शिखर चंद जैन
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (आईबीएस) पेट की एक जटिल बीमारी है, जो मरीज का पीछा नहीं छोड़ती। देशभर में 10 से 15 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीड़ित माने जाते हैं। इसमें मरीज अक्सर परेशान रहता है—कभी अत्यधिक गैस, पेट फूलना और वायुगमन, कभी पेट दर्द और मरोड़, कभी लूज मोशन तो कभी कब्ज की शिकायत। इससे मानसिक तनाव, एंजाइटी और डिप्रेशन का सामना करना पड़ सकता है।
मानसिक और आर्थिक कारण
उदर रोग विशेषज्ञों के पास आने वाले मामलों में 30 प्रतिशत से ज्यादा आईबीएस के मामले आते हैं। यद्यपि यह बीमारी जानलेवा नहीं है, लेकिन यह मरीज को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से परेशान करती है। मरीज को अक्सर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है और कई तरह के टेस्ट भी करवाने पड़ते हैं, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता है। डर और शर्म के कारण मरीज सामाजिक समारोहों, वैवाहिक अनुष्ठानों, पार्टियों आदि से दूर रहने लगता है, जिससे उसकी जीवन गुणवत्ता प्रभावित होती है।
लक्षण
दिन में कई बार मोशन के कारण वॉशरूम जाना पड़ता है। कभी-कभी कब्ज हो जाती है, जिससे पेट साफ न होने की परेशानी होती है। स्टूल की फ्रीक्वेंसी और फॉर्म में बदलाव आने लगता है। यह बीमारी एक प्रकार का मल्टी फैक्टोरियल डिसऑर्डर है, जिसमें पेट में इन्फ्लेमेशन और माइक्रोब्स में बदलाव होता है। आईबीएस स्ट्रेस, एंजायटी और डिप्रेशन से भी जुड़ी हुई है। इसका सिर्फ क्लिनिकल डायग्नोसिस किया जा सकता है, किसी प्रकार के टेस्ट से नहीं।
संभावित समस्याएं
आईबीएस के कारण मरीज को 3 महीने में 10 प्रतिशत या उससे ज्यादा वेट लॉस का सामना करना पड़ सकता है। स्टूल में ब्लड आ सकता है, और रात भर पेट में बेचैनी, मरोड़ और गैस परेशान कर सकती है। कई बार इसके प्रभाव से बुखार भी हो सकता है।
उपचार और निदान
अपनी समस्या या लक्षणों के प्रति जागरूकता और मरीज की हौसला अफजाई इस समस्या के इलाज का अहम हिस्सा है। पेट दर्द निवारक दवाएं और एंटी-डिप्रेशन का प्रयोग किया जाता है। कब्ज वाले मरीजों को लैक्सेटिव्स और डायरिया वाले मरीजों को एंटी-डायरियल दवाएं दी जाती हैं।
परहेज़
जिन खाद्य पदार्थों से समस्या बढ़ती है, उन्हें पहचानना और परहेज करना आवश्यक है। विशेष रूप से ग्लूटेन वाले फूड, चीनी या मिठाइयां, गेहूं, डेयरी प्रोडक्ट आदि लक्षणों को तीव्र कर सकते हैं।
खानपान
ताजा फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, चावल, फाइबर युक्त फूड, अंडे, मछली, मांस, लेक्टोज़-फ्री प्रोडक्ट, और गेहूं के अलावा अन्य अनाजों से बनी रोटी का सेवन करना चाहिए। मानसिक सुकून के लिए मेडिटेशन और जीवन शैली में आवश्यक बदलाव करना भी महत्वपूर्ण है।
गैस्ट्रो विशेषज्ञ, डॉ. प्रदीप्त शेट्टी, से बातचीत पर आधारित