तरुण जैन/हप्र
रेवाड़ी, 31 जुलाई
31 साल पहले शहीद एक जवान के नाम पर गांव के गवर्नमेंट स्कूल का नामकरण किया गया। बुधवार को इस नामकरण पट्ट का मंत्री डाॅ. बनवारी लाल ने अनावरण किया। इस मौके पर मौजूद शहीद की वयोवृद्ध माता की आंखों में आंसू छलक गए। ग्रामीणों ने इस मौके पर स्कूल के तीन कमरों की जर्जर हालत को लेकर मंत्री को ज्ञापन सौंपा।
सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट सूबेदार मेजर सोहेल लियाकत ने कहा कि बावल क्षेत्र के गांव सूबासेड़ी के सीआरपीएफ में तैनात जवान 20 वर्षीय अभय सिंह 22 जनवरी 1993 में मिजोरम के इम्फाल में देश के दुश्मनों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे। वे दो वर्ष पूर्व ही 1991 में सीआरपीएफ की 119 बटालियन में भर्ती हुए थे। सैन्य परंपरा के अनुसार उस समय शहीद का पार्थिव शरीर उसके घर नहीं भेजा गया था और सम्मान के साथ वहीं पर अंतिम संस्कार किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के शासन काल में यह परंपरा बदलकर शहीद सैनिकों के शव उनके घरों तक पहुंचाया जाने लगा।
अभय सिंह की शहादत के बाद गांव के राजकीय माध्यमिक विद्यालय का नाम उनके नाम पर रखने की मांग लगातार की जा रही थी। इसके लिए परिजनों व ग्रामवासियों ने कड़ी मेहनत की। जिसका 31 साल बाद सरकार ने गांव के स्कूल का नाम शहीद अभय सिंह राजकीय माध्यमिक विद्यालय कर दिया गया। जैसे ही यह समाचार गांव व परिजनों को मिला तो शहीद की 88 वर्षीय वृद्ध मां बनारसी देवी की आंखों में आंसू आ गए। बुधवार को स्कूल के नामकरण पट्ट का कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने अनावरण किया। इस मौके पर उन्होंने शहीद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि देश की रक्षा में प्राण गंवाने वाले बहादुर जवानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी वीर गाथाएं सदैव अमर रही हैं। मंच संचालन मेजर विजय कुमार ने किया। इस मौके पर विद्यालय के मुख्याध्यापक कृपाल सिंह, ईश्वर सिंह, प्रदीप कुमार, सरपंच सुशीला देवी के पति सत्यवान, पूर्व सरपंच सत्यप्रकाश, हरिसिंह, योगेश, समय सिंह, भागमल, आदि उपस्थित थे।
मां बोली-बेटे की शहादत पर गर्व
वृद्ध मां बनारसी देवी ने कहा कि उनके पति रामचंद वर्ष 2018 में स्वर्ग सिधार गए थे। यदि वे आज जिंदा होते तो बेटे की शहादत को लेकर मिल रहे सम्मान को अपनी आंखों से देखते। उसके बड़े बेटे सूबे सिंह का भी वर्ष 2021 में भी देहांत हो गया था। जिसने स्कूल के नामकरण के लिए भारी भागदौड़ की थी। उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है।