कुमार मुकेश/हप्र
हिसार, 3 मई
हमें कोरोना से जूझते एक साल से ज्यादा हो गया है। कोरोना की दूसरी लहर ने न सिर्फ स्वास्थ्य ढांचे, बल्कि सरकारी तंत्र की भी पोल खोलकर रख दी है। चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि यह सब 75 साल पहले भोरे कमेटी द्वारा की गई सिफारिशों पर काम न करने का नतीजा है। कमेटी की सिफारिशें अगर लागू हो जाती तो न तो आज देश में बेड की कमी होती और न ही अन्य संसाधनों की। इस कमेटी की सिफारिशें आज भी मेडिकल विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, लेकिन यह किसी भी सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं रहीं। यही कारण है कि आज कोरोना महामारी राष्ट्रीय आपातकाल बन गया है। 75 साल में इस कमेटी की सिफारिशों पर 4 प्रतिशत ही काम हो पाया है।
करीब 100 साल पहले देश में आई स्पेनिश फ्लू महामारी के बाद स्वतंत्रता से पूर्व ही अंग्रेजी सरकार ने देश के स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए जोसेफ विलियम भोरे के नेतृत्व में वर्ष 1943 में भोरे कमेटी का गठन किया था, जिसने 1946 में अपनी रिपोर्ट दी।
कमेटी ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) का अल्पकाल व दीर्घकाल, दो स्तर पर विकास करने की योजना सुझाई। अल्पकाल के लिए 40 हजार जनसंख्या पर एक पीएचसी बने, जिसमें 2 डाक्टर, एक नर्स, 4 पब्लिक हेल्थ वर्कर, 4 दाई, 2 सेनिटरी इंस्पेक्टर, 2 स्वास्थ्य सहायक, एक फार्मासिस्ट और 15 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए। दीर्घकाल कार्यक्रम के तहत प्रत्येक 10 से 20 हजार की जनसंख्या पर 75 बेड की प्राथमिक स्वास्थ्य यूनिट बनाने और दूसरे स्तर पर 650 बेड का अस्पताल तथा जिला स्तर पर 2500 बेड का अस्पताल बनाने की अनुशंसा की गई। 75 बेड की प्राथमिक स्वास्थ्य यूनिट में 6 डाॅक्टर (मेडिकल, सर्जिकल, महिला रोग विशेषज्ञ आदि सहित), 20 नर्स, 6 पब्लिक हेल्थ वर्कर, 6 दाइयां, 2 सेनिटरी इंस्पेक्टर, 2 स्वास्थ्य सहायक, 3 अस्पताल सामाजिक कार्यकर्ता, 8 वार्ड सहायक, 3 कंपाउडर व अन्य गैर चिकित्सक कर्मचारी की नियुक्ति होनी थी। दूसरे स्तर पर 650 बेड के जिला अस्पताल में 140 चिकित्सक, 180 नर्स, 178 अन्य कर्मचारी, जिनमें 15 सामाजिक कर्मचारी, 50 वार्ड सहायक, 25 कंपाउडर तथा तीसरे स्तर पर जिला स्तर के 2500 बेड के अस्पताल में 269 चिकित्सक, 625 नर्स, 723 अन्य कर्मचारी की अनुशंसा की गई।
इस प्रस्ताव को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने वर्ष 1952 में स्वीकार कर लिया, लेकिन समिति की अधिकांश सिफारिशें को लागू नहीं किया। इसके लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 में लांच किया गया और एक लाख की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया।
कमेटी की सिफारिश का एक हिस्सा स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के लिए एक प्रमुख केंद्रीय संस्थान का निर्माण करना था, जिसके तहत तहत 1956 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बनाया गया था। वर्ष 1959 में मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. लक्ष्मणस्वामी मुदालियर के नेतृत्व वाली हेल्थ सर्वे और प्लानिंग कमेटी की सिफारिश पर 40 हजार की आबादी पर एक पीएचसी और अखिल भारतीय स्वास्थ्य सेवा बनाने की सिफारिश की। इसके बाद काफी कमेटियां बनीं, लेकिन उन पर क्या काम हुआ, आज सबके सामने है।
अब भी लागू करें तो होगा सुधार : छाबड़ा
हिसार के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. महेश दत्त छाबड़ा का कहना है कि भोरे कमेटी की सिफारिशें सही थी और उन पर काम होता तो आज ऐसे हालात नहीं होते। उन्होंने कहा कि अब भी कोरोना से सीख लेकर इस कमेटी की सिफारिशों को युद्ध स्तर पर लागू करना चाहिए।