आशंकाओं, उम्मीदों और संभावनाओं के हिलोरों के बीच इस सदी के दूसरे दशक का पहला साल बीत गया। महामारी के जिस विकराल रूप को हमने शुरुआती महीनों में देखा और झेला, साल खत्म होते-होते लगा कि अब छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन नए वेरिएंट ने फिर डरा दिया है। वर्ष 2020 के मुकाबले इस साल सबकुछ ठहरा सा नहीं रहा। कोरोना की भीषण लहर के बीच सियासी पारा चढ़ा रहा, आंदोलनों का दौर चला, खेल हुए और चलते रहने की उम्मीदें बंधीं। गुज़रते साल की प्रमुख घटनाओं और सामने खड़े नये वर्ष के लिए उम्मीदों के परिदृश्य पर नज़र डाल रहे हैं प्रमोद जोशी
उम्मीदों और असमंजस की लहरों पर उतराती कागज की नाव जैसी है गुजरते साल 2021 की तस्वीर। जैसे 2020 का साल सपनों पर पानी फेरने वाला था, तकरीबन वैसे ही इस साल ने भी हमारी उम्मीदों और मंसूबों को नाकामयाब बनाया। पर देश और दुनिया का जज़्बा भी इसी साल शिद्दत के साथ देखने को मिला। दिल पर हाथ रखें और कुल मिलाकर देखें, तो इस साल का अंत निराशाजनक नहीं है। उम्मीदें जगाकर ही जा रहा है यह साल।
महामारी का सबसे भयानक दौर इस साल चला। किसान आंदोलन और केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि-कानूनों की नाटकीय वापसी और अंततः किसान आंदोलन की वापसी इस साल की बड़ी घटनाओं में शामिल हैं। इसके साथ-साथ देश में राजद्रोह बनाम देशद्रोह मामले पर बहस शुरू हुई है। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है, जिसका निर्णय लोकतांत्रिक-व्यवस्था पर गहरा असर डालेगा। पेगासस-जासूसी प्रकरण भी इस साल संसद के मानसून सत्र पर छाया रहा। अंततः इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया है और जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर दिया है जिसके बाद इसका सच सामने आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
राजनीतिक घटनाक्रम
आमतौर पर देश का घटनाचक्र राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता है। पर पिछले साल महामारी ने राजनीतिक घटनाओं को छिपा दिया था। इस साल महामारी के बावजूद राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रहीं। यह साल पश्चिम बंगाल के चुनावों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की विजय के लिए याद रखा जाएगा। इसके अलावा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भारी फेरबदल भी इस साल की बड़ी घटनाएं रहीं। केंद्र सरकार ने इस साल जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं से सीधी बातचीत करके एक और बड़ी पहल की। पिछले साल प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया था, तो इस साल उन्होंने वाराणसी में ‘श्री काशी विश्वनाथ धाम’ का लोकार्पण किया। इस कार्यक्रम की भव्यता को देखते हुए लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सांस्कृतिक-एजेंडे को लगातार चलाए रखेगी। इस साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है, जो भाजपा की उम्मीदों का सबसे बड़ा केंद्र है।
आर्थिक-दृष्टि से देश ने इस साल कोरोना के कारण लगे झटकों को पार करके महामारी से पहले की स्थिति को प्राप्त कर लिया है, पर साल का अंत होते-होते ओमिक्रॉन के हमले के अंदेशे ने अनिश्चय को जन्म दे दिया है। चालू वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी की 8.4 फीसदी की वृद्धि अनुमान के अनुरूप है। इस आधार पर अनुमान है कि वर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक 9.5 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर लेगी या उसे पार कर जाएगी। संवृद्धि के लिए सरकार को निवेश बढ़ाना होगा, खासतौर से इंफ्रास्ट्रक्चर में। पर इसका असर राजकोषीय घाटे के रूप में दिखाई पड़ेगा। चालू वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटा 6.8 फीसदी के स्तर पर भी रहा, तो यह राहत की बात होगी।
विदेश-नीति
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अफगानिस्तान में हुए सत्ता-पलट के बाद लगे प्रारंभिक झटकों के बावजूद भारतीय विदेश-नीति का दबदबा इस साल बढ़ा। साल की शुरुआत ही भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मिली सदस्यता से हुई, जो दो साल तक रहेगी। भारत सरकार ने अमेरिका के साथ चतुष्कोणीय सुरक्षा (क्वॉड) को पुष्ट किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा और क्वॉड के शिखर सम्मेलन से भारत-अमेरिका रिश्तों को मजबूती मिली है, दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की साल के अंत में भारत यात्रा और दोनों देशों के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ के बात भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता और संतुलन भी स्थापित हुआ है।
