सुभाष चौहान/निस
अम्बाला, 24 अप्रैल
फसलों पर कीटनाशकाें के लगातार बढ़ रहे इस्तेमाल को लेकर पर्यावरणविदों और कृषि वैज्ञानिकों की चिंता अब जमीनी हकीकत में बदल चुकी है। कीटनाशकों का असर फसल पर घटने लगा है। हरियाणा, पंजाब में गेहूं, सरसों व आलू की खेती से घाटा खा चुके किसानों को मूंग व उड़द से बड़ी उम्मीद थी, लेकिन रातों-रात अमेरिकन संुडी इन्हें भी चट कर रही है। सूरजमुखी भी प्रकोप है। दवाओं का छिड़काव भी किसानों को राहत नहीं दे पा रहा है। कृषि वैज्ञानिक इस तबाही में चिड़ियों का चहचहाना याद कर रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिक राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जिस पेस्टिसाइड से अभी तक मनुष्य के जीवन को खतरा बताया जा रहा था, वही पेस्टिसाइड अब खेती-किसानी के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। पेस्टिसाइड के प्रकोप ने पर्यावरण में जहर घोल दिया है, जिसके चलते चिड़िया खत्म हो चुकी है। अगर यह चिड़िया हमारे पर्यावरण में होती, तो सुंडी का प्रकोप ना होता।
खेत में मचान बनाएं
कृषि वैज्ञानिक विक्रम धीरेंद्र सिंह ने किसानों का आह्वान किया कि वे पेस्टिसाइड के अधिक इस्तेमाल से बचें और अपने खेतों में मचान बनाकर चिड़ियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम करें, ताकि यही चिड़िया किसान की मित्र बनकर उनकी खेती को मजबूत कर सके।
बचने के लिए जमीन में घुस जाती हैं सुंडियां : कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सुंडी ने पेस्टिसाइड से बचने का तरीका ढूंढ लिया है। जब किसान दवा का छिड़काव करते हैं तो सुंडियां जमीन में घुस जाती हैं और असर कम होने पर बाहर निकल आती हैं। इसलिए दवाओं का छिड़काव भी किसानों को राहत नहीं दे पा रहा है और फसलें खत्म होती जा रही हैं।