पूछताछ केन्द्र के आसपास निराश्रय गाय बैठी हैं। रोडवेज वर्कशॉप के मुख्य द्वार पर बंदरों की गश्त चल रही है। आसानी से बंदर किसी को वर्कशॉप में घुसने नहीं देते हैं। बसों के ऊपर भी बंदरों की धींगामस्ती चलती है। कंडक्टरों के टिकट घरों में कूड़ा, सफाई कर्मचारियों की झाड़ू-पोच्छा आदि पड़े रहते हैं। अव्यवस्थाओं के चलते इस बस अड्डे पर सुविधाएं कम और दुविधाएं ज्यादा हैं। वर्ष 2008 में कांग्रेस की सरकार के समय में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, पूर्व मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला ने करीब 95 कनाल 12 मरले में यह बस अड्डा बनवाया था। करीब साढ़े सात करोड़ की लागत से बना यह बस अड्डा उस समय के बेहतरीन बस अड्डों में शुमार था। बस अड्डा वर्तमान में भी सुविधाओं से सुज्जित है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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