जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 14 दिसंबर
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा-370 को हटा लिए जाने के बाद भी विस्थापित कश्मीरी पंडितों के फिलहाल अच्छे दिन नहीं आए हैं। मोदी सरकार पर भरोसा करके अपने घरों को लौटने का मन तो बहुत है, लेकिन वहां एक बार फिर आतंकवाद की घटनाओं के बढ़ने पर डर भी है। इसके चलते अभी भी उन्हें अपने गुजर-बसर के लिए दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर आर्थिक मदद के लिए आवागमन करना पड़ रहा है।
ऐसे ही मदद लेने एक दिल्ली शरणार्थी कैंप की माताजी के नाम से पहचानी जाने वाली कैंप मुखिया सुनीता रानी 3 अन्य साथी महिलाओं ज्योति, नीतू और पिंकी के साथ अम्बाला पहुंची तो उनसे बात की गई। अम्बाला आढ़ती एसोसिएशन के जिला प्रधान दूनीचंद दानीपुर और अम्बाला राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रधान संजीव गर्ग की दुकान पर पिछले कई वर्ष से आर्थिक मदद लेने के लिए आने वाली अनंतनाग के रहने वाले कौल ब्राह्मण परिवारों से संबंधित इन महिलाओं ने बताया कि अम्बाला में तंबाकू वाले परिवार के लोग भी उनकी मदद करते हैं। दिल्ली से आकर वह गुरुद्वारा मंजी साहिब में ठहरी हैं और मदद लेकर वहीं से वापस चली जाएंगी।
शरणार्थी कैंप की मुखिया बताई जाने वाली माताजी ने बताया कि मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से कश्मीरी विस्थापितों के मन में विश्वास जगा है और उन्हें लगता है कि वे जल्द ही अपने घरों को वापस लौट कर अपना जीवनयापन कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनके कैंप में 3500 विस्थापित कश्मीरी परिवार रहते हैं, सरकार प्रति परिवार एक हजार रुपये महीना और अन्य सुविधाएं दे भी रही है, लेकिन जीवनयापन के लिए वह नाकाफी है, जिस कारण उन्हें देश के अन्य हिस्सों से सहायता लेनी पड़ती है।
फलों के बागों, घरों की आती है याद
पूछने पर माता जी ने यह भी बताया कि जीवनयापन करने के लिए उनके परिवारों के पुरुष सदस्य आजादपुर मंडी सहित अन्य स्थानों पर काम करते हैं, लेकिन उन्होंने अपने फलों के बागों, घरों और धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर की बहुत याद आती है। उनके साथ आई पिंकी बताती है कि विस्थापित किए जाने के समय वह बहुत छोटी थी, तब उसे परिस्थितियों की भयावहता का अंदाजा नहीं था, लेकिन बाद में पता चला कि सबसे विश्वसनीय लोगों ने ही उन्हें धोखा दिया। इन महिलाओं ने सुरक्षा को कारण बताते हुए अपना फोटो खिंचवाने और प्रकाशित करने से मना कर दिया।