‘काका’ की विदाई
नौ साल और साढ़े चार महीने तक प्रदेश के मुखिया रहे अपने ‘काका’ की अचानक विदाई किसी को भी रास नहीं आ रही है। कारण चाहे जो भी रहे हों, केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले पर आम लोग ही नहीं प्रदेश भाजपा के नेता भी सवाल उठा रहे हैं। यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही कि मुखिया बदलने का यह कौन सा समय था। अगर पार्टी को ऐसा कुछ फैसला करना भी था तो साल-डेढ़ साल पहले किया जाना चाहिए था। लोकसभा चुनावों की घोषणा से चंद रोज पहले प्रदेश की राजनीति में किए गए इस बड़े बदलाव को कोई भी पॉजिटिव सेंस में नहीं ले रहा है। भाजपाई भाई लोगों में इस बात की चिंता है कि एकाएक लिए इस फैसले के साइट इफैक्ट्स ना पड़ जाएं।
‘बेदाग’ दामन
प्रदेश में विपक्षी दल भी ‘काका’ पर सवाल नहीं उठा पा रहे हैं। बेशक, उनके फैसलों और नीतियों पर उनका विरोधाभास हो सकता है, लेकिन नीयत पर किसी ने सवाल नहीं उठाए हैं। प्रदेश में मुख्यमंत्री चाहे कोई भी रहा हो, किसी न किसी विवाद में नाम जरूर घसीटा गया। कम से कम ‘काका’ पर किसी तरह के आरोप नहीं लगे। राजनीति में दामन को ‘बेदाग’ रख पाना भी आसान काम नहीं है। यह बात अलग है कि ‘काका’ के नेतृत्व पर उनकी ही पार्टी के कुछ लोग भी अंदरखाने सवाल उठाते रहे हैं। कुछ विधायकों को भी नाराजगी हो सकती है, लेकिन इतनी हिम्मत कभी किसी की नहीं पड़ी कि उनके ऊपर किसी तरह के आरोप लगा पाए हों।
उम्मीद बरकरार
भाजपाई भाई लोगों के अलावा कई निर्दलीय भी ‘मंत्री’ बनते-बनते रह गए। विगत दिवस चंडीगढ़ पहुंच भी गए थे। दिनभर बेचैनी बढ़ी रही। उनके समर्थक कभी राजभवन तो कभी मुख्यमंत्री आवास के सामने चक्कर काटते नजर आए। बताते हैं कि शुक्रवार की रात तक सबकुछ फाइनल था। शनिवार को सुबह 9 बजकर 55 मिनट के आसपास अचानक से बात बिगड़ी। दिल्ली से बजे फोन ने सभी के अरमानों पर पानी फेर दिया। भाई लोगों के कोट-पेंट टंगे के टंगे रह गए। हालांकि उम्मीद अभी भी बरकरार है। दलील दी जा रही है कि आचार संहिता में कैबिनेट विस्तार पर किसी तरह की रोक नहीं है। सो, भाई लोगों की उम्मीद भी टूटी नहीं है।
जब घर पहुंची एंबुलेंस
12 मार्च को मनोहर लाल ने जैसे ही पूरी कैबिनेट सहित इस्तीफा दिया तो करीब साढ़े चार वर्षों से मंत्री के रूप में ‘सेवाएं’ ले रहे कई भाई लोगों की बेचैनी बढ़ गई। दिनभर उठापठक चलती रही। शाम को पांच बजे सीएम सहित छह ही कैबिनेट मंत्रियों की ओथ हुई। सेक्टर-7 में एक पूर्व मंत्रीजी की कोठी पर शाम को एम्बुलेंस पहुंची। बताते हैं कि दिनभर धड़कनें बढ़ी रही। आखिर में जब नंबर नहीं पड़ा तो बेचैनी और बढ़ गई। ऐसे में एंबुलेंस को बुलाना पड़ा।
‘छोटे सीएम’ को था आभास
सत्तारूढ़ भाजपा के साथ करीब साढ़े चार वर्षों तक गठबंधन सहयोगी रही जजपा वाले बड़े कद के ‘छोटे सीएम’ को इस बात का पहले से आभास था। 12 मार्च को अचानक पूरी सरकार के इस्तीफे की घटना के तुरंत बाद छोटे सीएम ने नई दिल्ली से ही सरकारी गाड़ियों का काफिला लौटा दिया। इस घटना से करीब पांच दिन पहले उन्होंने टेलीफोन पर हुई बातचीत में भी इस तरह के संकेत दिए थे। हालांकि उस समय ऐसा कुछ नहीं लगता था। ऐसा इसलिए क्योंकि गठबंधन अगर टूटना था तो उसके लिए माहौल बनाने में कुछ तो समय लगता, लेकिन सबकुछ इतनी जल्दबाजी में हुआ कि खुद ‘काका’ के लेफ्ट-राइट को भी भनक नहीं लगी।
