ये कहां से कहां आ गए हम…
अपने भाजपा वाले ‘भाई लोग’ इन दिनों बड़ी दुविधा में हैं। पहली लिस्ट में 67 उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही पार्टी में बड़ी बगावत हो गई। कई मौजूदा और पूर्व विधायक ही टिकट कटने से खफा हो गए। नाराजगी भी इतनी कि पार्टी के फैसले के बाद कई बागी हो गए। अनेक तो फूट-फूट कर पब्लिक के बीच रोए भी। इनमें से ऐसे भी हैं, जो अपनी अलग राह पकड़ चुके हैं। कुछ अन्य अभी भी उम्मीद में बैठे हैं। उन्हें लगता है कि उनकी चीख-पुकार दिल्ली में बैठे नेताओं के कानों तक पहुंचेगी। बेशक, बातचीत और सरकार आने के बाद एडजस्ट किए जाने के नाम पर मनाने की भी भरपूर कोशिश हो रही है। कुछ मान भी रहे हैं, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में लोग बगावत पर उतरे हैं। खुद को विश्व की सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी कहने का दम भरने वाले भाई लोगों को पार्टी में इस तरह की बगावत का जरा भी अहसास नहीं था। उन पर अमिताभ बच्चन और रेखा की फिल्म ‘सिलसिला’ का ये गाना – ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ चलते-चलते… सटीक बैठता है। बस इसमें इतना ही जोड़ा जाना चाहिए – ये कहां से कहां आ गए हम!
और यूं खत्म हुए रिश्ते
2019 के विधानसभा चुनावों में विधानसभा का ‘ताला’ खोलने के लिए भाजपा ने जिस ‘चाबी’ की मदद ली, आज ताला और चाबी एक-दूसरे से दूर भाग रहे हैं। सवा चार वर्षों से भी अधिक समय तक ताला-चाबी पर लगा रहा। बेशक, बाद में भी कुछ दिनों तक इधर-उधर की चाबियों से ताला खुलता रहा। अब चूंकि चुनावों का ऐलान हो चुका है और ‘ताला-चाबी’ फिर से चुनावी संग्राम में हैं। ऐसे में एक-दूसरे पर खुलकर वार भी हो रहे। अपने बड़े कद वाले पुराने ‘छोटे सीएम’ ने भाजपा में मची भगदड़ पर कुछ यूं चुटकी ली – नेताओं को ऐसे ना रुलाया जाए, समाजसेवा का मौका दिलाया जाए। पोर्टल सरकार से मेरा निवेदन है कि, एक इस्तीफा पोर्टल भी बनाया जाए। एक्स पर किए इस ट्वीट का जवाब भाजपा ने भी अनोखे अंदाज में दिया। भाजपा ने सोशल मीडिया पर लिखा – आखिर विधायक विहीन पार्टी अब कैसे चलाई जाए। मां-बेटे फिर कैसे और कहां से पहुंचे विधानसभा कोई तरकीब तो लगाई जाए। बापू-बेटे तो ठुकरा रहे मेरे सारे ऑफर, उचाना में भी अब इज्जत कैसे बचाई जाए? पूरा हरियाणा जिसे देखना न चाहे, वो बदनाम शक्ल किस कंबल में छुपाई जाए? अब कांग्रेसी भाई लोग दोनों ओर से हो रहे वार-पलटवार पर चुटकियां ले रहे हैं।
मैं भी मेयर, तू भी मेयर
हरियाणा में यह पहला मौका है, जब नगर निगमों के मेयर भी विधानसभा पहुंचने की कोशिश में जुटे हैं। भाजपा ने दो मेयरों को तो टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया है। दो बगावत पर उतरे हैं और तीसरे को अभी भी भाजपा के फैसले का इंतजार है। सोनीपत नगर निगम के मेयर निखिल मदान कांग्रेस छोड़कर भाजपा टिकट लाने में सफल रहे हैं। अंबाला सिटी की मेयर और पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी शर्मा को भी भाजपा ने कालका से टिकट दिया है। करनाल की निवर्तमान मेयर रेणु बाला गुप्ता और हिसार के निवर्तमान मेयर गौतम सरदाना टिकट नहीं मिलने से बागी हो गए हैं। दोनों निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। रोहतक वाले सेठजी यानी निवर्तमान मेयर मनमोहन गोयल भी चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। यहां की टिकट होल्ड पर है। ऐसे में उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। बताते हैं कि मेयर-मेयर आपस में बतिया भी रहे हैं। एक-दूसरे को कह रहे हैं – मैं भी मेयर, तू भी मेयर। फिर भाजपा ने हमारी क्यों नहीं की केयर।
