विजय शर्मा/हप्र
करनाल, 18 अप्रैल
हरियाणा में मोक्ष ‘कमर्शियल’ आधार पर मिल रहा है। समाज के विभिन्न तबकों को राहत देने का दावा करने वाली सरकारों का उस ओर कोई ध्यान नहीं है, जहां अंतिम समय में हर व्यक्ति को जाना है। लकड़ी की किल्लत और बिजली की महंगी दरों से जूझ रहे शिवधाम सरकार की बेरुखी से आहत हैं। दान से चलने वाली शिवपुरी संस्थाओं में बिजली कमर्शियल रेट पर दी जा रही है। यानी सरकार यह मानकर चल रही है कि श्मशान घाट में अंतिम संस्कार सेवा नहीं, बल्कि बिजनेस है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि बिजली वितरण निगम की बिलिंग कैटेगरी में श्मशान शब्द है ही नहीं और हरेक श्मशान प्रबंधन समिति निगम को प्रति वर्ष एक से डेढ़ लाख रुपये बिल देने काे मजबूर है।
शिवपुरी सेवक बताते हैं कि एक दशक पहले तक उन्हें हरियाणा, पंजाब और हिमाचल से सस्ती लकड़ी मिल जाती थी, लेकिन बीते कुछ सालों से लकड़ी की किल्लत बढ़ती जा रही है और भाव भी लगातार बढ़ रहे हैं। फिलहाल उन्हें उत्तर प्रदेश से लकड़ी मिल रही है और वह भी मनमाने दाम पर। महंगी बिजली के कारण प्रबंधन समितियां विद्युत शवदाह गृह भी स्थापित नहीं कर पा रही। सरकार ने गोशालाओं को तो रियायती दर पर 2 रुपये प्रति यूनिट बिजली देने का प्रबंध किया है, लेकिन श्मशान घाट करीब साढ़े 7 रुपये प्रति यूनिट की अदायगी कर रहे हैं।
करनाल की सिटीजन ग्रीवेंसीज कमेटी की बिजली उप समिति ने उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम के आला अधिकारियों के साथ बैठक करके इस गंभीर विषय को उठाया है और शिवपुरी में रियायती दरों पर बिजली आपूर्ति की मांग की है। प्रधान संजय बत्तरा व सचिव कुंदनलाल शर्मा ने बताया कि श्मशान भूमि प्रबंधकों ने इस परेशानी को समिति के समक्ष रखा था और समिति के पदाधिकारियों ने बिजली निगम के अधीक्षण अभियंता सुधाकर तिवारी को बताया कि श्मशान घाटों को बिजली सप्लाई कमर्शियल आधार पर की जा रही है।
उन्होंने कहा कि उन्हें रियायती दर पर बिजली दी जाए या घरेलू खपत मानकर इनके बिजली बिल बनाए जाएं। अधिकारियों ने कहा कि यह एक नीतिगत मुद्दा है। इसके लिए विभाग को लिखा जाएगा, यानी इसका निर्णय सरकार के स्तर पर ही हो सकता है।
एलपीजी या सीएनजी भी हैं विकल्प : शमशान प्रबंधन समितियों के लिए 2 अन्य विकल्प भी हैं कि वह एलपीजी या सीएनजी आधारित शवदाह गृह स्थापित करें। करनाल की अर्जुन गेट शिवपुरी में बरसों से सेवाएं दे रहे समाजसेवी मोहन लाल सुखीजा ने कहा कि अगर सरकार सहयोग के लिए आगे नही आई तो अंतिम संस्कारों को लेकर आने वाले समय में स्थिति विकट होने वाली है। उन्होंने कहा,’अपने बलबूते पर हम बहुत कुछ कर रहे हैं। लेकिन हमारी भी एक सीमा है।’
एलपीजी शवदाहगृह प्लांट की तकनीकी गड़बड़ियों ने किया बेहाल : मोहन लाल सुखीजा ने कहा कि महंगी बिजली की परेशानी से मुक्ति के लिए उन्होंने सरकार के सहयोग से अर्जुन गेट शिवपुरी में एक एलपीजी आधारित शवदाह गृह स्थापित किया है। इससे लकड़ी से होने वाले प्रदूषण से तो मुक्ति मिली है, लेकिन प्लांट में आने वाली तकनीकी गड़बड़ियों ने उन्हें बेहाल कर दिया है और प्लांट लगाने वाली कम्पनी ने अब यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि एक साल बाद हरेक सर्विस के लिए अलग चार्ज लगेंगे। एलपीजी शवदाह प्लांट में एकसाथ रसोई गैंस के 20 सिलेंडर लगते हैं और दो सिलेंडर प्रति व्यक्ति खपत है। यह सिलेंडर भी बाजार भाव से लेने होते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा कोरोना काल में लगाये गये इस प्लांट को नगर निगम और जिला के अधिकारियों ने कभी मुडक़र देखा ही नही। आलम यह है कि स्थानीय मैकेनिकों की मदद से जोड़तोड़ करके प्रबंधन समिति इसकी सेवाएं दे रही है। इस पर बिजली का भी भारी खर्च आता है। करनाल के 6 श्मशानघाटों में यह अकेला गैस आधारित शवदाह गृह है। उन्होंने बताया कि प्रति दो माह में करीब 25 हजार का बिजली बिल आता था। इस भारी भरकम बिल से मुक्ति पाने के लिए समिति ने अब 10 किलोवाट का सोलर सिस्टम लगवाया है।
सभी समितियां सक्षम नहीं, सोलर पैनल में सहयोग दे सरकार
माडल टाउन शिवपुरी सेवा समिति के प्रधान राजीव चौधरी ने कहा कि अर्जुन गेट शिवपुरी ने सोलर पैनल लगवाकर अच्छी पहल की है। लेकिन सभी समितियों आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नही हैं। सरकार रियायती दरों पर सोलर पैनल लगवाकर सहयोग दे तो तो हल निकल सकता है। जुंडला गेट शिवपुरी सेवक एवं पूर्व अध्यक्ष रमन गुप्ता ने बताया कि करीब सोढ़े 7 रुपये यूनिट के हिसाब से उन्हें बिजली बिल देना पड़ रहा है और दान से चलने वाले श्मशान घाटों के लिए यह बहुत महंगा है। उन्होंने बताया कि निगम को उनकी शिवपुरी के बाहर एक स्ट्रीट लाइट लगानी थी। सड़क पर पोल की जगह नही मिली तो पोल शिवपुरी के भीतर लगा दिया गया। अब उस बड़ी स्ट्रीट लाइट का बिल भी शिवपुरी दे रही है।