जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 26 मई
अम्बाला संसदीय सीट पर मतदान पिछले चुनाव की तुलना में इस बार कुछ कम रहा, जिस कारण मतदान प्रतिशत को लेकर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले, लेकिन प्रत्याशियों की हार-जीत की चर्चा शहर के चौक-चौराहों से लेकर गांवों में चौपालों तक हो रही है। सभी समर्थक अपने-अपने दलों की जीत का दावा कर रहे हैं। कोई भाजपा को ज्यादा मजबूत बता रहा है तो किसी को कांग्रेस की जीत नजर आ रही है। हालांकि वास्तविकता 4 जून को ही सामने आ पाएगी।
दरअसल मतगणना के बाद स्पष्ट हो चुका है कि मुख्य मुकाबला परंपरागत रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। चाय-पान की दुकानों, बाजारों, गांवों की चौपालों पर समर्थक अपने प्रत्याशी की जीत का दावा ठोक रहे हैं। जीत के लिए बाजियां भी लगाई जा रही हैं। पोलिंग बूथों पर किए गए आकलन के अनुसार शहरी क्षेत्रों में मोदी के नाम पर एकतरफा वोट भाजपा के खाते में जाते दिखाई दी। कांग्रेस के सभी खेमों की एकजुटता के कारण कांग्रेस के हौसले भी काफी बुलंद हैं। अम्बाला शहर में पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के समर्थन से और अम्बाला छावनी में तीन दशकों के बाद पहली बार खुलकर चुनाव मैदान में उतरे अनिल विज के चलते भाजपा को काफी मजबूती मिली है। किसानों के नाम पर हो रहे कथित विरोध का लाभ कहीं-कहीं कांग्रेस को मिल सकता है लेकिन वह परिणाम को प्रभावित करता नहीं दिख रहा।
विभिन्न वर्गों के गणमान्य लोगों की मानें तो मोदी लहर का जादू इस चुनाव में भी भाजपा के काम आ रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में एमएससी की छात्रा और अपने जीवन की पहली वोट डालने अम्बाला आई स्तुति अग्रवाल की माने तो उसने देश की सुरक्षा, भय मुक्त वातावरण, भारत की बनी विश्व व्यापी पहचान, सुरक्षित सीमाओं और प्रधानमंत्री मोदी के 2047 तक भारत को विकसित भारत बनाने की योजना को अपना समर्थन दिया है। कई अन्य युवा मतदाताओं के अलावा महिलाओं व बुजुर्गों ने भी बातचीत में बताया कि विपक्षी दलों के पास कोई स्पष्ट एजेंडा ही नहीं है, केवल मोदी को सत्ता से हटाने के लिए ही गठबंधन किए हैं। एक स्कूल संचालक ने कहा कि आज जिस मुकाम पर भारत खड़ा है, उसे और मजबूती देने के लिए एक बार फिर से मोदी सरकार आना जरूरी है।
सोशल मीडिया पर बढ़त के दावे
सोशल मीडिया पर भाजपा और कांग्रेस के समर्थक अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। मतदान के दूसरे दिन भाजपा ही सब पर बढ़त बनाए हुए है। कांग्रेस समर्थकों में भी उत्साह की कमी नहीं है। मतदान होने से पूर्व दोनों पार्टियों के समर्थक सोशल मीडिया पर काफी मुखर रहे हैं। मतदान होने के साथ ही जीत व हार का मंथन का दौर शुरू हो गया है। समर्थकों में आपस में तकरार बढ़ रही है। बातों-बातों में लोगों के सुर तेज होते जा रहे हैं। गांवों से लेकर शहरों तक की अमूमन यही स्थिति है। राजनीतिक लोग चारों ओर मतगणना के पूर्व ही अपने राजनीति गणित के आधार पर जीत-हार का फैसला करते हुए एक-दूसरों के साथ चर्चाओं में मशगूल हैं। अभी मतगणना तक सब यूं ही चलने वाला है, बस आपस की तल्खियां न बढ़ाएं, ऐसी बुजुर्ग सभी को सलाह दे रहे हैं।