ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 25 जुलाई
एयर होस्टेस गीतिका शर्मा सुसाइड मामले में अदालत से बरी होने के बाद अब पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की राजनीति भी साफ हो गई है। अभी तक केस की तलवार उन पर लटकी थी। कोर्ट से बरी होने के बाद उनके सामने अब सभी प्रकार के विकल्प खुले हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को उन्होंने अपनी तरह से पहले दिन से समर्थन दिया हुआ है। यह बात अलग है कि लिखित में भाजपा ने उनके समर्थन को कभी स्वीकार नहीं किया।
ऐसा भी इसलिए क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनावों में जब भाजपा चालीस सीटों पर सिमट गई तो पार्टी ने शुरुआत में निर्दलीयों के सहारे सरकार बनाने की कोशिश की। चुनावी नतीजों के तुरंत बाद सिरसा से भाजपा सांसद सुनीता दुग्गल के साथ हवाई जहाज में गोपाल कांडा नई दिल्ली पहुंचे। उनके साथ रानियां से निर्दलीय विधायक और अब सरकार में कैबिनेट मंत्री चौ़ रणजीत सिंह भी थे। यह कवायद इसलिए थी ताकि सरकार बनाने के लिए जरूरी 46 के जादुई आंकड़े को पूरा किया जा सके।
कांडा के समर्थन की खबर और हवाई जवाज में बैठे का उनका फोटो मीडिया में वायरल हुआ तो उमा भारती ने ऐसा ट्वीट किया कि भाजपा चाहकर भी कांडा का समर्थन नहीं ले पाई। हालांकि इसके बाद भी कांडा ने राज्यपाल को अपना समर्थन पत्र सौंप दिया था। इस बीच, यह बदलाव जरूर आया है कि ऐलनाबाद हलके में हुए उपचुनाव में भाजपा ने गोपाल कांडा के छोटे भाई गोविंद कांडा को अपना उम्मीदवार बनाया। बताते हैं कि कांडा की पार्टी हलोपा, एनडीए की सूची में भी शामिल है।
हालांकि अभी केवल अटकलें हैं, आगे होना क्या कुछ कह नहीं सकते। इतना जरूर है कि कांडा के बरी होने के बाद उनका मनोबल अब और बढ़ेगा और वे सिरसा में और मजबूती के साथ ग्राउंड पर काम करेंगे। उनकी सक्रियता का असर इनेलो और जजपा पर पड़ सकता है। वर्तमान में कांडा की गिनती मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नजदीकियों में होती है।
चुनाव तक तैयार होंगे कई रास्ते
सूत्रों का कहना है कि एनडीए की नई दिल्ली में हुई बैठक में भी कांडा को इसलिए दूर रखा था क्योंकि तब तक उनके खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा था। उनके बरी होने के बाद अब भाजपा उन्हें साथ लेकर चल भी सकती है। कांडा को सिरसा में बड़ा गैर-जाट चेहरा माना जाता है। उनके बरी होने के बाद अब उनकी राजनीति के नये रास्ते भी खुल सकते हैं। इतना ही नहीं, अगले चुनावों के लिए उनके पास कई तरह के विकल्प खुले होंगे। वे चाहेंगे तो अपनी ही पार्टी से चुनाव लड़ेंगे। अब वे भाजपा या कांग्रेस से चुनाव लड़ने के बारे में भी सोच सकते हैं।