिक-मानसिक और व्यवहारगत समस्याएं तेज़ी से बढ़ रही हैं। खासकर ऐसे यूजर्स में जिनकी जिंदगी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक ही सिमट गई है। कोरोना काल में तो हर उम्र के लोगों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। आंकड़े बताते हैं कि 3.6 अरब लोग दुनियाभर में रोज 144 मिनट सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। हर उम्र, हर वर्ग के लोग इन यूजर्स की फ़ेहरिस्त में शामिल हैं। हालांकि अब यूजर्स इन वर्चुअल मंचों पर ओवर एक्टिव रहने के नुकसान भी समझने लगे हैं पर यह भी सच है कि आज के दौर में वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स से पूरी तरह कटकर भी नहीं रहा जा सकता। हां, समझ और सजगता के साथ यहां मौजूद रहना अनगिनत समस्याओं से बचाते हुए आपको वर्चुअली सक्रिय रख सकता है|
सही प्लेटफॉर्म्स चुनें
वर्चुअल दुनिया में हर मंच पर अपनी मौजूदगी रखना अपना समय गंवाने के रास्ते खोलने जैसा है। इसीलिए अपनी पसंद या अपने वर्किंग फील्ड के मुताबिक़ ऐसे वर्चुअल प्लेटफॉर्म चुनें, जो आपको अपग्रेड कर सकें। वहां बिताये जा रहे समय के बदले आपके काम की सूचनाएं आपको मिल सकें। ध्यान रहे कि आज सोशल मीडिया के अनगिनत एप्स और साइट्स पर लोगों का बहुत सा समय खप जाता है। यह तय करना वाकई जरूरी है कि सूचनाओं के महासागर में कौन सी जानकारी आपके काम की है। कुछ पढ़ना समझना हो या शेयर करना आपकी प्राथमिकता क्या है? सही प्लेटफॉर्म्स चुने जाएं तो यह सलेक्टिवनेस आपको सोशल मीडिया से जोड़े रखते हुए भी आपका समय बचाएगी|
अपडेट कम कीजिये
सोशल मीडिया पर आपकी मौजूदगी का सीधा रिश्ता आपके अपडेट्स से है। हद से ज्यादा अपडेट्स की आदत हरदम आपको स्क्रीन की दुनिया में गुम रखती है। बार- बार लाइक, कमेन्ट या रियेक्शंस को देखने के जाल में उलझाए रखती है। इसीलिए आम जिंदगी से जुड़े वाकये हों या सार्वजनिक घटनाओं से जुड़े विचार, हर दिन, हर बात, हर विषय को लेकर अपडेट्स करने की आदत यूजर्स को सबसे ज्यादा व्यस्त रखती है। अगर आप खुद अपने अपडेट्स को सीमित रखते हैं, तो इन प्लेटफॉर्म्स पर आपका होना लत नहीं बनता। सार्थक जुड़ाव और जागरूकता भर के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स पर समय देने के लिए अपने पोस्ट्स, अपडेट्स और स्क्रीन स्क्रॉलिंग को सीमित रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए एप्स की सेटिंग में जाकर नोटिफिकेशन ऑफ करना भी एक हल है। इतना ही नहीं जाने-अनजाने चेहरों में किसने क्या रिएक्शन दिया? कैसा कमेंट किया? जैसी बातें भी तनाव और एंग्जायटी भी बढ़ाते हैं। जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड सोशल साइकॉलॉजी में छपी रिसर्च के मुताबिक़ सोशल मीडिया लत का बेचैनी और अवसाद से सीधा संबंध है। हरदम यहां मौजूद रहना कार्टिसोल और एड्रेनेलिन हार्मोन्स का स्तर बढ़ता है। ये तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन्स हैं। इसीलिए अपने अपडेट्स पर मिले सकारात्मक फीडबैक को लेकर हद से ज्यादा उत्साहित होने या नेगेटिव कमेंट्स को लेकर तनाव में आने से बचें। सोशल साइट्स पर बढ़ती मौजूदगी के अनुपात में ही दुनिया में तनाव, अवसाद, और हाइपरटेंशन के मामले भी बढ़े हैं।
स्क्रीन टाइम तय कीजिये
बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों एक लिए भी स्क्रीन टाइम तय करना जरूरी है। सोशल मीडिया से सधी हुई दूरी बनाना चाहते हैं तो पहले अपना हर दिन का स्क्रीन टाइम जानें। फिर सर्फिंग के लिए एक ख़ास और नियत समय निकालें। ताकि ना तो आपकी काम की प्रोडक्टिविटी पर असर पड़े और ना ही आप साइबर संसार के लती बनें। किंग्स कॉलेज लंदन द्वारा किये गए फ्रंटियर्स इन साइकाइट्री जर्नल में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन के मुताबिक वैश्विक स्तर पर करीब एक तिहाई युवा स्मार्ट फोन की लत का शिकार हैं। जिसके चलते अनिद्रा के साथ ही दूसरी बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। अध्ययन में शामिल 39 फीसदी प्रतिभागियों में बार -बार फोन देखना , नियमित रूप से सोशल मीडिया पर सूचनाएं देखते रहना, मैसेज या नोटिफिकेशन आते ही जल्द से जल्द फोन देखने की तलब रहना जैसे लक्षण दिखाई दिए हैं। ऐसे सभी लक्षण अपने फोन को लेकर नियंत्रण खोने के लक्षण माने जाते हैं। स्मार्ट फोन की लत के शिकार दो तिहाई से अधिक लोग नींद न आने की समस्या से जूझ रहे हैं। यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक़ नींद की खराब गुणवत्ता और स्मार्ट फोन के हद से ज्यादा इस्तेमाल से हो रही समस्याएं जिंदगी को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया के ओवरयूज के खतरों को न केवल समय रहते समझना बल्कि बचना भी जरूरी है।
सकारात्मक बदलाव का हिस्सा बनें
पिछले डेढ़ साल में कोविड-19 संक्रमण के कारण लोगों का काफी समय सोशल मीडिया पर बीता है। पर यह पॉजिटिव बदलाव भी देखने में आया है कि लोगों का रुझान उपयोगी एप्स के इस्तेमाल को लेकर बढ़ा है। इस दौरान वीडियो कॉलिंग एप्स के डाउनलोड में 7 गुना इज़ाफा हुआ। यह दफ्तर के कामकाज , ऑनलाइन स्कूल और अपनों से संवाद बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया। इतना ही नहीं सोशल साइट्स पर भी शारीरिक स्वास्थ्य , मेंटल वेलनेस और खान-पान से जुड़ी सेहत सहेजने वाली जानकारियाँ ही सबसे ज्यादा देखीं-पढ़ीं गईं। गूगल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ महीनों में यूट्यूब पर हेल्थ से जुड़े नुस्खों की जानकारी के सर्च में में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विटामिन सी की सर्च में 150 प्रतिशत से ज्यादा का इज़ाफा देखा गया। यह रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में ‘जिम एट होम’ जैसे सवालों के सर्च में 93 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है।
आपदा में अतिरिक्त सजगता की दरकार
वैसे तो सोशल मीडिया पर सार्थक उपस्थिति के लिए सरोकारी समझ का साथ जरूरी है ही पर इस विपदा के दौर में अतिरिक्त सजगता की भी दरकार है। खासकर कोविड-19 के संक्रमण, इलाज या बचाव को लेकर कंटेंट साझा करने से पहले सोचना बेहद आवश्यक है। यह हर यूजर की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि महामारी से जुड़े किसी भी तरह के कंटेंट वाले मैसेजेज को आगे बढ़ाते रहने से बचें। भय और भ्रम की जो स्थितियां आज बनी हुई हैं, उनमें सूचनाओं को बिना जाने समझे शेयर या फॉरवर्ड करना किसी के लिए जानलेवा भी बन सकता है। स्क्रीन के इस ओर बैठकर दिखाई गई कुछ भी साझा करने की यह नासमझी कोरोना की मुसीबत से जूझ रहे देश में नयी परेशानियां भी पैदा कर सकती है।