महामारी
पिछले साल की तरह इस साल भी सबसे बड़ी परिघटना महामारी की थी। भारत में ही नहीं, दुनियाभर में। हालांकि भारत में संक्रमण के मामले अब कम हो रहे हैं, पर खतरा टला नहीं है। नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले दो वर्षों में देश में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इनमें से करीब 4.80 लाख लोगों की मौत हुई है। तीन करोड़ 42 लाख से ज्यादा ठीक भी हो चुके हैं। एक्टिव केसों की संख्या एक लाख से कम है। इस साल अप्रैल के पहले हफ्ते से लेकर जून के दूसरे हफ्ते तक जो लहर चली, उसने देश को हिलाकर रख दिया। अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक लगी कतारों की तस्वीरें देखकर आज भी जी घबरा जाता है। ऑक्सीजन और औषधियों की किल्लत का नाम सुनकर दिल दहल जाता है।
ऐसा कोई घर और परिवार नहीं मिलेगा, जिसने किसी निकटवर्ती या प्रिय मित्र को इस साल खोया नहीं हो। हालांकि भारत में हालात काफी हद तक काबू में आ चुके हैं, पर साल खत्म होते-होते दक्षिण अफ्रीका से निकले नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का खतरा अब भी बना हुआ है। अलबत्ता कोरोना वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन की उपलब्धि और कोरोना से लड़ने वाली औषधियों की ईज़ाद इस साल की उपलब्धियां हैं। 2 जनवरी, 2021 को भारत ने दो वैक्सीनों के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी और 16 जनवरी से वैक्सीनेशन शुरू हो गया। ब्रिटेन, अमेरिका और कुछ अन्य विकसित देशों के बाद भारत ही ऐसा देश था, जिसने टीकाकरण में पहल की। अब तक 140 करोड़ के आसपास टीके लग चुके हैं। आईसीएमआर के अनुसार देश में इस समय पॉज़िटिविटी रेट एक फीसदी से भी कम है। मृत्यु दर 1.38 फीसदी है और रिकवरी रेट 98.40 फीसदी है। भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दोनों ही बच्चों की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सीरम इंस्टीट्यूट में बनी कोवोवैक्स को बच्चों पर इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि नए साल में हालात सुधरते जाएंगे।
आंदोलनों की तुर्शी
जिस तरह पिछले साल देश को नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन ने घेरा था, उसी तरह यह साल भारत में किसान आंदोलन के लिए भी याद रखा जाएगा। यह आंदोलन 2020 में शुरू हो गया था, पर इस साल उसका वृहद रूप देखने को मिला। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को ही खेती से जुड़े तीन नए कानूनों का अनुपालन स्थगित कर दिया था और विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर रिपोर्ट मांगी थी, पर किसान इतने से संतुष्ट नहीं हुए और आंदोलन चलता रहा। अंततः 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। किसानों ने अपनी कुछ और मांगों पर सरकार से आश्वासन लेने और आपसी विमर्श के बाद अंततः आंदोलन वापस ले लिया। अलबत्ता आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और पुलिस के साथ मुठभेड़ें भी याद रहेंगी, जिनका एक दुखद रूप 26 जनवरी को लालकिले में देखने को मिला। इसी से जुड़ी एक और दुखद घटना उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में देखने को मिली। किसान आंदोलन के समांतर पंजाब के खालिस्तानी आंदोलन और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की भूमिका को लेकर भी देश में लंबी बहस चली। सोशल मीडिया के माध्यम से एक टूलकिट का विवरण सामने आने के बाद 22 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी राष्ट्रीय सुर्खियों में रही। दिशा रवि को फरवरी के महीने में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने दिशा रवि पर कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं। उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं। व्हाट्सएप ग्रुप बनाना, टूल किट एडिट करना अपने आप में अपराध नहीं है। महज व्हाट्सएप चैट डिलीट करने से दिशा रवि और ‘पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन’ (पीजेएफ) के खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
