पुष्परंजन
14 से 19 जनवरी 2018 की राजकीय यात्रा पर बिन्जामिन नेतन्याहू भारत आये थे। जो आर्थिक डेलीगेशन उनके साथ भारत आया था, उसकी कुल संख्या 147 थी। इनमें जल, कृषि, खाद्य, साइबर सुरक्षा, होमलैंड सिक्योरिटी, डिफेंस, साॅफ्टवेयर, आईटी के प्रतिनिधियों के अलावा 20 स्टार्टअप वाले लोग शामिल थे। बराक ओबामा या ट्रंप भी इतना बड़ा डेलीगेशन लेकर कभी भारत नहीं आये। 147 इज़राइली प्रतिनिधियों की सूची किसी पत्रकार को हासिल नहीं थी। इसलिए यह कहना कठिन है कि उस शिष्टमंडल में एनएसओ ग्रुप के प्रतिनिधि थे या नहीं। यह भी बताया नहीं जा सकता कि 15 जनवरी 2018 को उभयपक्षीय सरकारों के बीच बिजनेस और इंडस्ट्री से जुड़े जो नौ समझौते तत्कालीन प्रधानमंत्री नेतन्याहू की उपस्थिति में हुए, उसमें पेगासस स्पाईवेयर की डील हुई थी या नहीं?
2018 में दोनों सरकारों के बीच साइबर सुरक्षा में सहयोग को लेकर हस्ताक्षर करने वालों में भारत की ओर से विजय कृष्ण गोखले और इज़राइल की तरफ से विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल युवाल रोटेम थे। 2020 में रोटेम रिटायर हो गये। इससे पहले फरवरी 2014 में होमलैंड एंड पब्लिक सिक्योरिटी को लेकर इज़राइल से एक समझौता हुआ था। उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बेहतर बता सकते हैं कि किसी और इज़राइली स्पाईवेयर की एंट्री भारत में हुई थी, या नहीं। एक तीसरा समझौता जुलाई 2020 में इज़राइल से हुआ, एमओयू के दस्तावेज़ पर लिखा है, ‘आॅपरेशनल कोलाबोरेशन आॅन साइबर सिक्योरिटी।’ दोनों सरकारें चुप हैं, चुनांचे कहना मुश्किल है कि एनएसओ ग्रुप के तकनीशियन पेगासस स्पाईवेयर को आॅपरेशनल करने के वास्ते प्रशिक्षण देने भारत कब आये। निश्चित रूप से साइबर सुरक्षा पर जो तीसरा समझौता 16 जुलाई 2020 को हुआ था, उससे बहुत पहले पेगासस भारत में इंस्टाल हो चुका था। सालभर पहले 16 जुलाई को यह समझौता जेरूसलम में राजदूत स्तर पर ही हुआ। कोरोना काल था, जेरूसलम में भारतीय राजदूत संजीव सिंगला, इज़राइली नेशनल साइबर डायरेक्टरेट (आईएनसीडी) के डायरेक्टर जनरल यिगाल उन्ना से कोहनी स्पर्श कर मिले और ‘आॅपरेशनल कोलाबोरेशन आॅन साइबर सिक्योरिटी’ के एमओयू पर दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किये। इस समझौते के समय इलेक्टोनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संबद्ध सीईआरटी (इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम) के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। इसलिए देश का वर्तमान व पूर्व आईटी मंत्री पेगासस डील को लेकर अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हैं, तो बात समझ में नहीं आती है।
जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब इज़राइल गये थे, तब साइबर सुरक्षा को लेकर व्यापक रूपरेखा बनी थी। भारत, 2019 तक साइबर सुरक्षा को गति देने के वास्ते कई प्रतिनिधिमंडलों को इज़राइल भेज चुका था। उनमें सबसे उल्लेखनीय नेशनल साइबर सिक्योरिटी कोआर्डिनेटर (एनसीएससी) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डाॅ. राजेश पंत की जून 2019 में जेरूसलम यात्रा थी। भारत सरकार का यह महकमा सीधा प्रधानमंत्री मोदी की देखरेख में काम करता है। ‘नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल सेक्रेटेरियट’ देश के साइबर स्पेस की सुरक्षा के वास्ते जिम्मेदार है, डाॅ. पंत उसे कोआर्डिनेट करने का काम भी करते हैं। आईआईटी खड़गपुर से पढ़े डाॅ. राजेश पंत ने इन्फार्मेशन सिक्योरिटी मैट्रिक्स में पीएचडी की