विनोद जिन्दल/हप्र
कुरुक्षेत्र, 29 मार्च
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः… गीता के श्लोक से कुरुक्षेत्र की धरती को नमन कर देश की आजादी के लिए शहादत देने वाले वीरों का स्मरण करते हुए दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने मंगलवार को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान तथा हरियाणा ग्रन्थ अकादमी पंचकूला के संयुक्त तत्वाधान में ‘भारतीय पत्रकारिता – ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं वर्तमानकालिक संदर्भ’ नामक विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि अपने विचार रखे।
उन्होंने शहीदों को याद करते हुए कहा कि उनकी कुर्बानियों और विषपान का परिणाम है कि आज हम स्वाधीनता का अमृतपान कर रहे हैं और आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए नारद व भारतेंदु को याद करते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार पहले साधनों की कमी के कारण डाक के माध्यम से भी अखबारों को आमजन तक पहुंचाया जाता था। इसके लिए विशेष रूप से एक डाक एडिशन निकाला जाता था। द ट्रिब्यून ट्रस्ट के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया को याद करते हुए उन्होंने कहा कि किस प्रकार उन्होंने समाज से बुराइयों, गुलामी और अंधविश्वास से लड़ने के लिए अपनी पूंजी लगाई और 1881 में लाहौर से अखबार को शुरू किया। आजादी के समय अखबार को शिमला से छापे जाने का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि चाहे कोई भी मुसीबत आई हो लेकिन ट्रिब्यून एक दिन भी बिना छपे नहीं रहा और विभाजन के समय पहले दिन अखबार लाहौर में छपा और ऐसी व्यवस्था की गई कि अगले दिन अखबार शिमला से छापा गया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार द ट्रिब्यून अखबार अम्बाला में आया और फिर चंडीगढ़ से प्रकाशित होने लगा। उन्होंने ट्रिब्यून ट्रस्ट के बारे में बताते हुए कहा कि इस अखबार का कोई मालिक नहीं है। उन्होंने विश्वास जताया कि कोई अदृश्य शक्ति है जो ट्रिब्यून को चला रही है। उन्होंने अपने द्वारा शुरू किए गए ‘नो टेंशन’ नामक काॅलम के बारे में भी बताया और जानकारी दी कि उस पर जल्द ही एक उनकी पुस्तक भी आ रही है। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारों की भी भूमिका रही है। संघर्ष करके अखबार निकालने का काम पत्रकारों ने किया। पूर्व के सभी पत्रकारों, संस्थानों और संपादकों की हमारी पीढ़ी कर्जदार है। ट्रिब्यून के पूर्व संपादक कालीनाथ रे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के आंदोलन में ट्रिब्यून की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि सच्चाई को लोगों तक पहुंचाने वाले ही वर्तमान काल के वास्तविक स्वतंत्रता सेनानी पत्रकार हैं। इस अवसर पर हरियाणा ग्रन्थ अकादमी पंचकूला के उपाध्यक्ष एवं निदेशक डा. वीरेन्द्र सिंह चौहान ने आजादी की लड़ाई में हरियाणा की भूमिका और योगदान पर प्रकाश डाला। वहीं मुख्य भाषण प्रस्तुत करते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के वरिष्ठ अधिष्ठाता प्रो. गोबिंद सिंह ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता ने वर्तमान स्थिति तक पहुंचने के लिए बहुत से पड़ाव पार किए हैं। इससे भावी पत्रकारों को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। संगोष्ठी के इस पहले सत्र में जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान की निदेशक प्रो. बिन्दू शर्मा ने भी विचार रखे। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में क्षेत्रीय पत्रकारिता के संदर्भ में पत्रकार विनोद जिन्दल, सौरभ चाैधरी तथा कुरुक्षेत्र के जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी नरेन्द्र सिंह ने भी अपनी बात रखी। संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में शिमला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं पूर्व में दैनिक ट्रिब्यून के शिमला से पूर्व रिपोर्टर शशिकांत ने पत्रकारिता में अच्छी संभावनाओं पर प्रकाश डाला। तकनीकी सत्र में प्रो. विक्रम कौशिक, प्रो. विकास डोगरा, प्रो. सुशील सिंह तथा प्रो. सेवा सिंह बाजवा ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी का संचालन डा. अशोक कुमार, रोमा सिंह, डा. मधुदीप ने किया।