जमाने से हम नहीं
अपने महेंद्रगढ़ वाले बड़े दादा के समर्थकों में भी बेचैनी है। भाजपा ने नब्बे हलकों में से 67 जगहों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। सबसे हैरानी की बात यह है कि पचास वर्षों से भाजपा में एक्टिव और हरियाणा भाजपा के सबसे पुराने नेताओं में शुमार महेंद्रगढ़ वाले बड़े पंडितजी का नाम पहली लिस्ट से ‘गायब’ था। 2019 में दादा की तरह चुनाव हारने वाले कई पूर्व मंत्रियों को टिकट मिल चुकी है, लेकिन पंडितजी की सीट होल्ड पर है। हरियाणा से बाहर भी अगर प्रदेश भाजपा का जिक्र हो और बड़े कद वाले पंडितजी का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता। पंडितजी ने पिछले दिनों महेंद्रगढ़ में अपने समर्थकों की बैठक बुलाई और पार्टी के लिए किए संघर्ष के साथ अपने पुराने दिनों की याद ताजा की। इसी दौरान जिग़र मुरादाबादी का शेर – ‘हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं, हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं’, पढ़ते हुए पंडितजी ने बहुत कुछ बताने, समझाने और जताने की कोशिश भी की।
ताऊ का जलवा
अपने सांघी वाले ताऊ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस आलाकमान में उनकी मजबूत पकड़ है। बेशक, विधानसभा चुनाव में टिकट आवंटन अभी भी उलझा हुआ है, लेकिन पहली लिस्ट में घोषित किए गए 32 प्रत्याशियों में से अधिकांश ताऊ के समर्थक हैं। एंटी-इन्कमबेंसी के चलते कुछ विधायकों की टिकट कटने की बात आ रही थी, लेकिन सांघी वाले ताऊ एक बार फिर ‘सिटिंग-गैटिंग’ का फार्मूला लागू करवा अपने सभी साथियों को बचाने में कामयाब रहे। ओलंपियन विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया की कांग्रेस में एंट्री का श्रेय भी ताऊ को दिया जा रहा है। इससे पहले लोकसभा चुनावों में भी अधिकांश टिकटें ताऊ की पसंद से ही दी गई थी। माना जा रहा है कि बाकी प्रत्याशियों के चयन में भी ताऊ का पलड़ा ही भारी रहने वाला है।
भाई साहब की चुनौती
अपने कैथल वाले कांग्रेसी भाई साहब के सामने बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की बातचीत क्या चली, भाई साहब के समर्थकों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं। समर्थकों की हार्ट-बीट उस समय और भी बढ़ गई, जब यह बात सामने आई कि आम आदमी पार्टी वालों ने पंजाब सीमा से सटी कलायत, गुहला, पिहोवा, जींद और पानीपत ग्रामीण सहित कुछ अन्य सीटों की डिमांड गठबंधन के तहत की है। बताते हैं कि भाई साहब के समर्थक इन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे और उन्हें इस बार टिकट मिलने की भी पूरी उम्मीद थी। हालांकि अभी गठबंधन का फैसला होना बाकी है। माना जा रहा है कि इसी वजह से गठबंधन का विरोध भी कई स्तर पर हो रहा है।
-दादाजी