केवल तिवारी
पहला मामला : मनोज परेशान है कि तीसरी कक्षा से ही ट्यूशन लगाने के बावजूद उसका बेटा अनंत पढ़ाई में औसत ही क्यों है? दूसरा मामला : संगीता अपनी बेटी सृष्टि को नौवीं से बड़े कोचिंग सेंटर में भेजना चाहती है ताकि अच्छी पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनाने का मां-बाप का सपना पूरा कर सके, लेकिन सृष्टि को कोचिंग जाना कतई गवारा नहीं।
ट्यूशन-कोचिंग को लेकर पैरेंट्स के मकसद
दोनों मामलों की कहानी लगभग एक जैसी है। अनंत कोचिंग जा तो रहा है, लेकिन माता-पिता की मर्जी से, इधर सृष्टि पढ़ने में तो ठीक है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में पढ़ना चाहती है। जानकार कहते हैं कि सामान्यत: तीन कारणों से लोग अपने बच्चों को बहुत छोटी क्लास से ही ट्यूशन लगा देते हैं। पहला, मां-बाप दोनों नौकरी करते हैं और उनके पास अपने बच्चों को पढ़ा पाने का समय ही नहीं है। दूसरा, अनेक लोगों को लगता है कि बचपन से ही ट्यूशन पढ़ाने से उनका बच्चा आगे चलकर बेहतरीन करेगा या करेगी और सफलता मिलेगी। तीसरा, मां-बाप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं या फिर आलसी प्रवृत्ति के हैं। या तो उन्हें पढ़ाई-लिखाई की कोई समझ नहीं इसलिए ट्यूशन लगाते हैं कि वहां होमवर्क आदि हो जाए। या फिर आलसी हैं, कौन चक्कर में पड़े, इसलिए ट्यूशन ही भेज दो। इसके साथ ही इन दो मामलों का यह भी एक संदेश है कि लोग फैशन के चक्कर में पड़कर ट्यूशन या कोचिंग में भेजते हैं।
समन्वय बच्चे की रुचि और बड़ों की अपेक्षा का
अगर जानकार या शिक्षाविदों की ही मानें कि बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार काम करने दीजिए तो इसमें भी सौ प्रतिशत सत्यता नहीं। रुचि तो यह भी हो सकती है कि बच्चा पढ़ना ही नहीं चाहता हो। इसलिए सख्ती के साथ पढ़ाई की तरफ उन्मुख करना पड़ेगा। अनुशासन सिखाना पड़ेगा, लेकिन बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना है इसलिए महंगे कोचिंग केंद्रों में भेजा जाए, यह कहना भी उतना ही गलत है।
कोचिंग केंद्रों को नयी हिदायतें
कोचिंग केंद्रों से आए दिन आ रही भयावह खबरों के चलते ही पिछले दिनों सरकार ने नियमावली जारी की थी। सरकारी दिशानिर्देश के मुताबिक कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के बच्चों का दाखिला नहीं कर सकेंगे। न ही अच्छे नंबर या रैंक दिलाने की गारंटी जैसे वादे कर पाएंगे। इस फैसले के पीछे सरकार ने मंशा थी कि गली-मोहल्लों में बिना मानकों के खुल रहे कोचिंग केंद्रों पर रोक लगे। बड़े-बड़े सपने दिखाकर ये कोचिंग सेंटर अभिभावकों का मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं। गला-काट प्रतिस्पर्धा को खत्म करना भी इसकी एक मंशा है।
जरूरत अगर हो महसूस तो जरूर करें पहल
कोचिंग भेजने या नहीं भेजने को पूर्णत: सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता। कुछ बच्चे पढ़ने में बेहतरीन होते हैं, लेकिन उनको सपोर्ट की जरूरत होती है। साथ ही बदले पैटर्न के हिसाब से भी उन्हें कुछ ज्ञान लेना होता है। ऐसे बच्चों को कोचिंग की जरूरत होती है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनके लिए रुटीन की पढ़ाई ही भारी होती है साथ ही वे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी के बजाय दूसरे फील्ड में जाना चाहते हैं, ऐसे बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट काउंसिलिंग से लेकर पैरेंट्स -टीचर मीटिंग में भी अपडेट देते रहते हैं।
बच्चे से फीडबैक लेते रहें
अगर आपने बच्चे को कोचिंग सेंटर में दाखिल करवा ही दिया है तो समय-समय पर उससे फीडबैक लेते रहें। बच्चे के साथ व्यवहार ऐसा रखें कि वह आपसे कुछ छिपाए नहीं। कई बार बच्चों को कोचिंग की पढ़ाई समझ नहीं आती, लेकिन वह दबाव या संकोच में ‘सब ठीक चल रहा है’ का राग अलापता रहता है, जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि बच्चे पर उम्मीदों का पहाड़ मत लादिए। उसे पढ़ने में मदद करें, खानपान का ध्यान रखें, सिटिंग आवर्स बढ़ाने के लिए उसे मोटिवेट करें, लेकिन उम्मीदों का पहाड़ न लादें।