है, भारतीय सेना में साइबर ट्रेनिंग स्टबलिशमेंट को नेतृत्व देते रहे, इसलिए उनका इज़राइल जाना मानीख़ेज़ रहा है। कोरोना के इस कालखंड में ई कॉमर्स, ई-लर्निंग, टेली-मेडिसीन, वर्क फ्रॉम होम, रिमोट वर्किंग पर लोगों की निर्भरता जिस तरह से बढ़ चली है, सरकार के लिए उसकी सुरक्षा और निगरानी का काम भी कई गुना बढ़ा है। इसलिए यह कहना कि साइबर चौकसी के जो उपकरण ड्रग माफिया या अतिवादी गतिविधियों में संलग्न लोगों पर नज़र रखने के वास्ते ख़रीदे जा रहे हैं, सप्लायर देशों को कहीं न कहीं भ्रमित करने जैसा है। भारत जैसी घनी आबादी वाले देश में निगरानी का दायरा निश्चित रूप से बढ़ना है। विषय साइबर चौकसी के दुरुपयोग का है, जिसे लेकर संसद से सोशल मीडिया तक बहस में मुब्तला है।
साइबर चौकसी और हैकिंग के कारोबार को टाॅप पर पहुंचाने का श्रेय बिन्जामिन नेतन्याहू और प्रोफेसर आइज़ाक बेन-इज़राइल को जाता है। 2010 से 2012 के बीच प्रधानमंत्री बिन्जामिन नेतन्याहू के साइबरमेटिक्स सलाहकार रह चुके आइज़ाक बेन-इज़राइल, इस समय इज़राइली स्पेस एजेंसी के चेयरमैन हैं। इज़राइल डिफेंस फोर्स के जनरलों में से एक और मिलिट्री साइंटिस्ट प्रोफेसर आइज़ाक बेन को साइबर उद्योग की पूरी दिशा बदल देने का श्रेय जाता है। इसकी शुरुआत अमेरिका में 9-11 के हमले के बाद से मानकर चलिये, जब इज़राइल में अरियल शेरोन की सरकार थी। उनके बाद एहुद ओलमर्ट भी सत्ता में आये। इन दोनों प्रधानमंत्रियों के समय इज़राइली साइबर स्पेस को बाहरी हमले ख़ासकर ईरान, अरब देशों, हमास और हिज़बुल्ला से सुरक्षित करने का काम चलता रहा।
इज़राइल साइबर जासूसी के उपकरणों की मार्केटिंग दुनिया के देशों में करे, उसे आक्रामक बनाये, यह काम बिन्जामिन नेतन्याहू 2009 में जब दोबारा सत्ता में आये, तब शुरू हुआ। बिन्जामिन नेतन्याहू ने प्रोफेसर आइज़ाक बेन-इज़राइल को बुलाया, और साइबर स्पेस इंडस्ट्री को व्यापक करने की जि़म्मेदारी सौंप दी। 22 दिसंबर 2018 को इज़राइली संसद क्नेसेट में संविधान संशोधन कर ‘इज़राइल नेशनल साइबर डायरेक्टोरेट’ (आईएनसीडी) की स्थापना की गई, और उस महकमे को प्रधानमंत्री के अधीन किया गया। बिन्जामिन नेतन्याहू बाज़दफा बोलते थे, ‘साइबर सुरक्षा एक गंभीर चुनौती है, मगर लुभावना व्यापार भी है।’
मिलिट्री साइंटिस्ट प्रोफेसर आइज़ाक बेन ‘मल्टी इयर साइबर प्लान’ की बुनियाद स्कूल लेबल से आरंभ कर उसे शोध केद्रों तक पहुंचाने में सफल रहे। उन्होंने एक नेशनल साइबर प्रोग्राम तैयार किया, जिसके देश के अलग-अलग हिस्सों में चार रिसर्च सेंटर स्थापित किये। इज़राइल में कम से कम 12वीं कक्षा तक शिक्षा लेना अनिवार्य है। तीन चरणों वाली स्कूली शिक्षा में साइबर सुरक्षा एक ऐसा विषय है, जो पूरी दुनिया में अनोखा है। इससे ऊपर इज़राइल के नौ विश्वविद्यालयों में साइबर सुरक्षा की पढ़ाई पीएचडी लेबल तक है। प्रोफेसर आइज़ाक बेन ‘इज़राइल’ अब भी तेल अवीव यूनिवर्सिटी के अंतरविभागीय साइबर स्टडीज को लीड करते हैं। दिलचस्प यह है कि स्कूल से लेकर शोध केंद्रों तक जो लोग साइबर सुरक्षा के बारे में दीक्षा देने के कामों में लगे हुए हैं, उनमें से शत-प्रतिशत दुनिया की सबसे तेज़ खुफिया एजेंसी, ‘यूनिट 8200’ से आये हुए एक्सपर्ट हैं।
