ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 5 अगस्त
हरियाणा सरकार अब खुद का ‘लैंड बैंक’ बनाएगी। सभी विभागों तथा बोर्ड-निगमों की जमीन का रिकार्ड एक ही प्लेटफार्म पर उपलब्ध रहेगा। इतना ही नहीं, अब सभी प्रकार की सरकारी जमीन का टाइटल भी सरकार के नाम रजिस्टर्ड होगा। पंचायती राज संस्थाओं तथा शहरी स्थानीय निकायों – नगर निगम, नगर परिषद व नगर पालिका की जमीनों को इस दायरे से बाहर रखा है। हालांकि कलेक्टर रेट पर पंचायतों व निकायों की जमीन सरकार खरीद सकेगी।
ई-भूमि पोर्टल पर जमीन बेचने की पेशकश करने वाले भूमालिकों/किसानों की जमीन भी खरीद के बाद सरकार इसी लैंड बैंक में शामिल करेगी। बृहस्पतिवार को सीएम मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में यहां हुई कैबिनेट मीटिंग में लैंड बैंक बनाने का फैसला लिया गया। इस फैसले से जमीन के अभाव में लटकी विकास परियोजनाओं को पंख लगेंगे। रेवेन्यू डिपार्टमेंट द्वारा इसके लिए पहले ही ग्राउंड पर काम किया जा चुका है। मीटिंग में रेवन्यू सेक्रेटरी संजीव कौशल ने कैबिनेट के सामने पूरा एजेंडा रखा।
प्रदेश के विभिन्न जिलों, कस्बों एवं गांवों में विभागों के पास काफी जमीन पड़ी है। इसमें से बहुत सी जमीन ऐसी है, जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा। कई जिलों में केंद्र सरकार की भी जमीन है। यह जमीन विभिन्न मंत्रालयों के नाम पर है। सरकार ने विकास परियोजनाओं के लिए जमीन खरीदने को ई-भूमि पोर्टल बनाया हुआ है। पोर्टल पर किसान अपनी मर्जी से जमीन बेचने की पेशकश कर सकते हैं। जमीन का मोल-भाव तय होने के बाद सरकार इसे खरीदती है। आगे से यह जमीन भी लैंड बैंक का पार्ट होगी।
एक विभाग की दूसरे विभाग को जमीन ट्रांसफर करने में कई तरह की अड़चनें थी। जमीन की कीमत भी खरीद करने वाले विभाग को देनी होती थी। इसके लिए कई तरह की एनओसी भी लेनी होती थी। जमीन का टाइटल सरकार के नाम होने के बाद एक विभाग से दूसरे विभाग में जमीन तुरंत ट्रांसफर भी हो सकेगी और इसे बिना किसी पैसे के दूसरे विभाग को दिया जा सकेगा। रेवेन्यू डिपार्टमेंट पंचकूला की बरवाला सब-तहसील तथा फतेहाबाद में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जमीन का टाइटल सरकार के नाम ट्रांसफर कर चुका है।
अब सभी जिलों में मौजूद विभाग की जमीन को ‘सरकारी’ टाइटल के साथ पंजीकृत करने पर काम शुरू होगा। अधिकांश विभागों द्वारा जमीन का ब्योरा राजस्व अधिकारियों को मुहैया करवाया जा चुका है। रेवेन्यू डिपार्टमेंट में जमीनों की देखरेख के लिए अलग विंग बन सकता है। सभी जमीनों को एक प्लेटफार्म पर लाने से जमीन की मालिक ‘सरकार’ हो जाएगी, लेकिन लेकिन कब्जा संबंधित विभाग या बोर्ड-निगम के पास ही रहेगा। जमीन जैसे ही किसी दूसरे विभाग को ट्रांसफर की जाएगी, उसका कब्जा भी उसी विभाग को मिल जाएगा।
निकायों-पंचायतों में ऐसा नहीं
प्रदेश के नगर निगमों, नगर परिषदों तथा नगर पालिकाओं और पंचायतों की जमीन मुफ्त में किसी दूसरे विभाग को ट्रांसफर नहीं होगी। यह जमीन नाम भी इनके ही रहेगी। अगर सरकार के किसी विभाग को जमीन की जरूरत है तो उसे कलेक्टर रेट या फिर संबंधित निकाय व पंचायत के साथ मोल-भाव करके कीमत तय करनी होगी। पैसा जमा करवाने के बाद ही निकाय या पंचायत अपनी जमीन संबंधित विभाग को ट्रांसफर करेंगे। केंद्र सरकार को राज्य के किसी विभाग, निकाय या पंचायत की जमीन की जरूरत है और कीमत को लेकर विवाद है तो इसके निपटाने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित होगी।
बिना ट्रांसफर फीस जमीन की अदला-बदली
प्रदेश के ग्रामीणों को राज्य सरकार ने बड़ी राहत दी है। गांवों में अब एग्रीकल्चर लैंड ट्रांसफर करने पर स्टॉम्प ड्यूटी नहीं लगेगी। कैबिनेट ने स्टॉम्प शुल्क माफ कर दिया है। जमीन ट्रांसफर के लिए पांच हजार रुपये एकमुश्त राशि तय की है। गांवों में बड़ी संख्या में लोग कृषि भूमि की अदला-बदली करते हैं। स्टॉम्प शुल्क को माफ करने की मांग लम्बे समय से चली आ रही थी। अब इससे ग्रामीणों को राहत मिलेगी।