शारा
अशोक कुमार, उनके भाइयों तथा मधुबाला के फिल्मी एवं निजी जीवन के बारे में फ्लैशबैक के पाठक बहुत कुछ पढ़ चुके हैं। आज बात करते हैं स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर से जुड़े एक छोटे से किस्से की। क्योंकि उसका सीधा संबंध आज की आलोच्य फिल्म ‘महल’ से है। लता मंगेशकर, उनके पिता, भाई-बहनों के बारे में बहुत कुछ पाठक जानते हैं। यह भी जानते हैं कि लता ने शुरू में बहुत संघर्ष किया। बड़ी बहन होने के नाते उन पर परिवार की परवरिश का जिम्मा आ गया था क्योंकि पिताजी का निधन हो गया था। उनके संघर्ष के समय ही फिल्म महल आई और उसके गीत सुपरहिट हुए। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ, ‘आएगा, आएगा, आएगा आने वाला…।’ इसकी धुन बनाई थी खेमचंद प्रकाश ने। लेकिन धुन और सुर के तालमेल को लेकर निर्माता-निर्देशकों की राय जुदा थी। इस फिल्म के दो निर्माता थे, एक स्वयं अशोक कुमार और दूसरे थे सावक वाचा। वाचा साहब को धुन पसंद नहीं आई जबकि अशोक कुमार को यह ठीक लगी। असल में सावक वाचा चाहते थे कि गीत इस तरह से गाया जाये कि दूर से आवाज आते-आते पास आती हुई लगे। इसी तरह से संगीत भी बजे। यह फिल्म आजादी से महज दो साल बाद रिलीज हुई थी। सभी जानते हैं कि उन दिनों रिकॉर्डिंग की तकनीक बहुत विकसित नहीं थी। रीटेक भी मुश्किल होता था। बताया जाता है कि कुछ देर चर्चा के बाद आम राय बनी कि माइक को रिकॉर्डिंग रूम के बीचोंबीच रखा जाए और लता एक कोने से गीत को गाते हुए आएंगी। इसी तरह साज भी पहले धीमे-धीमे बजेंगे फिर तेज हो उठेंगे। यह प्रयोग सफल रहा। गाना सुपरहिट रहा। लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो गीत के रिकार्ड में गायिका के तौर पर ‘कामिनी’ नाम छपा। बता दें कि कामिनी नाम इस फिल्म की नायिका का था जिसे अभिनीत किया था मधुबाला ने। बताया जाता है कि जब यह गीत हर जगह बजने लगा तो आकाशवाणी के पास श्रोताओं के ढेरों पत्र पहुंचे, यह जानने के लिए कि आखिरकार इस गीत को गाया किसने है। तब गीत रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी को रेडियो पर यह बताना पड़ा कि इस गीत को लता मंगेशकर ने गाया है। इसके बाद तो लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे चलकर उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत गाए। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ के अलावा उन्होंने अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। आगे चलकर तो अनेक गीत इसलिए भी बेहतरीन लगने लगे क्योंकि उन्हें लता ने गाया होता था। लता पर तो बहुत लंबी चर्चा हो सकती है, होती भी हैं। किताबें लिखी जा सकती हैं। लता के अलावा इस फिल्म में दो और गायिकाओं के नाम जुड़ते हैं, जिन्हें शायद आज के पाठक कम ही जानते हों। वे दो नाम हैं राजकुमारी दुबे और जोहराबाई अंबालावाली। इस फिल्म में इन दोनों गायिकाओं की भी आवाज है। इस फिल्म के कर्णप्रिय गीतों और फिल्म के बेहतरीन निर्देशन के साथ मधुबाला एवं अशोक कुमार के साथ ही अन्य कलाकारों के शानदार अभिनय से फिल्म हिट रही। यह फिल्म 1949 में रिलीज हुई थी। उस वक्त एक तरफ कवि प्रदीप के गीतों का दौर था तो दूसरी ओर देशभक्ति और विभाजन के दंश जैसी कहानियों से तैयार फिल्मों का। ऐसे में आई फिल्म ‘महल।’ इसे भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर मूवी कहा जाता है। इस फिल्म का निर्देशन कमाल आमरोही ने किया था। यही फिल्म थी जिसके बाद अदाकारा मधुबाला देखते-देखते सुपरस्टार बन गईं।