देशहित के नज़रिये से देखें, तो एक बात माननी होगी कि नेतन्याहू ने सरस्वती के ज्ञान को लक्ष्मी में रूपांतरित कर इज़राइल की पूरी अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दे दी थी। प्राइमरी स्कूल से लेकर शोध संस्थानों में ‘जूइश जीनियस’ तैयार करने के काम में इज़राइल डिफेंस फोर्स और उसकी इंटेलीजेंस इकाई की भूमिका ज़बरदस्त रही है। जो इज़राइली अर्थव्यवस्था 2009 से पहले औंधे मुंह गिरी पड़ी थी, उसे वहां की साइबर सुरक्षा उद्योग ने संभाल लिया। 2016 में दुनियाभर के संपन्न देशों के 20 फीसद शेयर इज़राइली स्टार्टअप में लग चुके थे। 2012 में 246 टाॅप साइबर सर्विलांस कंपनियां पूरी दुनिया में व्यापार कर रही थीं, वह 2016 में बढ़कर 528 हो गईं। इनमें से जो 27 सर्विलांस कंपनियां इज़राइली जीडीपी को शिखर पर पहुंचाने के काम में अगली पांत में थी, उनमें सिग्माबिट, थेटारिल, काटोनेटवर्क, सेंट्रीफाई, चेकमैक्स, चेकप्वाइंट, साइमुलेट, इल्बिट इंटेलीजेंस, और इस समय सर्वाधिक कुख्यात ‘एनएसओ’ का नाम भी आता है, जिसने पेगासस जैसे दैत्याकार स्पाईवेयर तैयार कर दुनियाभर के तानाशाहों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था। 2020 में साइबर सिक्योरिटी मार्केट 156.24 अरब डाॅलर की थी, उसमें इज़राइल का हिस्सा काफी बड़ा माना जाता है। अकेले इज़राइल ने जनवरी 2021 से जून 2021 तक 3.4 अरब डाॅलर की कमाई की थी। टाइम्स आॅफ इज़राइल के अनुसार, ‘साइबर सुरक्षा में ग्लोबल कमाई का यह 41 फीसद हिस्सा है।’
खेल कमाई का
बाहरी दुनिया के विश्लेषक यह मानकर चलते रहे कि जिन देशों से इज़राइल वैचारिक और कूटनीतिक रूप से संबद्ध नहीं है, उनसे वह दूर ही रहता है। यह बात साइबर व्यापार में बिलकुल उल्टी साबित हुई है। उदाहरण के लिए इज़राइल ने पेगासस सऊदी अरब, यूएई मोरक्को, कज़ाकस्तान, अज़रबैजान, इथियोपिया, बहरीन, बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुल देशों को बेचे, जबकि बाहर से ये देश फिलस्तीन समर्थक दिखते थे। मगर, इनके शासकों को अपने यहां जम्हूरियत और विचारों की स्वतंत्रता को कुचलना था, तो पेगासस जैसा उपकरण इज़राइल से ही प्राप्त हो सकता था।
तुर्की के शासन प्रमुख रेज़ब तैयप एर्दोआन हमस से युद्ध के दौरान इज़राइल के विरुद्ध गरजते रहे, लेकिन सोचिए कि सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या 2 अक्तूबर 2018 को इस्तांबुल के कौंसुलेट में जब हुई, तब क्या उन्हें पूरी पटकथा का नहीं पता था कि पेगासस के ज़रिये जमाल खशोगी को ट्रैक कर उसे मारा गया? सऊदी शाही परिवार ने सबकुछ शेयर किया था। एर्दोआन ने बाद में इस प्रकरण की जैसे लीपापोती की, उससे साफ हो चुका था। साइबर निगरानी के दुरुपयोग का सबसे बड़ा माॅडल मेक्सिको पूरी दुनिया के समक्ष दरपेश है, जहां पिछले दस वर्षों में 30 हज़ार से अधिक लोग ग़ायब कर दिये गये।
इज़राइल सरकार से जब सौदा होता है, तो पेपर वर्क में बाकायदा इसका उल्लेख होता है कि होम सिक्योरिटी, साइबर निगरानी, अतिवाद व नशे के कारोबार को नियंत्रित करने के वास्ते पेगासस स्पाईवेयर के आयात किये जाएंगे। मगर, क्या सचमुच ऐसा हुआ है? मोज़ांबिक, अंगोला, इथियोपिया, साउथ सूडान, वोस्तवाना, नाइजीरिया, युगांडा जैसे देशों में प्रतिरोध करने वाले नागरिकों का जिस तरह दमन हुआ है, वह तकनीक के दुरुपयोग का जीता-जागता उदाहरण है। सरकारें एमओयू का पालन बिलकुल नहीं करतीं। पेगासस की निर्माता कंपनी एनएसओ फिर वही बयान दोहराती है कि हम सरकारों से सौदा करते नहीं, तो हमारी कोई जि़म्मेदारी नहीं है। जि़म्मेदारी तय करने की बात इज़राइली सुप्रीम कोर्ट तक गई। तब जज का निष्कर्ष था, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के मामले में सरकार और सेना को कठघरे में लाना, उसकी जि़म्मेदारी तय करना सही नहीं।’ फिर तो पेगासस का घोड़ा पूरी दुनिया में तेज़ी से दौड़ने लगा!