राजद्रोह बनाम देशद्रोह
इस बहस के समांतर राजद्रोह बनाम देशद्रोह क़ानून को लेकर भी बहस चली, जो अगले साल भी जारी रहने की संभावना है। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरत जताई कि अब भी आईटी कानून की धारा 66ए के तहत लोगों पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं, जबकि इसे अदालत ने 24 मार्च, 2015 को असंवैधानिक घोषित किया था। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ अदालत में यह मामला लेकर गई थी। दो साल पहले इस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस कानून के रद्द होने के बाद कम से कम 22 लोगों पर इसके तहत मुकदमे चलाए गए हैं। अदालत की हैरानी के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे थानों को 66ए के तहत मामले दर्ज न करने के निर्देश दें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा दूसरा मामला राजद्रोह कानून का है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए किया था, तो क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे जारी रखने की ज़रूरत है? अदालत में एक रिटायर मेजर जनरल ने धारा-124ए (राजद्रोह) कानून की वैधानिकता को चुनौती दी थी। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने इस याचिका के परीक्षण का फैसला किया है। अदालत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से राजद्रोह कानून के प्रावधान को चुनौती देते हुए अलग से अर्जी दाखिल की गई है। इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के एक मामले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 3 जून को कहा था कि पत्रकारों को राजद्रोह के दंडात्मक प्रावधानों से तब तक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए, जब तक कि उनकी खबर से हिंसा भड़कना या सार्वजनिक शांति भंग होना साबित न हुआ हो। हालांकि स्पाईवेयर पेगासस का मामला पुराना है, पर इस साल संसद के मानसून-सत्र में यह जोरदार तरीके से उठा। उसकी वजह यह थी कि इस साल कुछ नयी जानकारियां सामने आईं। पेरिस की मीडिया संस्था फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को विभिन्न देशों के ऐसे 50, 000 फोन नम्बरों की सूची मिली, जिनके बारे में संदेह है कि उनकी हैकिंग कराई गई। इन नम्बरों में भारत के कुछ पत्रकारों सहित केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, सुरक्षा संगठनों के मौजूदा और पूर्व प्रमुखों, वैज्ञानिकों आदि के भी शामिल होने की बात कही जा रही है।
ममता बनर्जी का उदय
राजनीति के लिहाज से पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पुडुच्चेरी और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव इस साल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण परिणाम पश्चिम बंगाल से आए, जहां ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने में सफल हुईं। चुनाव के पहले और परिणाम आने के बाद की खूनी हिंसा को भी साल की सुर्खियों में शामिल किया जाना चाहिए। बंगाल में मिली इस विजय का देश की राजनीति पर भी असर पड़ने जा रहा है। भाजपा के मुकाबले मुख्य विरोधी दल के रूप में खड़ी कांग्रेस के नेतृत्व को ममता बनर्जी ने चुनौती दी है। इस राजनीति के निहितार्थ अगले साल पूरी तरह खुलकर सामने आएंगे। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के सामने चुनौतियों के पहाड़ खड़े हैं। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत के अलावा कांग्रेस और वाममोर्चा का सूपड़ा साफ भी हुआ। उधर, पंजाब में लम्बे अरसे से चले आ रहे मुख्यमंत्री को अपने पद से हटना पड़ा, तो उन्होंने कांग्रेस छोड़कर एक नयी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। यह पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी।
बंगाल के परिणाम जितने विस्मयकारी थे उतने ही केरल के परिणाम भी थे। आमतौर पर केरल में वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच सत्ता रोटेट करती रही है, पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। पिनरायी विजयन के नेतृत्व में वाम लोकतांत्रिक गठबंधन जीत हासिल करने में सफल हुआ। पुडुच्चेरी में भाजपा का गठबंधन और तमिलनाडु में डीएमके का गठबंधन एक दशक बाद सत्ता हासिल करने में सफल हुआ।
