अजय मल्होत्रा/हप्र
भिवानी, 24 जून
देश का जिला स्तर पर सबसे बड़ा नागरिक अस्पताल होने का गौरव प्राप्त भिवानी का नागरिक अस्पताल आज सुविधाओं के अभाव में केवल रैफरल अस्पताल बनकर रह गया है। दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में आईसीयू कक्ष में वेंटिलेटरों तथा स्टाफ की भारी कमी थी और आरटीपीसीआर टैस्टिंग विवादों में रही थी। अस्पताल के आईसीयू में 24 में से केवल 12 वेंटिलेटर ही चालू स्थिति में हैं। अस्पताल में प्रधानमंत्री कोष व अन्य साधनों से आए 12 वेंटिलेटर इस्तेमाल में ही नहीं हैं। बीमारी के दौरान इन्हें चालू करने का प्रयास किया गया था, लेकिन तकनीकि कमियों के चलते इन्हें चालू नहीं किया जा सकता। आज तक भी इन्हें सुचारू रूप देने के लिए टैक्निशियन नहीं आए हैं, जबकि तीसरी लहर के संभावनाओं के बीच उपायुक्त ने दो दिन पहले एक बैठक लेकर 50 बेड का आईसीयू का कक्ष तैयार करने के निर्देश दिये थे। वेंटिलेटरों को संचालित करने के लिए पर्याप्त संख्या में चिकित्सक भी नहीं हैं। इतने बड़े अस्पताल में केवल दो ही नियमित एनस्थिसिया विशेषज्ञ हैं। इनके अलावा 60 साल से अधिक आयु के 2 एनस्थिसिया विशेषज्ञ हैं जबकि आईसीएमआर की गाइडलाइंस के अनुरूप 60 से अधिक आयु के लोग तो अस्पताल तो दूर घर से ही नहीं निकलने चाहिए।
आरटीपीसीआर विवादों में
कोरोना कहर के दौरान जिले में आरटीपीसीआर टैस्टों को लेकर भी अच्छा खासा विवाद रहा था। कोरोना संक्रमितों को पांच से आठ दिन में आरटीपीसीआर रिपोर्ट मिल रही थी। ऐसे में भिवानी जिले की संक्रमण की दर भी प्रदेश मेें अव्वल थी। इसके अलावा मृत्युदर भी प्रदेश में दूसरे नंबर पर थी। भिवानी की आरटीपीसीआर लैब पर तो झूठी रिपोर्टस भी देने के आरोप लगे थे। यह भी बताया जाता है कि कई लोगों ने तो छुट्टी हासिल करने के लिए झूठी रिपोर्ट भी बनवाई थी। जिले में आरटीपीसीआर पर खर्चे को लेकर भी अच्छा खासा विवाद है। विभाग द्वारा अपने यहां बड़ी मशीन होने के बावजूद निजी लैब से हजारों टैस्ट करवाए गए जिससे विभाग को लाखों का चूना भी लगा है। आरटीपीसीआर की टैस्टों की रिपोर्टों में अनियमितताओं के आरोपों के चलते भिवानी के उपायुक्त ने 20 मई को जांच के आदेश दिये और एक आईएस अधिकारी की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की टीम ने मामले की जांच भी की।
विभाग की कार्य प्रणाली पर उठे सवाल
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइंस के अनुरूप टैस्ट की संख्या मशीन की क्षमता से ज्यादा हो तो पहले टैस्ट सिरसा, रोहतक अथवा पंचकुला की सरकारी लैब में भेजे जाएं। वहां भी अगर टैस्ट न हो सके तो उन्हें 3 निर्धारित निजी लैब में बांट दिया जाए। सरकारी लैब तो दूर यहां तो सीधे ही गुरुग्राम की एक निजी लैब को सैंपल भेजे जाते रहे ऐसे में विभाग की कार्य प्रणाली सवाल जरूर उठ रहे हैं।
उपकरणों की सरकारी खरीद पर भी विवाद
अस्पताल प्रशासन द्वारा कोरोना काल में की गई अन्य उपकरणों की सरकारी खरीद भी विवादों में है और खासतौर पर आक्सीजन सिलेंडर पर लगने वाले आक्सीमीटरों की खरीद भी विवादों में इसकी जांच भी अभी पेंडिंग है। दूसरी लहर के दौरान हुई अनियमितताओं की जवाबदेही भी अभी तक तय नहीं हुई है। यह भी आरोप है कि नागरिक अस्पताल में अनियमितताओं को बढ़ावा देने वाले कुछ चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग के कई उच्च अधिकारियों का संरक्षण भी प्राप्त है।
जांच रिपोर्ट आयी, नहीं हुई कार्रवाई
जांच रिपोर्ट 20 दिन पूर्व उपायुक्त को सौंप दी गई, लेकिन किन्हीं कारणों से किसी भी आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जानकारी के अनुसार जांच टीम ने पाया कि अस्पताल प्रशासन द्वारा 17 मई तक लगभग 9600 सैंपल जांच के लिए गुरुग्राम की एक निजी लैब को भेजे गए। जिस पर विभाग का लगभग 70 लाख रुपए खर्च भी आया। इसमें से 45 लाख का भुगतान हो चुका है।
उजागर हुई कई अनियमितताएं
जांच रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े किये हैं। इसमें कहा गया है कि अस्पताल की अपनी आरटीपीसीआर मशीन जिसकी क्षमता 1 हजार से 1200 टैस्ट प्रतिदिन की है, के बावजूद टैस्ट बाहर भेजे गए। रिपोर्ट में पता चला है कि 1 मई को 447 टैस्ट अस्पताल में जबकि 455 टैस्ट निजी लैब में, 3 मई को अस्पताल में 700 टैस्ट जांचे गए जबकि 500 बाहर भेजे गए, 10 मई को अस्पताल में 427 बाहर, 690, 14 मई को अस्पताल में 86 बाहर 686 टैस्ट भेजे गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल की मशीन की निर्धारित क्षमता होने के बावजूद बाहर की निजी लैब में टैस्ट भेजे जाते रहे।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को तीसरी लहर से निपटने की तैयारियां करने के निर्देश दिये गये हैं। अस्पताल में 50 बैड का आईसीयू तैयार किया जाएगा। अनियमितताएं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।
-जयबीर सिंह आर्य, उपायुक्त