दो प्रेत, जिन्होंने पेगासस बनाया!
ये थ्री इडियट्स थे। ओमरी लेवी, शालेव हुलियो और निव कार्मी। हाइफा के हाईस्कूल से पढ़े। हुलियो सेना के होम फ्रंट कमांड में था। कुछ दिनों में उसने नौकरी पूरी की, और तीनों ने मिलकर 2010 में एनएसओ जैसी कंपनी की शुरुआत स्टार्टअप के रूप में की। आपस में कुछ लोचा हुआ, निव कार्मी कंपनी से अलग हो गया। तो बच गये दो दोस्त ओमरी लेवी और शालेव हुलियो। जीवन का तीसवां वसंत देख चुके दोनों दोस्त दुनिया को हिला देंगे, ऐसा सोच चुके थे। एक बार बोला भी ओमरी लेवी ने, ‘हम प्रेत हैं।’ हाइफा के इन प्रेतों ने पांच वर्षों में एक ऐसा स्पाईवेयर डेवलप किया, जिसकी ज़रूरत 9-11 के बाद दुनियाभर की सरकारें शिद्दत से महसूस कर रही थीं। 2015 में हुलियो ने ‘हाशवुवा’ नामक एक पोडकास्ट को दिये इंटरव्यू में कहा था, ‘हमने एक ऐसा सिस्टम डेवलप कर लिया है, जो सुदूर रहे एक्टिव फोन को अपने नियंत्रण में ले ले और यूज़र को उसका पता तक न चले। फोनवाला कहां जा रहा है, उसकी सारी गतिविधियां स्पाईवेयर आॅपरेट करने वाले की नज़र में रहेगी।’ आप आईफोन या एंड्राइड रखिये, इस खुशफहमी में रहें कि वह पूरी तरह सुरक्षित है। मगर, वह हमेशा रहेगा पेगासस के नियंत्रण में। हुलियो ने कहा, हमें लगा कि ऐसा स्पाईवेयर साधारण सी बात होगी, लेकिन नहीं यह असाधारण है। शालेव हुलियो ने बात इससे समाप्त की थी, ‘सनद रहे, दुनिया का कोई भी फोन सुरक्षित नहीं है!’
मोसाद से भी ख़तरनाक ‘यूनिट 8200’
इज़राइल की इस खुफिया एजेंसी से पूरी दुनिया अभी ठीक से परिचित नहीं है। इज़राइली सशस्त्र सेना में सिगनल इंटेलीजेंस यूनिट की स्थापना 1952 में हुई थी। यह इज़राइल डिफेंस फोर्स की सबसे बड़ी यूनिट है, जिसमें 18 से 21 वर्ष के स्कूल-कालेजों से पास आउट लड़के-लड़कियों को काम करने का अवसर मिलता है। ये वो बच्चे हैं, जिनकी साइबर शिक्षा प्राइमरी क्लास से शुरू होती है। किसी भी कंप्यूटर को भेदने में उस्ताद। मोबाइल फोन हैक करना इनके बायें हाथ का खेल। इज़राइल का साइबर वारफेयर, ‘यूनिट 8200’ के बूते टिका है। ‘यूनिट 8200’ का मुख्यालय इज़राइल के नेगेव मरुस्थल के ‘यूरिम सिगनिट बेस’ पर है, जहां से पूरे पश्चिम एशिया के संदेशों को इनके साइबर योद्धा डिकोड करते रहते हैं। ईरान व सीरिया के न्यूक्लियर रिएक्टरों को नेस्तोनाबूद करने में ‘यूनिट 8200’ की बड़ी भूमिका रही थी। पेंटागन इनसे दूर रहना चाहता है। नाटो का साइबर कमांड इनका लोहा मानता है। रूस की कास्परस्काई लैब को जब इन्होंने हैक किया, तो उनका पहला शक अमेरिकियों पर गया था। ‘यूनिट 8200’ से जो अवकाश ले लेता है, इज़राइली साइबर कंपनियां उन्हें रखने को लालायित रहती हैं।