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक शानदार महल से। असल में चारों ओर चर्चा है कि इस महल में प्रेत आत्माओं का प्रकोप है। लेकिन, इन सब बातों में यकीन न करने वाले वकील हरि शंकर (अशोक कुमार) महल को खरीद लेते हैं और वहां शिफ्ट हो जाते हैं। महल का माली हरि शंकर को बताता है कि 40 साल पहले इस महल का पुराना मालिक अपनी प्रेमिका कामिनी के साथ रहता था। एक तूफानी रात में किसी हादसे में उस मालिक की मौत हो जाती है। लेकिन उसने अपनी प्रेमिका से कहा था कि उसका प्रेम कभी विफल नहीं हो सकता और वह फिर जन्म लेकर आएगा। कुछ दिनों बाद कामिनी की भी मौत हो जाती है। माली द्वारा बताई गई इस कहानी को सुनने के बाद हरि शंकर कमरे में जाता है तो हवा के झौंके से एक तस्वीर गिरती है। तस्वीर देखकर वह हैरान रह जाता है क्योंकि उसकी शक्ल हूबहू वकील हरि शंकर जैसी ही है। तभी उसे मधुर स्वर में गाती एक महिला की आवाज सुनाई देती है। वह देखता है कि आवाज किसी कमरे से आ रही है। हरि शंकर वहां जाता है तो महिला वहां से चली जाती है। अगले दिन महल का यह नया मालिक यानी हरि शंकर अपने मित्र से इस घटना को शेयर करता है। दोनों बात कर ही रहे होते हैं कि महिला फिर गुनगुनाती हुई दिखाई देती है। वह गाते-गाते छत पर जाती है। दोनों उसका पीछा करते हैं, लेकिन वह पानी में कूद जाती है। असल में वहां कोई पानी होता ही नहीं। फिल्म के इस मोड़ तक आते-आते दर्शक इसे हॉरर मूवी मानते हैं और फिल्मांकन भी इसी अंदाज में बहुत शानदार हुआ है। आएगा, आएगा, आएगा आने वाला… गीत इसी अंदाज में नेपथ्य में चलता रहता है। कहानी यूं ही आगे बढ़ती है। भटकी हुई आत्मा की तरह आने वाली वह महिला हरि शंकर पर शादी का दबाव डालती है। वह कहती है कि वह माली की बेटी से शादी कर ले और खुद उसकी आत्मा उसमें समा जाएगी। इधर, इस सारे प्रकरण से ध्यान हटाने के लिए हरि शंकर के पिता उसका विवाह रंजना (विजयलक्ष्मी) से कर देते हैं। शंकर कामिनी को भूलने के लिए अपनी पत्नी रंजना के साथ दूर जाने का फैसला करता है। लेकिन अदृश्य सी रहने वाली कामिनी के प्रति उसका मोह कम नहीं होता। दो साल बाद, एक दिन रंजना को पता चलता है कि हर रात उसका पति किसी कामिनी से मिलने जाता है। एक रात रंजना जहर पी लेती है और मरने से पहले पुलिस में हरि शंकर के खिलाफ बयान दे जाती है। मामला कोर्ट में जाता है। कहानी नया मोड़ लेती है। आखिर कौन है कामिनी। क्या सचमुच वह कोई प्रेत आत्मा है या फिर कहानी में कोई अन्य ट्विस्ट है। फिल्म देखेंगे तो आपको कुछ-कुछ याद आएगा। क्योंकि ऐसी ही थीम पर थोड़ा बदलाव के साथ बॉलीवुड में अन्य फिल्में भी बन चुकी हैं।
निर्माण टीम
निर्देशक एवं कहानी : कमाल अमरोही
निर्माता : सावक वाचा एवं अशोक कुमार
सिनेमैटोग्राफी : जोसेफ विर्स्किंग
गीतकार : नक्शब जारचवी
संगीतकार : खेमचंद प्रकाश
कलाकार : अशोक कुमार, मधुबाला, एम कुमार, विजयलक्ष्मी, कनु रॉय, एस नजीर, नीलम कनीज, जगन्नाथ, लक्ष्मण राव आदि।
गीत
आएगा, आएगा, आएगा आने वाला : लता मंगेशकर
मुश्किल है बहुत : लता मंगेशकर
दिल ने फिर याद किया : लता मंगेशकर
मैं वो हंसी हूं : राजकुमारी दुबे
घबरा के जो हम : राजकुमारी दुबे
ये रात फिर न आएगी : राजकुमारी दुबे, जोहराबाई अंबालावाली
एक तीर चला : राजकुमारी दुबे
छन छन घुंघरावा : राजकुमारी दुबे, जोहराबाई अंबाला वाली