शाही बयान
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा एक टीवी चैनल को दिया गया इंटरव्यू इन दिनों हरियाणा की राजनीति में चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है। भाजपा-जजपा गठबंधन टूटने से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा – हमारे किसी तरह के झगड़े नहीं हुए। बहुत ही अच्छे मूड में दोनों दल अलग हुए हैं। लोकसभा सीटों को लेकर बातचीत सिरे नहीं चढ़ी, इसलिए राजी-राजी दोनों अलग हो गए। दोनों दलों के बीच आज भी मधुर संबंध हैं। किसी तरह का विवाद नहीं है। अब विपक्ष वालों को कौन रोक सकता है। विपक्षी भाई लोग कह रहे हैं कि गठबंधन तो लोगों को दिखाने के लिए तोड़ा है। अंदरखाने दोनों दल आज भी एक ही हैं।
बाबा की जिद
अपने दाढ़ी वाले बाबा भी स्टैंड पर कायम रहने वाले लोगों में शामिल हैं। उन्हें सबसे अधिक मलाल इस बात का है कि प्रदेश की राजनीति में इतनी बड़ी उठापठक हो गई और साथ होने के बाद भी उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। जिस दिन पूरी सरकार ने इस्तीफा दिया, उस दिन बाबा दिनभर ‘काका’ की कार में ही थे। राजभवन भी इकट्ठे गए और फिर हरियाणा निवास में हुई विधायक दल की बैठक में बड़ा विस्फोट हुआ। जब अचानक से विधायक दल के नये नेता का नाम सामने आया तो बाबा मीटिंग से बाहर निकल गए। बताते हैं कि दिल्ली से मनाने की कोशिशें हो रही हैं। अब यह रोचक रहने वाला है कि बाबा मानते हैं या नहीं।
कुरुक्षेत्र में महाभारत
इनेलो वाले बिल्लू भाई साहब एक बार फिर से कुरुक्षेत्र पहुंच गए हैं। उन्होंने इस संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। पिछले चुनाव में वे अपने बेटे को कुरुक्षेत्र की चुनावी महाभारत में उतार चुके हैं, लेकिन बात नहीं बनी। इस बार खुद ही मोर्चा संभाला है। आम आदमी पार्टी वाले लालाजी पहले से प्रचार में जुटे हैं। भाजपा ने अभी तक प्रत्याशी को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन बिल्लू भाई के मैदान में आने के बाद इस बार कुरुक्षेत्र का महाभारत भी रोचक होने वाला है।
बहनजी पर नज़र
भाजपा ने पुराने कांग्रेसी डॉक्टर साहब को सिरसा से चुनावी मैदान में उतार दिया है। लम्बे समय तक प्रशासनिक सेवाओं में रही ‘मैडम’ की टिकट काटने में पार्टी ने जरा भी देरी नहीं की। पंजाब और राजस्थान से सटे सिरसा पार्लियामेंट के लोगों को अब कांग्रेस प्रत्याशी का इंतजार है। सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस वाली ‘बहनजी’ की है। हालांकि ‘बहनजी’ लोकसभा की बजाय विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं। सिरसा में यह चर्चा है – अगर कांग्रेस वाली ‘बहनजी’ चुनावी रण में आती हैं तो चुनावी मुकाबला दिलचस्प होगा और डॉक्टर साहब की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
-दादाजी