राजनीतिक दृष्टि से इस साल की एक महत्वपूर्ण घटना थी 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता। कश्मीर में चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। उसके पहले राज्य के चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा होना है। इस काम के लिए जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में बने परिसीमन आयोग ने जम्मू संभाग में छह और कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। इस प्रस्ताव से 90 सदस्यीय विधानसभा में जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हो जाएंगी। इसके अलावा 9 सीटें जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव प्रदेश के सांसदों के समक्ष रखा है। आयोग की रिपोर्ट को लेकर घाटी की पार्टियों ने अपना असंतोष व्यक्त किया है। कश्मीर की राजनीति भी अगले साल मुखर होकर सामने आएगी। देखना है कि वहां अगले साल चुनाव होते हैं या नहीं। सत्तारूढ़ दल भाजपा की दृष्टि से इस साल की एक बड़ी घटना केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भारी बदलाव से जुड़ी है। प्रधानमंत्री ने झाड़-पोंछकर एकदम नयी सरकार देश के सामने रख दी। इसे विस्तार के बजाय नवीनीकरण कहना चाहिए। अतीत में किसी मंत्रिमंडल का विस्तार इतना विस्मयकारी नहीं हुआ होगा। संख्या के लिहाज़ से देखें, तो करीब 45 फीसदी नए मंत्री सरकार में शामिल हुए। इस मेगा-कैबिनेट विस्तार का मतलब है कि या तो सरकार अपनी छवि को लेकर चिंतित है या फिर यह इमेज-बिल्डिंग का कोई नया प्रयोग है।
वर्चुअल विवाह और एक नया गहना मास्क
कोरोना ने सोशल डिस्टेंसिंग की नयी संस्कृति और मास्क के रूप में दुनिया को एक नया पहनावा दिया। अभी तक मास्क आमतौर पर डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के चेहरों पर दिखाई पड़ते थे, पर अब आम लोगों के चेहरों पर हैं। मास्क लगाना जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। ऐसे में शौकीनों ने इसे फैशन का हिस्सा बना लिया है। कपड़ों के साथ मैचिंग मास्क और तरह-तरह की खूबसूरत डिजाइनों के मास्क तो बाजार में आ ही गए हैं, पर भारत में दुल्हनों के लहंगों और गहनों के साथ मेल खाने वाले मास्क भी लोगों ने तैयार कर दिए हैं। ज़रदोज़ी और सोने की कढ़ाई वाले मास्क, गोटे वाले मास्क और कीमती रत्नों से जड़े मास्क अब दुल्हन के जोड़ों का हिस्सा बन गए हैं। एक नए गहने की शक्ल में। शादियों के तौर-तरीकों में भी बदलाव हुआ है। मेहमानों की संख्या में कमी रखने की पाबंदियों के कारण शादी की रस्म वर्चुअल हो गई। व्हाट्सएप ज़ूम या किसी दूसरे एप से आप वीडियो कांफ्रेंसिंग के मार्फत समारोह से जुड़ जाइए। डिजिटल कार्ड के मार्फत निमंत्रण आ रहे हैं। उपहार भी आप ऑनलाइन भेज सकते हैं। नकद देना चाहें, तो गूगल पे, फोन पे या यूपीआई से भेज दें। पंडित जी नहीं आ पा रहे हैं तो वीडियो लिंक भेज दें। वे जहां बैठे हैं, वहीं से मंत्र पढ़ दें, शादी हो जाएगी।
खेल का मैदान : खेल के मैदान पर इस साल भारतीय क्रिकेट टीम को टी-20 विश्व कप में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई, पर टोक्यो भारत के लिए इतिहास का सबसे सफल ओलंपिक रहा है। साल का अंत होते-होते स्पेन में हुई विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता में भारत के किदांबी श्रीकांत और लक्ष्य सेन दो पदक हासिल करने में सफल हुए हैं। यह पहला मौक़ा है, जब भारतीय पुरुष खिलाड़ी इस चैंपियनशिप में दो पदकों के साथ लौटे हैं। साल का अंत होते-होते ढाका में हो रही हॉकी की एशियन चैंपियनशिप ट्रॉफी में भी भारतीय टीम की सफलता उल्लेखनीय है। नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल के साथ ओलंपिक प्रतियोगिता के एथलेटिक्स वर्ग में पदकों का सूखा खत्म किया है, साथ ही पदकों की संख्या के लिहाज से भारत ने सबसे ज्यादा सात पदक हासिल किए। लम्बे अरसे के बाद हमारी हॉकी टीम ने ओलंपिक में पदक हासिल किया। यह असाधारण उपलब्धि हैं, हालांकि भारत को इस बार इससे बेहतर की आशा थी। खासतौर से शूटिंग, तीरंदाजी बॉक्सिंग और कुश्ती में जो हमारी उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई। हमारा स्तर बेहतर हो रहा है। इस बार की सफलता हमारे आत्मविश्वास में जबर्दस्त बढ़ोतरी करेगी। जिस तरह से पूरे देश ने नीरज के स्वर्ण और हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने पर खुशी जाहिर की है, उससे लगता है कि खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।