दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 7 मई
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों को हरी झंडी दे चुका है लेकिन राज्य सरकार का मन पहले निकाय चुनाव करवाने का है। निकायों – नगर परिषद और नगर पालिकाओं के चुनावों के बाद ही पंचायती राज संस्थाओं – जिला परिषद, ब्लाॅक समिति व ग्राम पंचायतों के चुनाव होंगे। राज्य चुनाव आयोग भी इसी हिसाब से तैयारी कर रहा है। सरकार के मन का भांपते हुए आयोग की ओर से पहले ही सभी जिलों में चुनाव सामग्री पहुंचाई जा चुकी है।
नगर निगम में मेयर, नगर परिषद में चेयरमैन और नगर पालिका में अध्यक्ष पद के चुनाव सीधे होते हैं। इन पदों के लिए आरक्षण व्यवस्था भी सरकार ने की हुई है। आरक्षण के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी हुई है। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है और 10 मई को इस मामले में सुनवाई होनी। सरकार को लगता है कि 10 मई को हाईकोर्ट इस बाबत अपना निर्णय सुना सकता है। बेशक, हाईकोर्ट ने निकाय चुनावों पर रोक नहीं लगाई हुई है, लेकिन सरकार याचिकाओं के निपटारे के बाद ही चुनाव करवाने के पक्ष में है।
प्रदेश में 52 नगर परिषद और नगर पालिकाओं के चुनाव होने हैं। इनका कार्यकाल पिछले साल जून में पूरा हो गया है। कभी कोविड तो कभी किन्हीं अन्य कारणों से चुनाव टलते रहे। माना जा रहा है कि 10 मई को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई के बाद फैसले के लिहाज से सरकार निकायों के चुनावों को लेकर निर्णय कर सकती है। राज्य चुनाव आयोग निकायों के चुनावों की सभी तैयारियां पूरी कर चुका है।
52 नगर परिषद और नगर पालिकाओं में से पहले चरण में 48 के ही चुनाव होंगे। चार निकायों में अभी वोटर लिस्ट का काम रुका हुआ है। दरअसल, इन निकायों की वार्डबंदी में देरी होने के चलते यह काम भी देरी से हुआ। फरीदाबाद नगर निगम का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। फरीदाबाद में वार्डबंदी का काम चल रहा है। ऐसे में फरीदाबाद निगम के चुनाव भी बाद में ही होंगे। गुरुग्राम नगर निगम का कार्यकाल भी इसी साल के आखिर में पूरा हो रहा है। मानेसर को सरकार प्रदेश का 11वां नगर निगम बना चुकी है।
वहीं पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पिछले साल फरवरी में पूरा हो गया था। भाजपा सरकार में यह दूसरा मौका है, जब पंचायतों के चुनावों में करीब डेढ़ साल की देरी हुई है। इससे पहले खट्टर पार्ट-। में पंचायत चुनावों में शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य की गई थी। यह केस सरकार सुप्रीम कोर्ट से जीती थी। अब पंचायतों में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण का फैसला लिया हुआ है। इसे भी हाईकोर्ट में चुनौती दी हुई है। हाईकोर्ट अब सरकार को चुनाव करवाने की मंजूरी दे चुकी है। हालांकि आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज नहीं किया है। अलबत्ता उन पर अभी सुनवाई जारी रहेगी। बताते हैं कि पंचायत व निकाय चुनावों को लेकर सरकार ने एडवोकेट जनरल (एजी) से भी कानूनी राय मांगी हुई है।
गांवों से पहले शहरों में चुनाव इसलिए
प्रदेश सरकार पंचायतों के चुनावों से पहले निकायों के चुनाव इसलिए भी करवाने के पक्ष में है ताकि माहौल तैयार हो सके। भाजपा को शहरों की पार्टी माना जाता है। ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि शहरों में उसका प्रदर्शन अच्छा रहेगा। शहरों के बाद गांवों का रुख होगा तो राजनीतिक फायदा मिल सकता है।
पंचायतों में 71763 पदों पर होगा चुनाव
पंचायती राज संस्थाओं में कुल 71 हजार 763 पदों के लिए चुनाव होने हैं। इनमें जिला परिषद, ब्लाक समिति और ग्राम पंचायतें शामिल हैं। 22 जिला परिषदों में कुल 411 जिला पार्षदों के लिए चुनाव होंगे। इसी तरह से 143 ब्लाक समितियों में 3 हजार 86 सदस्यों के चुनाव होंगे। 6 हजार 226 गांवों में सरपंचों व पंचों के चुनाव होने हैं। इनमें 6226 सरपंच और 62 हजार 40 पंच शामिल हैं।
ऐसा हो सकता है राजनीतिक गणित
इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला की अध्यक्षता में गत दिवस हुई बैठक में निर्णय हो चुका है कि पार्टी निकायों के चुनाव अपने सिम्बल पर लड़ेगी। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इससे पहले नगर निगम के चुनाव सिम्बल पर लड़े थे और आगे भी लड़ने का ऐलान किया है। नगर परिषद और नगर पालिका के चुनाव पर अभी निर्णय होना बाकी है।
अलग-अलग लड़ सकता है गठबंधन
इससे पहले तीन निगमों – पंचकूला, अम्बाला सिटी व सोनीपत, रेवाड़ी नगर परिषद व तीन पालिकाओं – सांपला, धारूहेड़ा और उकलाना के चुनाव भाजपा-जजपा गठबंधन ने मिलकर लड़े थे। 48 निकायों के चुनाव भी दोनों दल मिलकर लड़ेंगे या नहीं, इस पर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है। दोनों पार्टियों में इस मुद्दे पर दो-राय हैं। एक पक्ष चाहता है कि मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए। वहीं कुछ लोगों का तर्क है कि दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ें।