जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 9 जून
करीब 25 साल के बाद अम्बाला संसदीय सीट से निर्वाचित कोई सांसद, संसद में विपक्षी बैंच पर बैठा नजर आएगा। ऐसे में केंद्र में बनी मोदी 3-0 सरकार में अम्बाला संसदीय क्षेत्र की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होगी। ऐसा पिछले 72 वर्ष के इतिहास में छठी बार होगा जब अम्बाला से चुना सांसद केंद्र में विपक्षी बैंच पर बैठेगा। हालांकि अभी तक कोई भी सांसद अम्बाला के लिए कोई बड़ी इंडस्ट्री या बहुत बड़ा प्रोजेक्ट लाने में कामयाब नहीं हुआ।
पिछले 5 चुनावों में अम्बाला संसदीय सीट से निर्वाचित सांसद के दल की ही केंद्र में सरकार बनती रही है। वर्ष 1999 में भाजपा के रतन लाल कटारिया चुनाव जीते और केंद्र में अटल सरकार भी बनी। इसके बाद 2004 व 2009 के चुनाव में कांग्रेस की कुमारी सैलजा चुनाव जीती और दोनों बार मनमोहन सिंह सरकार के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा रहीं। 2014 व 2019 में भाजपा के रतन लाल कटारिया चुनाव जीते और दोनों बाद मोदी सरकार बनी जिसमें थोड़े समय के लिए कटारिया भी मंत्री रहे।
लेकिन यह अम्बाला के साथ पहली बार नहीं हो रहा बल्कि पहले भी 5 बार ऐसे अवसर आए यहां से चुने गए सांसद के दल की केंद्र में सरकार नहीं बन पाई। ऐसे 3 बार भाजपा सांसद के साथ हुआ जबकि 1-1 बार कांग्रेस और बसपा सांसद के कार्यकाल में हो चुका है। दरअसल अम्बाला संसदीय क्षेत्र से इस बार कांग्रेस के वरुण मुलाना भाजपा की बंतो कटारिया को 46036 मतों के अंतर से हराकर सांसद बने हैं। लेकिन केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनी है। वर्ष 1977 से पूर्व तो केंद्र में कभी विपक्ष की सरकार बनी ही नहीं लेकिन इस बीच 1967 में जनसंघ के सूरजभान ने अप्रत्याशित जीत हासिल की लेकिन केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी। उसके बाद 1980 में भी इस सीट से जनता पार्टी के उम्मीदवार सूरज भान ही निर्वाचित हुए लेकिन केंद्र में फिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद 1989 में कांग्रेस के उम्मीदवार राम प्रकाश तीसरी बार सांसद बने लेकिन उस बार केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा की सरकार बनी थी जिसे भाजपा के बाहर से समर्थन दिया था। चौथी बार वर्ष 1998 बाहरवीं लोकसभा आम चुनाव में बसपा के अमन कुमार नागरा पहली बार अम्बाला लोकसभा सीट सांसद बने थे लेकिन उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में और भाजपा की अगुआई में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी थी। इसके पहले 1996 में हुए चुनाव में अम्बाला से चुनाव जीते सूरजभान केंद्र की अटल सरकार में मात्र 13 दिन के लिए कृषि मंत्री रहे।